आकस्मिक अवकाश के
बीच में पड़ने वाले सार्वजनिक अवकाश नहीं जुड़ेगे. दो प्रकार के अवकाश एक साथ सक्षम
अधिकारी स्वीकृत कर सकता है.कोई अवकाश देय
न होने पर भी असाधारण अवकाश जो बिना वेतन के देय है,अनुमन्य किया जा सकता है. प्रसूति (
मातृत्व) व शिशु की देखभाल का अवकाश सनकी,तुगलकी व तानाशाह स्वभाव का सक्षम
अधिकारी अस्वीकृत कर सकता है,भले उसे मानवाधिकार एवं महिला आयोग में उपस्थित होना
पड़े.
उत्तर-प्रदेश के प्राथमिक और
पूर्व माध्यमिक सरकारी कुल 1,54,757 स्कूलों में महिला अध्यापक 2,03,803 हैं ,जिनके लिए 1,19,163 स्कूलों में शौचालय
तक की सुबिधा नहीं है. इनके बैठने तक के लिए 1,22,258 स्कूलों में कोई ब्यवस्था
नहीं है.शिक्षा का अधिकार क़ानून भी है,साथ-साथ अवकाश स्वीकृति हेतु नौकरशाहों के
तुगलकी अंदाज भी है. वैसे पूरे देश में महिला कर्मचारियों की दयनीय स्थिति
है,लेकिन महिलाओं के साथ कैसा वर्ताव होता है,यह किसी देश और समाज को नापने का एक
पैमाना है. इनकी दुर्दशा सीधे बच्चों को प्रभावित करती है. निठारी काण्ड इत्यादि
इन्हीं कारणों से होते हैं. केवल 24 राज्यों के आकडे बताते हैं कि आज तक (अगस्त 13)
कुल 15130 बच्चे लापता हैं,तंत्र केवल 6269 को खोज पाया है. 2012 में
65038 बालक गम हुए जिसमें से 26893 केवल मिल पाए.
मैं आस्ट्रेलिया के
पर्थ शहर में 1 माह तक रहा.वहाँ की महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा सिस्टम (excutives) भलीभांति करता हैं.बच्चे व महिलाओं की सुरक्षा और देखभाल इतनी सख्त है कि आप अपने घर
में भी महिलाओ व बच्चों के साथ किसी तरह
की निर्दयता नहीं कर सकते .होने पर तंत्र तुरंत आपको क़ानून के समक्ष पेश कर
देगा,जहां आप दंड के भागी होंगे. मैकक्वेरी यूनिवर्सिटी मेलबोर्न आस्ट्रेलिया ने 3
साल तक शोध किया कि आस्ट्रेलिया में भारतीय मालिक अपने मातहत भारतीय कार्मिक से
किस तरह का वर्ताव करते हैं.अध्ययन में पाया गया कि सप्ताह भर प्रतिदिन 18 घंटे तक
काम कराना,ओभरटाइम का कोई भुगतान न करना
इत्यादि शोषण का कार्य भारतीय मालिक भारतीय लोगों का कर रहे हैं. अपने ब्यवहार को
सही ठहराते हुए इन मालिकों ने तर्क दिया कि इन लोगों से इनके देश में भी ऐसे ही काम लिया जाता है.
‘आस्ट्रेलिया में 457 अस्थायी वर्क वीजा
पर भारतीयों का अनिश्चित अनुभव’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारतीयों के
स्वामित्व वाले उद्योगों खासतौर से रेस्त्राओं में इन श्रमिकों के प्रति सबसे ज्यादा
असंबेदनशीलता देखी गयी.
The proverbial “glass ceiling” that cuts short women's careers in
science comes not from family, but largely from a systemic bias at the
institutional level, finds the report titled “Trained scientific women power:
How much are we losing and why?” co-authored by Anitha Kurup, Associate
Professor; Maithreyi R., Research Associate at the National Institute of
Advanced Studies; and Rohini Godbole, Professor at the Indian Institute of
Science and Chair of the ‘Women in Science' panel of the Indian Academy of
Sciences.(स्रोत :-THE HINDU- ‘Women scientists face systemic biases')
अवकाश वित्तीय हस्त
पुस्तिका खंड – दो( भाग 2 से 4) के मूल एवं सहायक नियमों में दिये गए हैं.इसके मूल
नियम 67 के अनुसार किसी अवकाश का दावा या माँग अधिकार स्वरुप नहीं किया जा सकता
है.किसी भी प्रकार के अवकाश को निरस्त या अस्वीकृत करने का अधिकार सक्षम अधिकारी
के पास सुरक्षित है,जो वह जनहित में कर सकता है. मूल नियम 70(नियम 51,वित्तीय नियम
संग्रह खंड-तीन ) के अनुसार जन सेवा के हित में अवकाश पर रहने वाले सेवक को बुलाने
का अधिकार भी सक्षम अधिकारी को है.
अवकाश और सरकारी
नौकरी की अपनी समस्या है. सरकारी नौकरी नौकरशाह की मानसिकता से भरी पडी
है.सामंती,असहयोगात्मक और जन-कल्याण से दूर अपने को रखना सरकारी नौकरशाह का प्रथम
कर्तब्य प्रतीत होता है. सरकारी नौकरी में
स्त्रियों की संख्या वैसे भी कम है,लेकिन नौकरशाही की पुरूष मानसिकता इनकी कार्य
संस्कृति को प्रभावित कर रही है.न्यायालय ने अपने एक निर्णय में यह निर्देश दिया
कि महिलाओं को कार्य के स्थान से उनके आवास तक सुरक्षित पहुंचाने की जिम्मेदारी
नियोक्ता की है.इस निर्णय को देखते हुए अनेक निजी कंपनियों ने महिलाओं को नौकरी
देने से किनारा कर लिया,जब कि कैम्पस चुनाव उन्होंने कर लिया था.इसी तरह हर सरकारी
कार्यालय में महिलाओं को प्रसूति अवकाश तथा बच्चे की देखभाल हेतु देय अवकाश देने
में टाल मटोल किया जाता है. कहीं कहीं तो यह मामला मानवाधिकार आयोग व महिला आयोग
तक जा पहुंचा है. शर्मिन्दा होने की वजाय नौकरशाह महिला कर्मचारी की गोपनीय
प्रविष्टि तक खराब कर रहे हैं. औरत नौकरशाह का भी अपने मातहत से यही आचरण कार्य
स्थल पर और भयावह स्थिति पैदा कर रहा है.लोहिया विश्वविद्यालय लखनऊ में आयोजित
शिक्षक दिवस सम्मान समारोह( 5 सितम्बर 13 ) में बोलते हुए उत्तर प्रदेश के बरिष्ठ
मंत्री अहमद हसन ने भी कह दिया कि प्रदेश
में कुछ महिला अधिकारी अहंकारी हो गयी हैं,जो अच्छे संकेत नहीं है.
अवकाश की अवधारणा कार्य क्षमता को और बढाने में
सहायक मानकर की गयी है. कुछ सरकारों ने अपने यहाँ 5 दिन का कार्य दिवस लागू किया
है. यह सब अनेक बिशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट , सांसदों की संसदीय समिति की रिपोर्ट
,और न्यायालय के निर्णय को देखते हुए किया गया है. अनेक शासनादेश और सर्कुलर में
इसे दुहराया गया है. हाल में उत्तर-प्रदेश सरकार ने प्रसूति अवकाश का लाभ अपने
संविदा पर रखे कर्मचारियों के लिए भी अनुमन्य कर दिया है,लेकिन नौकरशाहों ने इसमें
भी अपना नुक्ताचीनी लगाकर यह शर्त लगा दी कि उन्हें बच्चों की देखभाल का अवकाश देय
नहीं होगा. अब शायद मुख्यमंत्री की डांट-फटकार के बाद इसे भी देने को अफसर राजी हों. भूतपूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी श्री के० एम०
चंद्रशेखर का इंटरब्यू दिनांक 20 अगस्त 13 के Hindustan times –INSIDE GOVERNMENT Page पर छापा है, जिसके
अनुसार “When I entered the civil service in 1970 ,the range and ambit of
government services was much smaller ,Besides,other components of national
governance,namely ,the political excutive and the judiciary have grown in their
reach and authority ,thus shrinking the space available for the administrative
excutive.The regulatory system,including audit, has also grown much larger .For
these reasons ,I think decisions making ,like other aspects of governance ,has
been affected.
---there are serious
systemic flaws in our administrative mechanism.We operate under a set of
archaic rules using procedures no longer relevant .Our systems are still based
on colonial concepts of concentration of power and distrust”
02सितम्बर 1938 को देश बंधु
बालिका बिद्यालय कलकत्ता के आशुतोष हाल में नेताजी (कांग्रेस अध्यक्ष) सुभाष चन्द्र बोस ने कहा “”समय और
उसके बाद प्रांतीय महिलाओं ने राष्ट्र की
आवाज को सुना.हम लोग एक समर में पग धरने लगे हैं.महिलाओं को भी हमारे साथ चलना
होगा,क्योंकि वे भी हमारे समाज का आधा अंश हैं. औरतों को मालूम होना चाहिए कि
परिवार के सिवाय समाज और देश के प्रति भी उनके कुछ कर्तब्य हैं.महिलाओं को अपने
अन्दर आत्मविश्वास और एकता पैदा करनी चाहिए.”
यह महान बिचार स्वतन्त्रता के पूर्व
से हमारे नेताओं के हैं. स्वतंतत्रता के पूर्व से हमारे देश के नेता,सांसद,बिधायक
और न्यायविद ने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए अनेक कल्याणकारी क़ानून को बनाया है.महिलाओं
को वोट देने का अधिकार,सांसद- बिधायक चुनाव में भाग लेने का अधिकार इत्यादि बड़े
महत्वपूर्ण क़ानून इनके द्वारा बनाए गए.
सचमुच मदमस्त,और
संदिग्ध चरित्र की नौकरशाही देश का अहित कर रही है.नौकरशाह द्वारा नियम-क़ानून और शासनादेश की मनमानी ब्याख्या
इनके क्षेत्राधिकार को संकुचित करती है और बिधायिका और न्याय पालिका को न्याय हित
व जनहित में इनके निर्दयी निर्णयों को खारिज करना पड़ता है. प्रशासन व बिभाग के
अफसर अनुमन्य सरकारी सुबिधाओं को नहीं देते . स्थानान्तरण करेंगे लेकिन
स्थानान्तरण यात्रा-भत्ता के मद में कोई धन राशि नहीं देगें. पूरे सेवाकाल में
आपको L.T.C एक भी
स्वीकृत नहीं करेगे. मेडिकल प्रतिपूर्ति
को अनसुना रक्खेगे. आपकी इन अर्जियों को ऐसे देखेगे जैसे आपने यह माँगकर कोई जुर्म
कर दिया हो.अगर ज्यादा दबाब डालेंगे तो गोपनीय प्रविष्टि तो है ही. इसके बिपरीत अपने लडके
,रिश्तेदार इत्यादि हेतु सभी नियम क़ानून की तरफ से आँख मूँद लेंगे. यह बात सुप्रीम
कोर्ट में सीबीआई की रिपोर्ट से सिद्ध है .हरियाणा के तत्कालीन प्रधान सचिव रिटायर्ड आइएएस बीडी
ढालिया के पुत्र अनुराग ढालिया को एचसीएस बनाने के लिए 66 अधिकारियों
की वरिष्ठता सूची को भी नजरअंदाज किया गया। एचसीएस अधिकारियों का मनोयन वर्ष 2004 में
किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक रिटायर्ड आइएएस बीडी ढालिया के पुत्र अनुराग
ढालिया को उनके चाचा डीएम ढालिया के निधन के बाद नायब तहसीलदार के पद पर नियुक्त
किया गया था। वरिष्ठता सूची में अनुराग ढालिया 66 वें नंबर पर था, जिसे पहले से कम कर 40 सीनियर
अधिकारियों की सूची में लाया गया और बाद में नियमों में बदलाव कर उन्हें टॉप पर
पहुंचा दिया गया। सीबीआइ ने अपनी रिपोर्ट में लाभान्वित सभी आठ एचसीएस अधिकारियों
के मनोनयन को रद करने की भी सिफारिश की है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 81 पेज
की जांच रिपोर्ट में सीबीआइ ने माना कि तय नियमों से छेड़छाड़ कर 8 अधिकारियों
को लाभ पहुंचाया गया।
आजकल
सुशासन और कार्यक्षमता को उच्चतम शिखर पर
पहुंचाने के लिए नित नए प्रयोग हो रहे हैं. पारदर्शी स्वशासन [सेल्फ गवर्नेस] का अभाव उत्पादकता और कार्यक्षमता को बुरी
तरह प्रभावित करता है, अमेरिकी शोध फर्म एलआरएन के एक सर्वे में यह तथ्य सामने आया है। एलआरएन के मुताबिक आमतौर पर प्रबंधन
का संचालन तीन तरह से किया जाता है:-
1- अंधी आज्ञाकारी प्रबंधन,
अंध आज्ञाकारी प्रबंधन में प्रत्येक फैसले व्यक्ति विशेष [मालिक या चेयरमैन] द्वारा लिए जाते हैं। इन प्रबंधन के कर्मचारी डर की वजह से काम करते हैं। ऐसे प्रबंधन के 26 फीसद कर्मचारी नवाचारी [नई-नई खोज और शोध करने वाले] होते हैं। अंध आज्ञाकारिता प्रबंधन
43.3 फीसद पाई गई।
2-समझते हुए भी मौन स्वीकृति देने वाले कारोबारी मॉडल
देश की ज्यादातर कंपनियों [68 फीसद] का संचालन समझते हुए भी मौन स्वीकृति देने वाले कारोबारी
प्रबंधन मॉडल के आधार पर हो रहा है। इस मॉडल में कर्मचारियों के लिए बड़ी संख्या में नियम और प्रक्रियाएं तय होती हैं। वहीं कर्मचारियों के पदों की लंबी श्रृंखला होती है। मौन स्वीकृति के आधार पर चलने वाले
माडल में नवाचारी [नई-नई खोज और शोध करने वाले]कर्मचारियों की संख्या 71 फीसद रही।
3-
स्वशासन
स्वशासन
वाले कारोबारी मॉडल में प्रबंधन अपने
कर्मचारियों पर भरोसा करती हैं। उनके लिए काफी कम नियम और प्रक्रियाएं तय की जाती हैं। ऐसे मॉडल में निर्णय पारदर्शी सामूहिक सहयोग और मूल्यों के आधार पर होते हैं। एलआरएन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डोव सेडमैन के मुताबिक स्वशासन के मानकों को पूरा करने वाले
प्रबंधन को बाजार में अतिरिक्त लाभ मिलता है। उनमें नयापन सबसे ज्यादा होता है, कर्मचारी निष्ठावान होते हैं और ग्राहकों को संतुष्टि हासिल होती है। ऐसे
मॉडल में अनियमितताएं भी कम पाई जाती हैं।
स्वशासन वाले
प्रबंधन के 93.3 फीसद कर्मचारियों ने प्रबंधन के प्रति निष्ठा जताई। मौन स्वीकृति वाले
प्रबंधन में यह संख्या 35.6 फीसद और अंध आज्ञाकारिता वाले
प्रबंधन में केवल 7.2 फीसद रही। स्वशासन वाले
प्रबंधन के 100 फीसद प्रतिनिधियों ने माना है कि प्रबंधन के काम से ग्राहक संतुष्ट होते हैं। जबकि मौन स्वीकृति वाले
प्रबंधन के 70.2 फीसद प्रतिनिधियों ने ऐसा माना है। अंध आज्ञाकारिता के आधार पर चलने वाले
प्रबंधन के 89.2 फीसद कर्मचारियों ने माना कि उनके काम से ग्राहक संतुष्ट होते हैं।
सर्वे में कहा गया है कि सर्वे में शामिल विभिन्न प्रबंधन के 3,000 कर्मचारियों ने कहा कि स्वशासन के सिद्धांत पर चलने वाले
प्रबंधन अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले ज्यादा फायदे में रहती हैं। ऐसे प्रबंधन के 90 फीसद कर्मचारी नवाचारी [नई-नई खोज और शोध करने वाले] होते हैं।
According to a survey of
over 9000 workers conducted by Clarius
website My Salary Portal and News.om.au top
10 perks in finance,accounting and IT sectors that keep employees happy 1-Car
Park 2-Car loan Or car allowance 3- Mobile phone or phone allowance 4- Flexible working condition
5- Extra annual leave
6-Health care subsidies
7- Additional supper 8 –Flexible
working hours 9-Overtime payments 10- Company paid training ( Hindustan
times ,September 06,2013)
वित्तीय हस्त पुस्तिका खंड – दो( भाग 2 से 4) में बर्णित अवकाश के प्रकार
1- अर्जित अवकाश (Earned
Leave) मूल नियम 81ख सहायक नियम 157- क (1)
2-मातृत्व अवकाश (Maternity
Leave) मूल नियम 101 सहायक नियम 153,154
प्रसूति अवकाश को किसी प्रकार के अवकाश लेखे
में नहीं घटाया जाता तथा अन्य प्रकार की छुट्टी के साथ मिलाया जा सकता है –सहायक
नियम 156
वेतन ,अवकाश पर प्रस्थान करने के ठीक पहले
प्राप्त वेतन के बराबर अवकाश वेतन अनुमन्य होता है.- सहायक नियम 153
3-निजी कार्य का
अवकाश (Leave on private affairs) मूल नियम 81ख (3) सहायक नियम 157 क(3). अस्थायी सेवक को 3 बर्ष की सेवा के
बाद अनुमन्य. वेतन आधा देय
4-चिकित्सा अवकाश (Leave on
medical certificate) मूल नियम 81ख ( 2 ) . सम्पूर्ण सेवाकाल में 12 माह का. आपवादिक
मामलों में चिकित्सा परिषद् की सस्तुति पर 6 माह और दिया जा सकता है. अस्थायी सेवक
जिसकी सेवा 3 बर्ष से कम हो ,सम्पूर्ण अस्थायी सेवाकाल में 4 माह तक अवकाश देय है.
वेतन स्थायी सेवक को 12 माह तक पूर्ण,और अस्थायी को 4 माह तक पूर्ण मूल नियम 87-क ( 2 )--- शासकीय ज्ञाप सा-4-1071/दस-1992-2001/76
दिनांक 21 दिसंबर 1992 में चिकित्सा प्रमाण पत्र के लिए अधिकृत चिकित्सकों के
निर्धारण की सूची दी गयी है.
5-असाधारण अवकाश (Extra Ordinary Leave)-मूल नियम 85 जब कोई अवकाश देय न हो.कोई अवकाश वेतन नहीं दिया जाएगा. स्थाई को
अधिकतम 5 बर्ष तक व अस्थायी को अगर 3 बर्ष से कम सेवा है तो 3 मास
6-हास्पिटल अवकाश (Hospital Leave) मूल नियम 101 जिनकी सेवा में बिशेष खतरा हो.
7-अध्ययन अवकाश (Study Leave) मूल नियम 84
8-विशेष विकलांगता
अवकाश (Special Disability Leave) मूल नियम 66
9-लघु अवकाश ( Commuted Leave) मूल नियम 81-ख (4)
इसके अतिरिक्त मैनुअल
आफ गवर्नमेंट आर्डर उत्तर-प्रदेश के अध्याय 142 के प्रस्तर 1081 से 1086 तक
आकस्मिक अवकाश के नियम दिए गए हैं. प्रस्तर 1089 में प्रतिकार अवकाश का नियम है जिसके
अनुसार छुट्टी में कार्य करने पर दिया जाता है. प्रस्तर 1087 में बिशेष आकस्मिक
अवकाश का प्राबिधान दिया गया है.
इस प्रकार यदि नौकरशाह अपने अहंकार को छोड़कर
देय,अनुमन्य अवकाश को स्वीकृत करे तो मानवाधिकार,महिला आयोग इत्यादि तक जाने की
नौबत ही न हो. इतने प्रकार के अवकाश का प्राविधान कर दिया गया है कि कोई न कोई
अवकाश नियमत: स्वीकृत करने में कोई बिधिक अड़चन नहीं होगी. मातृत्व अवकाश,प्रसूति
अवकाश और बच्चों की देख भाल का अवकाश बहुत ही उदार होकर
स्वीकृत किया जा सकता है.सभी अवकाश सम्बंधित शासनादेश अभी तक वेबसाइट पर
नहीं मिलते, जिसके लिए बरिष्ठ अफसरों को अपने मातहत को अवगत कराते हुए प्रार्थना
पत्र तैयार करा लेना चाहिये. सभी नियम
कर्मचारी की सुबिधा हेतु बनाए गए हैं.यदि एक प्रकार का अवकाश नहीं है तो दूसरे
प्रकार के अवकाश का प्रार्थना पत्र का बिकल्प देना चाहिए. इस नियम की आड़ लेकर कि अवकाश प्रदान करने वाले अधिकारी
को अवकाश के प्रकार में परिवर्तन का अधिकार नहीं है(मूल नियम 87 क तथा सहायक नियम
157 से सम्बंधित राज्यपाल के आदेश) प्रार्थनापत्र खारिज कर देना,उचित और रचनात्मक
कदम नहीं है.