उत्तर-प्रदेश के सोनभद्र की राबर्ट्सगंज तहसील में इंजीनियरिंग कालेज का
निर्माण होना था. स्थल चयन के लिए सरकार की ओर से गठित चार सदस्यीय बिशेषज्ञ समिति
ने चुर्क गाँव केखसरा/सर्वे नंबर 613 को उपयुक्त नहीं पाया.
बिशेष सचिव
मुख्यमंत्री ने 23 मार्च 13 को इंजीनियरिंग कालेज के निर्माण हेतु जमीन उपलब्ध कराने के लिए कलक्टर
को पत्र लिखा. कलक्टर ने राजस्व व बन बिभाग के अधिकारियों को कार्यवाही हेतु
कहा.सभी नियम,अधिनियम और कानून को दर किनार करते हुए राबर्ट्सगंज उप जिलाधिकारी ने
उ०प्र० जमींदारी विनाश एवं भूमि ब्यवस्था अधिनियम के 161 धारा का सहारा लेते हुए चुर्क गाँव केखसरा/सर्वे नंबर 613 की 4.5
हेक्टेयर व 606 की 0.5 हेक्टेयर आरक्षित बन भूमि को इंजीनियरिंग कालेज को तथा मड़कुड़ी गाँव केखसरा/सर्वे नंबर 1019 एक हेक्टेयर तथा 990 चार हेक्टेयर को बन बिभाग
को अदला-बदली(Exchange) करते हुए दे दिया. आदेश दिया कि बन बिभाग भारतीय बन
अधिनियम की धारा 4 से मड़कुड़ी गाँव केखसरा/सर्वे नंबर 1019 एक हेक्टेयर तथा
990 चार हेक्टेयर को भारतीय बन अधिनियम की धारा 4 से आच्छादित करे तथा प्राबिधिक
शिक्षा बिभाग चुर्क गाँव केखसरा/सर्वे नंबर 613 की 4.5 हेक्टेयर व 606 की 0.5
हेक्टेयर आरक्षित बन भूमि पर अपना नाम दर्ज करा ले. एक तरफ ने उ०प्र० जमींदारी
विनाश एवं भूमि ब्यवस्था अधिनियम दूसरी तरफ भारतीय बन अधिनियम की धारा 4 और सबसे
ऊपर उप जिलाधिकारी का आदेश. बन संरक्षण अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं
कि कोई भी बन भूमि पर्यावरण एवं बन
मंत्रालय की अनुमति के बिना हस्तांतरित नहीं की जा सकती है,तथा उ०प्र० जमींदारी
विनाश एवं भूमि ब्यवस्था अधिनियम आरक्षित बन भूमि पर लागू नहीं होता. अब केंद्र
सरकार के पर्यावरण एवं बन मंत्रालय (MOEF) के मध्य क्षेत्र कार्यालय ने सोनभद्र के
प्रभागीय बन अधिकारी व राबर्ट्सगंज उप जिलाधिकारी और राबर्ट्सगंज तहसीलदार को बन संरक्षण अधिनियम के
उल्लंघन के लिए नोटिस भेजा है.ब्यूरोक्रेट उप जिलाधिकारी व तहसीलदार टेक्नोक्रेट
केन्द्रीय बन अधिकारी की नोटिस को अपनी अर्धन्यायिक व न्यायिक प्रक्रिया में गलत
दखल बता रहें हैं. मुश्किल को गैरमुमकिन बनाने का काम करने में अपने अफसरों का कोई जवाब नहीं। वे राह में इतनी मुश्किलें खड़ी करने में माहिर हैं कि होता हुआ काम भी न होने की स्थिति में आ जाए।
कानपुर की टेनरी - अब इस कला-कौशल का दूसरा पक्ष यह है कि रसायन,
गंदगी और बदबू ने यहां ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि जिंदगी घुटती जा रही है। कुछ कारीगरों ने बताया कि टेनरी में काम करते-करते सांस की बीमारी हो जाती है। यदि दलित बस्तियों का सर्वे कर लिया जाए तो बीमारी से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा आंकड़ा यहीं नजर आएगा। टेनरी शिफ्टिंग को जी-जान से लगे समाज के नेता मदन लाल पलवार ने बताया कि सरकार ने टेनरी शिफ्टिंग के लिए खंदारी के पास जमीन दी थी, लेकिन बेचकर टेनरी संचालकों ने ही सिकंदरा में जगह ले ली। उस पर भी कब्जे का कोई विवाद चल रहा है। न्यायालय ने भी आदेश जारी कर दिए हैं। एक मुकदमा तो एडीए,
नगर निगम, प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व कुछ क्षेत्रवासियों के खिलाफ चल रहा है।
उच्च न्यायालय
इलाहाबाद के तीन निर्णयों में इन ब्यूरोक्रेट के बारे में बिस्तृत बिवरणसहित आदेश है.
1 - Chandra Bhan
And Parashu Ram, Both Sons Of Palki vs Deputy Director Of Consolidation And
Ors. on 13 December, 2005
3- Amit
Kumar vs State Of Uttar Pradesh And Ors. (2003) 2 UPLBEC 1733
इस वाद में तथ्य यह था कि
केंद्र सरकार की १६० एकड़ जमीन नदेसर कैंट वाराणसी में है,जिसका खसरा/सर्वे नंबर १७ है.जो रक्षा बिभाग की
है.रक्षा बिभाग ने इसकी आमदनी के ३/४ भाग को नगर पालिका/जिला पंचायत और १/४ भाग
राज्य सरकार को देने का MoU
१८९६ में किया था.
अफसरों ने इस जमीन
को 17.7.1957 को लीज पर दिया .
बाद में १६००० रुपये में फ्रीहोल्ड करते हुए 2.5.98 को बिक्री-पत्र लिख दिया. 21.3.2001 को उक्त लेखपत्र के
निरस्तीकरण की नोटिस दे दिया.
17.11.1997 को ही Defence
Estate Officer, Allahabad पत्र लिख चुके थे
कि कोई बैनामा इत्यादि उक्त जमीन का न किया जाय.
खतौनी में रक्षा बिभाग दर्ज है.
11.5.1998 को कमिश्नर का पत्र
रहते हुए कि वाराणसी नगर निगम को केवल उक्त जमीन पर सुखाधिकार उपभोग करने का
अधिकार है.यह कार्यवाही कर डाली गयी. 11.5.1998 का पत्र काफी
बिचार-बिमर्श के बाद लिखा गया था.
कैंट क्षेत्र की जमीन व बंगलों के बारे में स्थिति यह है कि छावनी में तीन तरह के बंगले मौजूद हैं। ओल्ड
ग्रांट प्रापर्टी एक स्थाई संपत्ति है, जिस पर जब तक सेना न चाहे संपत्ति का मालिकाना
हक बना रहेगा। दूसरे लीज पर दिए गए बंगले हैं, जिसमें कैंट कोड एक्ट 1911-12 के तहत मामूली
वार्षिक शुल्क पर 99 बरस की लीज दी गई है। लीज की दूसरी पॉलिसी 1925 शिड्यूल 6 के
तहत है। इसमें 90 बरस की लीज मिलती है, जिसे हर तीस साल बाद रिन्यू किया जाता है।
तीसरी फ्री होल्ड प्रॉपर्टी है, जिनकी संख्या बेहद कम है। कैंट कोड के तहत जिन
बंगलों के पट्टे हुए थे, उनकी अवधि 2010-11 में खत्म हो गयी है। शिड्यूल 6 के बंगलों की अवधि 2015 तक है।
इसके चलते उत्तरांचल और यूपी की छावनियों के बंगला मालिक लीज बढ़ाने के लिए रक्षा
संपदा अधिकारी के कार्यालय में आवेदन कर रहे हैं, लेकिन अफसरों के पास लीज बढ़ाने का आदेश नहीं
हैं। सूत्रों का कहना है कि भारतीय सेना छावनियों में मौजूद बंगलों की लीज दोबारा
करने के पक्ष में नहीं है। । रक्षा मंत्रालय ने भी दोबारा लीज रिन्यू करने पर ठंडा
रुख कर रखा है। इसके लिए न तो पॉलिसी
तैयार की है और ना ही सेना तैयार है।सेना पहले ही सरकार से इन बंगलों को अधिगृहीत
करने की मांग कर चुकी है। इस पर संसदीय कमेटी गठित हुई और उसकी रिपोर्ट पर अभी
विचार कर अंतिम फैसला सरकार लेगी।
वाराणसी कैंटोंमेंट
क्षेत्र के होटल-मॉल मामले में हुए घोटाले ने पूर्व सांसद के साथ ही आधा दर्जन से
अधिक विभागों को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। इन विभागों ने मानचित्र पास होने
से पूर्व स्थलीय सत्यापन की रिपोर्ट दी थी। इन रिपोर्टो पर सवालिया निशान लगने लगे
हैं। सरकारी दस्तावेजों की मानें तो होटल-मॉल के लिए पूर्व सांसद के भाई ने विकास
प्राधिकरण में जो आवेदन दाखिल किया उसमें आराजी नंबर 8/ 2
दिखाया गया जिसका रकबा मात्र 18 बिस्वा है। इसी आराजी नंबर की खतौनी भी
लगाई गई। इसकी पत्रावली चलने लगी। इसी क्रम में विकास प्राधिकरण ने पुलिस कार्यालय, अग्निशमन
विभाग, लोक निर्माण विभाग,
बिजली विभाग, जल संस्थान, नगर
निगम के साथ ही तहसील और नजूल विभागों से अनापत्ति मांगी। इन सभी विभागों ने अपने
कारिंदों द्वारा किए गए स्थलीय सत्यापन के हवाले से अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी कर
दिया। वीडीए बोर्ड की बैठक में यह मामला रखा गया। बैठक में बोर्ड अध्यक्ष/ कमिश्नर
ने मामले को विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष को इस टिप्पणी के साथ संदर्भित कर दिया कि
पत्रावलियों और मामले की गहन जांच कर मानचित्र की स्वीकृति के बाबत निर्णय लें। इस
पर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष ने 15 जुलाई 2003 को
मानचित्र को मंजूरी दे दी। इसके चंद दिनों के बाद पूर्व सांसद के भाई की ओर से एक
और आवेदन विकास प्राधिकरण को दिया गया जिसमें कहा गया कि मानचित्र पर गलती से
आराजी नंबरी 8/
2 लिख दिया गया था। यह वास्तव में आराजी नंबर 3 है।
इसे संशोधित कर दिया जाए। खास बात यह कि आराजी नंबर 3 का
रकबा 8/ 2 से कई गुना अधिक 290 बिस्वा है। जानकारों की मानें तो इस आवेदन के मिलने के बाद विकास प्राधिकरण
को नये सिरे से पत्रावलियां चलानी चाहिए थी। सभी विभागों से नया अनापत्ति
प्रमाणपत्र लिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा न कर 18 मई 2006 को
संशोधित मानचित्र को भी मंजूरी दे दी गई। ताज्जुब की बात यह भी है कि मानचित्र में
भूखंड के एक-एक इंच का हिसाब दर्ज रहता है। फिर भी किसी विभाग को यह नजर नहीं आया
कि होटल-मॉल 18 बिस्वा के भूखंड पर नहीं बल्कि 290 बिस्वा जमीन पर बन रहा है। इसे
विशेष जांच प्रकोष्ठ (एसआईएस) ने बेहद गंभीरता से लिया है।
वाराणसी, : हुकुलगंज व कॉटन मिल में मौजूद दो बेशकीमती संपत्तियों की जांच होगी। जिला प्रशासन को शक है कि दोनों संपत्तियां नजूल की हैं या इनके वारिस अब इस दुनिया में नहीं हैं। एडीएम (सिटी) ने बताया कि कॉटन मिल में दस बिस्वा से अधिक की एक भूमि पर सिविल डिफेंस का जैतपुरा प्रखंड का दफ्तर व परिसर में केंद्रीय भंडारण गृह मौजूद हैं। इसी भूमि पर एक ट्रांसपोर्टर ने भी कब्जा जमा रखा है। दूसरी ओर हुकुलगंज क्षेत्र में भी सिविल डिफेंस का कलेक्ट्रेट प्रखंड का कार्यालय है। जिस भूमि पर कार्यालय है वह लगभग एक एकड़ है। उसमें गैराज व अन्य दुकानें हैं। दोनों ही स्थानों पर काबिज लोगों से जमीन से संबंधित कागजात मांगे जा चुके हैं लेकिन अभी तक कोई उपलब्ध नहीं करा पाया है। जानकारी के अनुसार क्षेत्र के दबंग उक्त भूमि पर काबिज लोगों से किराया भी वसूलते हैं। इसमें सिविल डिफेंस के भी कुछ लोगों के शामिल होने का शक है। एडीएम (सिटी) ने बताया कि कॉटन मिल व हुकुलगंज वाली जमीन का रिकार्ड खंगालने के लिए क्रमश: एसीएम (तृतीय), एसीएम (चतुर्थ) के साथ तहसीलदार सदर को लगाया गया है। जमीन संबंधित दस्तोवज उपलब्ध होने के बाद आगे की कार्रवाई शुरू की जाएगी।
असहनीय और अकथनीय कथा है,जमीन पर अफसरों की मनमानी की.
मुख्यमंत्री ने वन भूमि पर पट्टा दिलाने में अनियमितता
बरतने व सक्षम स्तर के अनुमोदन के बिना अभिलेख में काट-छांट व ओवरराइटिंग करने पर
ओबरा (सोनभद्र)के प्रभागीय वनाधिकारी व रेंजर को निलम्बित कर दिया। । सोनभद्र में
जहां उन्होंने समीक्षा बैठक के दौरान इन अफसरों पर कार्रवाई की वहीं चंदौली के
नक्सल प्रभावित नौगढ़ व्लाक के डुमरिया गांव में चौपाल लगाकर ग्रामीणों की
समस्याएं सुनीं। चंदौली व सोनभद्र में विकास कार्यो में कोताही बरतने तथा
अनियिमितता और भ्रष्टाचार में लिप्त सात अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित
कर दिया। साथ ही उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युद्ध स्तर पर विकास करने
और इन दोनों जिलों के लगभग सात हजार गरीबों पर छोटे मामलों को लेकर लम्बे समय से
दर्ज मुकदमों को परीक्षण उपरांत वापस लेने के निर्देश दिया है।
वर्ष 1997
में बसपा सरकार
बनने के बाद मुख्यमंत्री 22 मई को स्वयं कपिलवस्तु (सिद्धार्थनगर)आई और लगभग दो सौ करोड़ रुपये की तमाम योजनाओं का शिलान्यास किया, जिनमें हवाई पट्टी का
निर्माण, विपासना केद्र, हैरिटेज पार्क, बौद्ध संग्राहालय, कला वीथिका, प्रेक्षागृह, इम्पोरियम आदि का
निर्माण किया जाना था। इसके लिए लगभग 10 करोड़ रुपये तत्काल आवंटित हो गये। संस्कृति
विभाग को 17 एकड़ भूमि भी आवंटित कर दी गई। तत्काल काम भी
शुरू हो गया, मगर इसके बाद ही बसपा सरकार के गिर जाने से परियोजना फिर दफन
हो गई।
फिलहाल कपिलवस्तु
के संरक्षित 98.5 एकड़ क्षेत्र में मायावती के शासन में मिले धन से म्यूजियम व
प्रशासनिक भवन ही बन सका है। पूरा क्षेत्र चटियल मैदान बना हुआ है। शाक्यों के राजमहल
व मुख्यस्तूप की ईटें उखड़ रही हैं। चारदीवारी के अभाव में राजप्रासाद
क्षेत्र जानवरों की आरामगाह में तब्दील हो गया है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव के चलते वहां
कोई भी जाना पसंद नही करता। पिछले दिनों कपिलवस्तु देखने आये लखनऊ
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. डी.पी. सिंह के मुताबिक छोटे-छोटे देश अपनी अदना
विरासतों पर गर्व करते हैं, मगर खेद है कि हमारे पास न तो सोच है और न ही संकल्प। ऐसे में
कपिलवस्तु को उपेक्षित तो होना ही है। कपिलवस्तु की उपेक्षा के सवाल पर जिला
पर्यटन अधिकारी अरविंद राय का कहना है कि क्षेत्र विकास के लिए विभाग सदा शासन से पत्र
व्यवहार करता रहता है और शासन से जो धन अथवा दिशा निर्देश मिलता है, उसी आधार पर
निर्माण कार्य किया जाता है। वर्ष 1984 में तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इस स्थल
के विकास के लिए एक महायोजना घोषित की। इस योजना की ब्लूप्रिंट भी तैयार हुआ। इसके लिए 98.5 एकड़ जमीन भी अधिग्रहीत कर ली गई
उत्तर-प्रदेश में आधुनिकरण
के खोखले दावों के बीच अग्निशमन विभाग 1944 में बने अधिनियम के अनुसार ही चल रहा है।
संयुक्त प्रांत अग्निशमन सेवा अधिनियम द्वारा तब की आबादी और क्षेत्रफल को
देखते हुए शहरों में जो व्यवस्था की गयी थी वही कमोबेश आज भी कायम है। यही वजह है कि
फायर स्टेशनों के बीच की दूरी और फायर टेंडरों के अभाव में आग पर समय रहते काबू करना
मुश्किल हो रहा है।
सूबे के 75 जिलों में अब तक
सिर्फ 177
फायर स्टेशन ही
खुल पाये हैं जिनमें संसाधनों का टोटा है। सूबे में छोटी और बड़ी
गाड़ियां मिलाकर कुल 1100 के करीब फायर टेंडर हैं। इनमें
अधिकांश इतने जर्जर हो चुके हैं कि वह केवल कागजों पर ही दौड़ रहे हैं। विभाग की कोई
अपनी वर्कशाप तक नहीं है जिससे जर्जर वाहनों की मरम्मत की जा सके।
ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनमें नौकरशाही की बेफिक्र कार्यशैली के कारण राज्य सरकार को शर्मसार होना पड़ा। 24 जुलाई 09 को केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने
राज्यसभा में यह जानकारी देकर यूपी के सांसदों के सिर झुका दिये कि यूपी सरकार ने सूखा पर
केंद्र सरकार से मदद पाने
के लिए आज तक संपर्क नहीं किया, और केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा इसके लिए प्रयास करने पर राज्य सरकार के शीर्षस्थ पदाधिकारियों से बात तक नहीं
हुई। 18 अगस्त 09 को यूपी का सरकारी अमला मौजूदा वित्तीय वर्ष की
वार्षिक योजना की बैठक के लिए आधी-अधूरी तैयारी के
साथ दिल्ली पहुंच गया। तैयारी न होने की वजह से बैठक स्थगित करनी पड़ी। उच्च न्यायालय ने
सिंचाई विभाग के सचिव को अवमानना एवं गलत शपथपत्र देने के आरोप में 23 अक्टूबर 09 को न्यायिक हिरासत में रखा और अगले दिन उन पर 50 हजार रुपये जुर्माना किया।
यूनियन काबाईड के मालिक और गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को जमानत पर छोडऩे का फैसला तत्कालीन मुख्य सचिव ब्रह्मस्वरूप के कमरे में हुआ था। जबकि, जमानत के दस्तावेज यूका के गेस्ट हाउस में तैयार हुए थे। यह बात तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने गैस त्रासदी मामले की जांच कर रहे आयोग के समक्ष कही है। हालांकि, श्री सिंह ने यह भी कहा कि एंडरसन रिहा कैसे हुआ, ये उन्हें नहीं पता।
मंगलवार को जांच आयोग के अध्यक्ष के सामने दिए बयान में मोती सिंह ने एंडरसन की गिरफ्तारी और रिहाई का पूरा ब्योरा दिया। उन्होंने बताया - '7 दिसंबर 1984 की सुबह मुख्यमंत्री निवास पर यूका के मालिक वारेन एंडरसन, केशुब महेंद्रा और विजय गोखले के आने की जानकारी मिली थी। मुख्यमंत्री निवास से तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी 'उनकी कार से एंडरसन को गिरफ्तार करने गए थे।' एयरपोर्ट से यूका मालिक समेत तीनों व्यक्तियों को सीधे गेस्ट हाउस लाया गया
आसाराम बापू के प्रवचन के लिए वर्ष
2002 में रतलाम में जो जमीन किराए पर ली गई थी अब उस पर उनका कब्जा है। करीब 200 एकड़ की इस जमीन की कीमत
700 करोड़ रुपए आंकी गई है। केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मंत्रालय से जुड़े सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) की पड़ताल में यह राज खुला है। कंपनी के तत्कालीन प्रबंधन ने जनवरी 2002 में यह जमीन आसाराम के प्रवचन के लिए एक हजार रुपए रोज के किराए पर 11 दिन के लिए दी थी।
महंगी
गाडि़यों में चलने वाले संतों में महामंडलेश्वर पायलट बाबा बाजी मारे हुए हैं।
उनकी ऑडी क्यू सेवन गाड़ी 65 लाख रुपये से ज्यादा की है।
अग्नि अखाड़ा के महामंडलेश्वर आचार्य रसानंद जी महाराज करीब 25 लाख रुपये की पजेरो स्पोर्ट में चलते हैं।
पूछने पर कहते हैं-भक्त ने दी है, इस्तेमाल कर रहे हैं। श्रीपंचायती अखाड़ा बड़ा
उदासीन के आश्रम परिसर में खड़ी शेवरलेट की कैप्टिवा की नेम प्लेट ढंकी हुई है।
पास खड़ा सेवादार कवर हटाने की अनुमति नहीं देता। यह गाड़ी भी किसी बड़े पदधारी
साधु की। श्रीपंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के महामंडलेश्वर स्वामी निज स्वरूपानंद
पुरी मित्शुबिशी पजेरो में चलते हैं। इसी ब्रांड की गाड़ी श्री पंचायती शंभू
पंचायती अटल अखाड़ा के महामंडलेश्वर आचार्य शुकदेवानंद जी महाराज के पास है।
महामंडलेश्वर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी महाराज टोयोटा फॉर्च्यूनर में चलते हैं।
आनंद पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी गहनानंद जी के पास आवागमन के लिए करीब
18 लाख रुपये की चमचमाती होंडा सिविक कार है।
बागपत के एक महंत भी मकर संक्रांति के दिन और उसके अगले दिन 16 लाख की एक्सयूवी 500 गाड़ी में घूमते दिखे। लकदक गाडि़यों में घूमने
वाले साधुओं की सूची में और भी कई नाम हैं।
श्मशान में भी काट दिए प्लॉट
भोपाल. जहां श्मशान होना चाहिए था,वहां भी प्लॉट काट दिए गए।
गृह निर्माण समिति ने सरकारी जमीन को भी नहीं बख्शा और इन सब पर मुहर लगाई टाउन
एंड कंट्री प्लानिंग (टीएंडसीपी) ने। टीएंडसीपी की यह गड़बड़ी जिला प्रशासन द्वारा
हाल ही में कराई गई जांच में उजागर हुई है। प्लॉट के खरीदार अपनी जमीन और पैसों के
लिए चक्कर लगा रहे हैं।
एक मामले में गड़बड़ी तो पल्लवी गृह निर्माण समिति के आवेदन पर प्रशासन द्वारा
सीमांकन करने में सामने आई है, जबकि दूसरे मामले में गणोश नगर सहकारी
समिति की लोकायुक्त में हुई शिकायत के बाद गड़बड़ी उजागर हुई।
दोनों ही मामलों में टीएंडसीपी अफसरों की मिलीभगत सामने आई है, जिन्होंने
लेआउट पास किए। इन दो ताजे मामलों के बाद जिला प्रशासन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई
के लिए टीएंडसीपी को पत्र लिखने जा रहा है।
गौरतलब है पूर्व में भी राजधानी की गृह निर्माण समितियों की जांच में
गड़बड़ियां उजागर हुई थीं। इनमें कई कॉलोनियों में पार्क की जमीन पर प्लॉट काट दिए
गए। टीएंडसीपी का नक्शा देखकर प्लॉट खरीदार भरोसा कर लेते हैं और फिर जांच में जब
सच्चई सामने आती है,
तो प्लॉट खरीदने वालों की जीवनभर की कमाई डूब जाती है।
पीड़ित व्यक्ति के हाथ में न प्लॉट रहता है और न पैसा।
मरघट की जमीन पर पास कराया ले-आउट
हाल ही में पल्लवी गृह निर्माण समिति की बावड़िया कलां के खसरा नंबर 25, 26 व
27 की करीब 25 एकड़ जमीन का सीमांकन तहसीलदार राजधानी परियोजना सीपी निगम ने
कराया। इसमें खुलासा हुआ कि समिति के पास कुल 25 एकड़ 48 डेसीमल जमीन थी, जबकि
टीएंडसीपी ने वर्ष 2000 में समिति को 27 एकड़ 40 डेसीमल जमीन पर ले-आउट पास कर
दिया। इसमें खसरा नंबर 28 में स्थित श्मशान की जमीन भी शामिल कर ली गई।
समिति ने श्मशान की जमीन पर करीब 25 प्लॉट काटकर बेच दिए। अब खरीदार बिल्डर के
चक्कर लगा रहे हैं।
सरकारी जमीन की परवाह नहीं
होशंगाबाद रोड पर स्थित गणोश नगर सहकारी समिति के मामले में टीएंडसीपी ने दो
एकड़ सरकारी जमीन पर ले-आउट पास कर दिया है। इस सरकारी जमीन पर समिति ने कुछ प्लॉट
काट दिए हैं,
वहीं कुछ जमीन खाली पड़ी है। इस जमीन पर फिलहाल झुग्गियां
और एक आंगनबाड़ी बनाई गई है। लोकायुक्त में भी इस मामले की शिकायत हुई है। इस
फर्जीवाड़े का सबसे ज्यादा नुकसान उन लोगों को उठाना पड़ता है जिन्होंने ये प्लॉट
खरीदे हैं।
राजस्व विभाग के प्रमाणित नक्शे पर टीएंडसीपी ले आउट पास करता है। अगर इस
नक्शे से ज्यादा जमीन पर टीएंडसीपी ने ले-आउट पास किया है, तो
हमारी गलती है। हम ऐसे मामलों में कार्रवाई करेंगे।
आशीष उपाध्याय,डायरेक्टर,टीएंडसीपी
ले-आउट पास करने में गड़बड़ी हुई है, तो हम टीएंडसीपी को दोषियों
के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए लिखेंगे। टीएंडसीपी को नजूल या तहसीलदार की एनओसी
लेकर ही ले-आउट पास करना चाहिए।
निकुंज श्रीवास्तव,कलेक्टर
पार्क की जमीन पर प्लॉट
जिला प्रशासन की जांच में पिछले दिनों नरेला शंकरी में स्थित कमला नगर कॉलोनी
में पार्क की जमीन पर प्लॉट काटे जाने का मामला उजागर हुआ था। इसमें बिल्डर के पास
टीएंडसीपी का ले-आउट भी मिला था, जिसमें पार्क की जमीन की जगह प्लॉट दिखाए
गए थे। जिला प्रशासन ने ऐसे लगभग एक दर्जन से ज्यादा प्लॉट को अतिक्रमण में घोषित
कर दिया।
न्यायालय तक इनकी कारस्तानी से परिचित है. राजस्थान हाई कोर्ट ने 6 जनवरी 10 को अलवर जिले के थानागाजी
में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बने मंदिर के मामले में स्वप्रेरित संज्ञान लिया
था। हाई कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव, राजस्व सचिव व देवस्थान विभाग आयुक्त से पूछा
था कि क्यों न मंदिर को देवस्थान विभाग के कब्जे में ले लिया जाए. पता चला कि
प्रदेश में 58000 से अधिक धार्मिक स्थल ऐसे हैं जो कि सरकारी जमीन व सड़कों पर हैं
और यातायात में बाधक भी बन रहे हैं। इनमें से सीकर व अलवर में तीन—तीन हजार हैं।
ऐसे स्थलों को शिफ्ट करने के लिए सरकार ने 8 सितंबर को एक नीति बनाई। नीति बनाने
और कोई काम न होने को देख राजस्थान हाई कोर्ट एक मॉनिटरिंग कमेटी नियुक्त की. अफसर उच्चतम न्यायालय अपील दाखिल की . ३० अगस्त ११ को सुप्रीम
कोर्ट ने राज्य सरकार, जयपुर
विकास प्राघिकरण व जयपुर नगर निगम को मास्टर, जोनल प्लान में दर्शाई सार्वजनिक भूमि पर
अतिक्रमण या निर्माण को नियमित नहीं करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, स्पष्ट किया कि कच्ची बस्ती
वालों के पुनर्वास सरकार केनीतिगत
फैसले में अदालत का यह आदेश आड़े नहीं आएगा।
न्यायाधीश जी.एस. सिंघवी व ए.के.
गांगुली की पीठ ने महाघिवक्ता जी.एस.बाफना, अघिवक्ता सुशील कुमार जैन और पुनीत जैन व अन्य को सुनने के
बाद यह आदेश पारित किए। न्यायालय ने मंगलवार को जयपुर को वल्र्ड
क्लास हेरिटेज सिटी बनाने के लिए राज्य के महाघिवक्ता बाफना के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
मॉनिटरिंग की जगह एम्पावर्ड कमेटी
न्यायालय
ने कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से नियुक्त मॉनिटरिंग कमेटी 15 सितम्बर से कार्य करना बंद कर
दे। इसके स्थान पर जयपुर को वल्र्ड क्लास हेरिटेज सिटी
बनाए जाने के लिए राज्य सरकार के सुझाव पर दो सेवानिवृत्त न्यायाधीश वी.एस. दवे और आई.एस. इसरानी की
एम्पावर्ड कमेटी का गठन कर दिया है, जो राज्य सरकार से विचार-विमर्श के बाद प्लान पर
क्रियान्वयन सुनिश्चित करेगी।
न्यायालय ने कहा कि एम्पावर्ड कमेटी का
कार्यकाल दो वर्ष का होगा, जो 15 सितम्बर 2011 से शुरू होगा। यह कमेटी राज्य सरकार, नगर निगम और जेडीए को सुझाव देगी कि जयपुर रीजन में अतिक्रमण, अनाघिकृत भूमि प्रयोग और
अनाघिकृत निर्माण को कैसे रोका जा सकता है?
विभिन्न मामलों में ध्यान
एम्पावर्ड
कमेटी शहर की सफाई, यातायात व्यवस्था, सार्व. सुविधाओं के प्रावधान व
पार्किग मामले भी देखेंगी। कमेटी जेडीए, नगर निगम और राजस्थान हाउसिंग बोर्ड के क्षेत्र सहित
सम्पूर्ण जयपुर में सार्वजनिक भूमि पर स्थाई अथवा अस्थाई अतिक्रमण
के मामले भी देखेगी। कमेटी को अघिकार होगा कि लोगों की शिकायतें और सुझाव ले सके ओैर स्वयं सम्बन्घित विभाग को
निर्देश दे सके। कमेटी कच्ची बस्ती की समस्याओं के
लिए जेडीए और जेएमसी को सुझाव देगी।
पहली रिपोर्ट दिसम्बर 2011
में :
कमेटी को सभी सुविधाएं देने के लिए जेडीए नोडल एजेन्सी होगी और एक्सपर्ट के भुगतान के लिए भी जेडीए जिम्मेदार
होगी। राज्य सरकार एम्पावर्ड कमेटी के सदस्यों के लिए
मानदेय व अन्य सुविधाएं तय करेगी, जिसे जेडीए वहन करेगा। न्यायालय ने निर्देश दिया कि कमेटी अपनी पहली
रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को इसी साल दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में
पेश कर दे, मामले की सुनवाई 13 दिसम्बर को होगी
उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक भूमि पर बने अवैध धार्मिक स्थलों में से अधिकांश को वैध किया जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो लेखाजोखा पेश किया है उसका यही निष्कर्ष निकलता है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने ताजा हलफनामे में कहा है कि राज्य में कुल 45,152 अवैध धार्मिक स्थल हैं। इनमें से
47 धार्मिक स्थल हटाए गए हैं जबकि 26 दूसरी जगह स्थानांतरित किये गये हैं। राज्य सरकार ने कहा है कि 27,345 निर्माण चिन्हित किए गए हैं जिन्हें संबंधित जिला स्तरीय समितियों ने नियमित करने का निर्णय लिया है। बाकी के बारे में अभी विचार चल रहा है। राज्य सरकार ने बताया है कि सार्वजनिक स्थलों से अवैध धार्मिक स्थल हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल किया जा रहा है। सरकार ने अवैध धार्मिक स्थलों के बारे में 29 जुलाई 2010 को एक नीति भी तय की है जिसके मुताबिक प्रत्येक अवैध धार्मिक स्थल के बारे में अलग अलग विचार करके निर्णय लिया जा रहा है। इसके लिए जिला स्तरीय और मंडल स्तर की समितियां विचार कर रही हैं। सरकार ने तय नीति भी कोर्ट के सामने पेश की है। राज्य सरकार की ओर से यह हलफनामा सुप्रीमकोर्ट के गत वर्ष 27 जुलाई के आदेश पर दाखिल किया गया है। उस आदेश में कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया था कि प्रदेश में 29 सितंबर 2009 के पहले के कितने धार्मिक स्थल सार्वजनिक भूमि पार्क आदि में बने हुए हैं। कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने कितने ऐसे निर्माण हटाये हैं, स्थानांतरित किए है या नियमित किए हैं। कोर्ट ने सरकार से जिलेवार ब्योरा मांगा था। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक स्थलों पर स्थित अवैध धार्मिक स्थलों के मामले में सुनवाई कर रहा है। पीठ ने सभी राज्यों से यह ब्योरा मांगा है।
हिमाचल, मंडी, में सुंदनगर
के नालिनी मुहाल
के खसरा नंबर 173 में स्थित चरागाह बिला दरख्तान किस्म की वन भूमि को सुंदरनगर
में सीमेंट कारखाने
का निर्माण कर
रही कंपनी को
लीज पर दे
दिया गया। सीमेंट
कारखाने के लिए
वनभूमि लीज पर
देने के लिए
केंद्रीय वन एवं
पर्यावरण मंत्रालय से
अनुमति जरूरी थी
और इस के
लिए सुंदनगर फॉरेस्ट
डिविजन से केस
बना कर मंत्रालय
को भेजा जाना
था, लेकिन
इस जमीन के
अधिग्रहण के लिए
ऐसी अनुमति लेना जरूरी नहीं समझा गया। स्थानीय पटवारी
के रोजनामचे में 9 अप्रैल 2010 को
इस जमीन की
लीज होने के
बारे में नोट
चढ़ा दिया गया, जबकि इस
जमीन के हस्तांतर
के बारे में
केंद्रीय वन एवं
पर्यावरण मंत्रालय से
कोई अनुमति नहीं
ली गई।
मध्य-प्रदेश उच्च न्यायालय ने 12 नवंबर 2003 को एक आदेश में पचमढ़ी की जमीनों के हस्तांतरण पर रोक लगाई थी,इसके बावजूद राजस्व अधिकारी ने यह किया। पचमढ़ी के
ग्राम बारीआम की बड़े झाड़ की 23.14 एकड़ भूमि और ग्राम छिरई की 47.38 एकड़ भूमि पिपरिया के एसडीएम एनएस ब्रम्हे ने मप्र भू-राजस्व संहिता की धारा 57 (2) का हवाला देते हुए भोपाल के प्रभावशाली लोगों को दिलवा दी।
हस्तांतरित जमीन की कीमत करोड़ों रुपए है,जबकि मप्र भू-राजस्व संहिता की इस धारा का उपयोग अभयारण्य (आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्र) की भूमि के मामले में नहीं किया जा सकता।
भोपाल में किसानों की एक हजार एकड़ जमीन हड़पने के लिए अफसरों ने नीलामी की पूरी कार्रवाई ही बैंक में बैठे-बैठे कर ली। अधिकारियों और प्रभावशाली लोगों द्वारा जमीन हड़पने का षड्यंत्र कागजों में भी साफ नजर आता है। जो किसान मर गए थे, उनकी जमीन भी नीलाम कर दी गई। मुख्यमंत्री ने जमीन हड़पने की पूरी कहानी सुनने के बाद सहकारिता विभाग और भूमि विकास बैंक के नौ अधिकारियों को निलंबित कर दिया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर न्यायालय में किसानों के केस की पैरवी सरकारी वकील करेंगे।
महाराष्ट्र में इस संबंध में कानून बना रखा है कि किसान की खेती की जमीन सिर्फ किसान ही खरीद सकेगा।अमिताभ जी को भी किसान बन कर और बनाकर अफ़सरो ने जमीन दिलाई! मध्य-प्रदेश किसान संघ लंबे समय से खेती की जमीन पर कांक्रीट की इमारतें खड़ी होने, कारखाने,
स्पेशल इकॉनामिक जोन और सड़कों के लिए कृषि भूमि दी जाने से खेती पर आए संकट के खिलाफ कानून बनाने की मांग कर रहा है। किसान संघ की शिकायत है कि मल्टीनेशनल कंपनियां तथा अन्य बड़े औद्योगिक घराने आदि मप्र में किसानों से भारी पैमाने पर सस्ते में कृषि भूमि खरीद रहे हैं जिससे आम किसानों की रोजी-रोटी संकट में आ गई है। सरकार ने
2009 में अफसरों के साथ किए मंथन कार्यक्रम और इस साल विधानसभा के विशेष सत्र में कृषि भूमि का गैर कृषि कामों में उपयोग न
होने देने का संकल्प लिया था,
लेकिन इस पर अमल आज तक नहीं हो पाया है। कृषि संरक्षण कानून बनाने की जिम्मेदारी केंद्र के दायरे में बताकर अफसरसाही ने पूरे मामले को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है।(Land )
अपने देश के अफ़सरो ने इन जमीनो का खूब बन्दर बाट किया। जो नही करना है उसको केन्द्र के पाले मे डाल दिया। सारी खुराफ़ात इन अफ़सरो के कारण हुई है। जब चाहे जिस जमीन को अधिग्रहित कर ले,
उसका लैण्ड यूज बदल दे,नीलाम कर दे,विकास प्राधिकरण द्वारा अधिसूचित करा दे,
आवास विकास द्वारा ले ले,इत्यादि । कोई प्रक्रिया, कोई चेतावनी ,नोटिस नही!! राजस्व बिभाग का कागज , उनकी बही, जो वे कहे वो सही। सहायता के लिये फ़ारेस्ट, नजूल, सीलिन्ग,नगर निगम,जिला पंचायत
के मुख्य कार्यपालन
अधिकारी ,इत्यादि अफ़सर तो है ही। किसान बेचारा कितना और कहा-कहा जा पायेगा, जब मुख्यमन्त्री तक पनाह माग लिये तो और क्या हो सकता है।
पंजाब एवं हरियाणा
हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार द्वारा एक संस्था की जमीन का अधिग्रहण कर उसे एक निजी
बिल्डर के लिए छोड़ने पर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना
रद करते हुए हरियाणा सरकार पर ढाई लाख रुपये का जुर्माना लगाने का फैसला सुनाया
है। हाईकोर्ट ने जुर्माने की राशि इस मामले में दोषी अधिकारियों से वसूल करने का
भी आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने यह आदेश रोहतक की सिंधू एजूकेशन फाउंडेशन की याचिका
पर सुनवाई के दौरान दिया।
विवाद
की इमारत बनी आदर्श सोसाइटी ने भले ही कई रसूखदारों के सिर पर तलवार लटकने की नौबत
पैदा कर आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू करा दिया हो लेकिन इस इमारत का मालिक कौन है यह अभी
तक किसी को नहीं पता।
रक्षा मंत्रालय ने एक नक्शा दिया है जिसे दिखाकर दावा किया
गया कि जिस जमीन पर आदर्श सोसाइटी की इमारत का निर्माण हुआ है वह उसी की है। इस
दावे की परख के लिए राज्य सरकार से भू-अभिलेखों की मांग की गई है। अधिकारी ने कहा, ‘इस बीच, राज्य
सरकार भी जमीन पर अपना दावा जताती रही है और यह कहती रही है कि सेना ने इस जमीन पर
कब्जा किया है।. दो सदस्यीय आयोग ने
महाराष्ट्र सरकार को अपनी रिपोर्ट आदर्श सोसायटी की इमारत के बारे में राज्य सरकार
को दे दिया है. दो बिंदु थे कि जनीन किसकी थी-आयोग के अनुसार राज्य सरकार की थी.
दूसरा सिर्फ छः मंजिलों के लिए प्रस्तावित इमारत को 31 मंजिलों तक पहुंचाने में
कौन –कौन दोषी हैं. इस दूसरे विन्दु पर 700 पृष्ठ की रिपोर्ट मुख्य सचिव को दे दी
गयी है. परीक्षण चल रहा है ,मुख्यमंत्री यह कहकर कतरा गए कि उक्त रिपोर्ट के आधार
पर कार्रवाई रिपोर्ट ( एटीआर) तैयार न होने से यह रिपोर्ट 2013 मानसून सत्र में सदन में
पेश की जायेगी. वैसे एक राज्य में ऐसी ही रिपोर्ट पाँच साल के परिश्रम के बाद
तैयार हुयी, सरकार बदल कर उसी दल की आगई,जिसके बिरुद्ध रिपोर्ट थी.मुख्य सचिव ने
परीक्षण कर लिखा कि पूरी रिपोर्ट केवल
नियम और शासनादेशों का पुलिंदा भर है,जिसके आधार पर कोई कार्यवाही,या किसी को दोषी
सिद्ध नहीं किया जा सकता.
मुंबई में सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो की जमीन से जुड़ा आरोप है कि रिटा. जनरल दीपक कपूर की जानकारी में फर्जी एनओसी के जरिए ऑर्डिनेंस डिपो की जमीन पैसे लेकर बिल्डर को बेच दी गई। ये खुलासा हुआ है जनरल दीपक कपूर की बेनामी संपत्ति की जांच कर रही सेना की एक अहम रिपोर्ट से। रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के मलाड और कांदिवली में सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो की जमीन अवैध तरीके से दो बिल्डरों को बेची गई। इसका सीधा फायदा जनरल दीपक कपूर और मुंबई एरिया चीफ मेजर जनरल आर के हुड्डा को मिला।1971
से ही रक्षा विभाग ने 12 हजार 66.20 वर्ग मीटर की इस जगह पर निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी। डिफेंस का कहना था कि यहां पर निर्माण ऑर्डिनेंस की सुरक्षा को नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन इस पर एक इमारत बनी और केस चला जिसमें 2001 में बिल्डर के पक्ष में फैसला आया लेकिन डिफेंस ने इस पूरे मामले को हाईकोर्ट में चैलेंज कर दिया और मामला अभी तक पेंडिंग है।लेकिन इस प्लॉट के नए खरीदार धीरज डेवलपर को डिफेंस की ओर से एक एनओसी मिल गई जिसमें सुरक्षा को ताक पर रखकर आलीशान इमारत खडी करने की इजाजत दी गई।
वहीं, जमीन की तलाश कर रहे लोक ग्रुप को भी मलाड ऑर्डिनेंस की ही 66 हजार 630 वर्ग मीटर की जमीन पर निर्माण की इजाजत दे दी गई। डिफेंस की जांच रिपोर्ट में मलाड और कांदिवली की प्रॉपर्टी का लाभभोगी जनरल दीपक कपूर और मुंबई एरिया चीफ मेजर जनरल आर.के हुड्डा को बताया गया।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के
आदेश पर उत्तराखंड प्रशासन ने स्टर्डिया कंपनी को आवंटित 50.74 एकड़ में से 47.98 एकड़ भूमि सीज कर दी।
शेष भूमि पर रह रहे परिवारों को इसे खाली करने का समय दिया गया है। उल्लेखनीय है
कि औद्योगिक नवनिर्माण बोर्ड(बीआईएफआर) की सिफारिश पर राज्य की निशंक सरकार
द्वारा दस अक्टूबर 2009 को ऋषिकेश
स्थित स्टर्डिया कंपनी को कई रियायतें दीं गई थीं, जिनमें भू उपयोग परिवर्तन की अनुमति देते हुए पंद्रह एकड़
भूमि के व्यवसायिक उपयोग की मंजूरी देना प्रमुख था। सरकार के इस फैसले को
उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा ने जनहित याचिका के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची का आरोप था कि सरकार ने 400
करोड़ की भूमि के व्यवसायिक उपयोग की अनुमति देने से पहले जनहित के बारे में
नहीं सोचा, इससे सरकार को
करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि हुई।
सबसे अच्छा खेल नजूल जमीन पर होता है. सबसे चर्चित मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सत्यनारायन कपूर बनाम स्टेट इत्यादि के निर्णय में निहित
है.एक दूसरा मामला सुभाष चौक, खैर, अलीगढ़ का है। 1959 में
यहां नजूल संपत्ति 1785/84 का पट्टा रौती
प्रसाद के हक में दिया गया। 1964 में छेदालाल ने उस जमीन
पर बनी दुकान किराए पर ली। छेदालाल के मुताबिक
वे तब से वहां किराएदार हैं और 1966-67 में
मूल पट्टाधारी रौती प्रसाद
की मृत्यु के बाद
उनके वारिसों ने छेदालाल
को बाहर निकालने के लिए
मुकदमा डाला। लेकिन वारिस सुप्रीम कोर्ट तक से मुकदमा
हार गए। इस बीच उत्तर
प्रदेश सरकार ने नजूल संपत्ति फ्री होल्ड
कराने के समय-समय पर शासनादेश जारी किए।
इन आदेशों में पट्टेदार और जिनके पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी
है दोनों ही तरह के मामलों में नजूल
संपत्ति फ्री होल्ड कराने के नियम जारी किए गए।
याचिकाकर्ता का कहना
है कि जिनके पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी
है या जिन्होंने पट्टे की शर्तो
का उल्लंघन किया है उन्हें
नजूल संपत्ति फ्री होल्ड
कराने का हक नहीं मिलना चाहिए। उन संपत्तियों में यह हक उस व्यक्ति को मिलना
चाहिए जिसके कब्जे में संपत्ति है। जबकि, हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया है कि शासनादेश में पट्टेदार और खत्म हो चुके पट्टे के मामलों में कोई
भेद नहीं किया गया है
ऐसी नजूल संपत्ति जिसका पट्टा वर्षो पहले समाप्त हो चुका है और दोबारा उसका नवीकरण नहीं कराया गया, उसे फ्री होल्ड कराने का हक पट्टाधारक का होगा या उस संपत्ति पर काबिज व्यक्ति का, इस कानूनी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। कोर्ट ने अलीगढ़ की ऐसी ही एक संपत्ति के विवाद में उत्तर प्रदेश सरकार, अलीगढ़ प्रशासन और अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया है।
न्यायमूर्ति पी. सतशिवम और बी.एस. चौहान की पीठ ने अलीगढ़ के छेदालाल नामक व्यक्ति की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार, अलीगढ़ के जिलाधिकारी व अपर जिलाधिकारी [नजूल] और मूल पट्टेदार के कानूनी वारिसों आदि को नोटिस जारी किया। इससे पहले छेदालाल के वकील डी.के. गर्ग ने पीठ से कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का 1 दिसंबर,
1998 का शासकीय आदेश ठीक नहीं है जिसमें खत्म हो चुके पंट्टे के पट्टेदार को भी नजूल संपत्ति फ्री होल्ड कराने का हक दिया गया है। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते समय इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि अवधि समाप्त होने के बाद नजूल संपत्ति [भूमि] पर पट्टेदार का अधिकार नहीं रह जाता। वास्तव में जिसके कब्जे में संपत्ति है उसे ही फ्री होल्ड कराने का हक मिलना चाहिए। कुछ हद तक उनकी दलीलों से सहमति जताते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि नियम के मुताबिक तो पट्टा अवधि खत्म होने के बाद पट्टाधारक का संपत्ति पर कोई हक नहीं रह जाता वह भूमि तो वापस सरकार में निहित हो जाएगी। यह कहते हुए कोर्ट ने प्रतिपक्षियों को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी कर दिए। छेदालाल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।