Friday, September 14, 2012

मुकदमों के जनक



लगभग . करोड़ लंबित मुकदमें सरकार द्वारा दायर हैं   सही कहा गया है कि अफ़सर मुकदमों के जनक है दायर कर देंगे ,और गहरी नींद में सो जायेंगे

AIR 2010 SCW page
1612 , (2010) 1 SCC 512
Urban Improvement
Trust, Bikaner vs. Mohan Lal,
paragraph 4, 5 and 6
Bhag Singh & Ors.
v. Union Territory of Chandigarh
through LAC,
Chandigarh [(1985) 3 SCC 737]
Allahabad
High Court
State Of
U.P. Thru Collector ... vs Sri Jai Pal Singh 26 July, 2010
Allahabad
High Court
Food
Corporation Of India And ... vs Appellate Authority Of Regi. 21 July, 2010




     2007 मेंदायरकेसनंबरआईए-1046                                    (वाइल्डलाइफट्रस्टऑफइंडियावर्सेसस्टेटऑफहरियाणा)


 
सचकोझूठसाबितकरनेकीजिदकेलिएहरियाणासरकारनेदोकरोड़रुपएसेअधिककीरकमफीसकेतौरपरप्राइवेटवकीलोंकोदेदी।इतनाहोनेकेबावजूदभीसचझूठनहींबनसकाऔरकेंद्रीयवनऔरपर्यावरणमंत्रालयकीजांचरिपोर्टमेंसामनेगया।फीसकीरकमसिंचाईविभागकेखातेसेजुटाईगई।
राज्यसरकारनेहांसी-बुटानानहरकेनिर्माणकेदौरानसरस्वतीवाइल्डलाइफसंेचुरीमेंभारीनिर्माणमशीनरीलानेलेजानेकेकारणवन्यजीवोंकेप्राकृतिकनिवासकोपहुंचेनुकसानकीवनविभागकेहीअफसरकीरिपोर्टकोगलतठहरानेकेलिएकरोड़ोंरुपएखर्चकिए।इनमेंसेएककरोड़रुपयासरस्वतीवाइल्डलाइफसेंचुरीकेसंरक्षणकेलिएसुप्रीमकोर्टकीसेंट्रलएम्पॉवर्डकमेटीकेसमक्षजमाकरायागयाऔरदोकरोड़रुपएसेभीअधिकपैसाइसकेसकोगलतठहरानेकेलिएलड़ेगएकेसकीफीसकेएवजमेंतीनप्राइवेटवकीलोंकोदियागया।
केंद्रीयवनऔरपर्यावरणमंत्रालयकीजांचरिपोर्टमेंतोयहबतायाहीगयाहैकिहांसी-बुटानानहरबनानेकेलिएसरस्वतीवाइल्डलाइफसेंचुरीकोनुकसानपहुंचनेकीआईएफएसअधिकारीकीशिकायतऔरकार्रवाईसहीऔरजायजथी।
साथहीसूचनाकेअधिकारकेतहतमिलीजानकारीमेंभीयहस्पष्टहोगयाहैकिराज्यसरकारनेइसकेसमेंआईएफएस कोगलतठहरानेकेलिएकेसलड़ाऔरहरियाणासिंचाईविभागकेखातेसेतीनप्राइवेटवकीलोंकोसाल 2007 मेंदायरकेसनंबरआईए-1046 (वाइल्डलाइफट्रस्टऑफइंडियावर्सेसस्टेटऑफहरियाणाकेलिएकुलदोकरोड़ 14 लाख 91 हजार 931 रुपएकाभुगतानकियागया।राज्यसरकारकेपासदर्जनोंलॉअफसरोंकेहोनेकेबावजूदतीनप्राइवेटवकीलोंकीसेवाएंक्योंलीगई,इसकाजवाबतोकोईनहींदेनाचाहतापरयहसूचनासामनेजरूरगईहैकिकार्यकारीअभियंता/  केमदसेयहरकमदीगई।
केंद्रीयमंत्रालयकीजांचकमेटीनेरिपोर्टमेंयहबतायागयाहैकिसरस्वतीवाइल्डलाइफसेंचुरीकेमामलेमेंराज्यसरकारनेबाकीखर्चोकेअलावाआरटीआईमेंजानकारीजुटानेकेलिएखुदआईएफएस कीओरसेखर्चेगए 27 हजाररुपएकामुआवजादेनेकीबातभीस्वीकारीहै।इनसबमुद्दोंकासीधासामतलबयहनिकलताहैकिसरकारनेअपनेहीएकआईएफएसकोझूठासाबितकरनेकेलिएएड़ी-चोटीकाजोरलगायापैसाफूंकाऔरलाखकोशिशेंकरनेकेबावजूदकेंद्रीयमंत्रालयकीजांचमेंझूठपकड़ागया।
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जयपुर. अजमेर रोड पर मुर्गीखाने की 18
साल पहले बेची गई जमीन की लीजडीड निरस्त करने को लेकर नगरीय विकास मंत्री  और जेडीसी  आमने-सामने गए हैं। मुर्गीखाने की करीब
8000
मीटर जमीन जेडीए ने वर्ष
1993
में करीब 93
लाख रुपए नीलामी में बेची थी। उच्चतम बोली होने के कारण इसे जयपुर के एक बिल्डर्स को दे दी और 10
प्रतिशत राशि तुरंत जमा करवा ली गई। वर्ष
2005
में जेडीए ने नीलामी की पुष्टि करते हुए बकाया राशि भी जमा करवा ली। लीजडीड जारी करते हुए कब्जा दिया। बाद में जेडीए ने बिल्डर्स को लीजडीड निरस्त करने का नोटिस थमा दिया।



हाई कोर्ट ने जेडीए की इस कार्यवाही को गैरकानूनी करार दिया। सिंगल बेंच और डबल बेंच में जेडीए मुकदमा हार चुकी है। अब अगर इस मामले को पुन: कोर्ट में ले जाया जाता है तो कोर्ट फीस के रूप में करीब 2 करोड़ रुपए जमा कराने होंगे। वकीलों की मोटी फीस देनी पड़ेगी सो अलग। वैसे भी एक बार नीलामी की पुष्टि करने, कब्जा संभलाने और लीजडीड जारी करने के 6 साल बाद जेडीए को उसे निरस्त करने का कोई अधिकार नहीं रह जाता।



इधर, इस मामले में बिल्डर्स का कहना है कि कोर्ट स्टे के नाम पर जेडीए अधिकारी उन्हें लगातार भ्रमित करते रहे। हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में इस बारे में जेडीए के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां की हैं। ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के तहत जेडीए को विवादों से रहित संपत्ति बेचनी चाहिए। जेडीए अब खुद विवाद पैदा करके 18
साल बाद इस जमीन को लेना चाहता है, जो अनुचित है।



जेडीए ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की राय मांगी तो जेडीए के वकील, महाधिवक्ता, अतिरिक्त महाधिवक्ता और निदेशक विधि ने अपील नहीं करने का सुझाव दिया। जेडीए वकील ने जरूर यह कहा कि दीवानी वाद करने का निर्णय प्रशासनिक स्तर पर लिया जा सकता है।



नगरीय विकास मंत्री  ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कहा है कि जेडीसी उनके निर्देशों को दरकिनार कर कोर्ट में जाना चाहते हैं। उन्हें जाने की अनुमति दी जाए, लेकिन यदि जेडीए कोर्ट में हार जाता है तो रिस्क एंड कॉस्ट की वसूली जेडीए आयुक्त से व्यक्तिगत तौर पर होनी चाहिए। उधर, जेडीसी का कहना है कि जेडीए के हित में वे ऐसा करना चाहते हैं, इससे ज्यादा वे कुछ नहीं कहेंगे। नगरीय विकास मंत्री  ने दलील दी है कि निदेशक विधि, जेडीए के वकील, महाधिवक्ता और अतिरिक्त महाधिवक्ता तक यह राय दे चुके हैं कि इस मामले को कोर्ट में ले जाने का कोई फायदा नहीं है।