भ्रम ज़िंदा रहे
,आदमी मरते रहें. बैराठ फार्म की जमीन के साथ यहीं हो रहा है.इस जमीन को भारत
सरकार ने राजा काशी नरेश को भारत संघ में
मर्जर के मुवायजा के तौर पर दिया था.मामला
कई दशकों से बिभिन्न राजस्व न्यायालयों
में चलते हुए उच्च न्यायालय तक पहुंचा है.यहाँ भूमि के स्वामी काशी नरेश के के
पक्ष में स्थगन आदेश पारित हुआ है.प्रदेश के सबसे बड़ी अदालत के आदेश को पालन कराने
में प्रशासन और पुलिस सफल नहीं हो पाई.चंदौली जिले का बैराठ फ़ार्म, चकिया तहसील
में है.राजा काशी नरेश की 1200 बीघे जमीन सीलिंग में निकालने पर जिले के अधिकारी आज भी
समस्या को और ज्यादा बढाए ही हैं.नक्सल बेल्ट में स्थित इस फ़ार्म के सम्बन्ध में
गत एक महीने से कई चक्र में प्रशासन और पुलिस की भारी फ़ोर्स की उपस्थिति में 03
अगस्त को महापंचायत हुई. जब पंच की बिश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह हो तो पंचायत
बेकार है.मंगलवार 06 अगस्त तहसील दिवस में पूरा प्रशासन ब्यस्त,और बल-प्रयोग से
ट्रेक्टर बगैरह से खेत की जुताई होने लगी. मैं इस पड़ताल में नहीं जा रहा हूँ कि
किसका स्वत्व था और किसे जमीन जोतनी चाहिए थी,लेकिन कोई भी यह जानना चाहेगा कि एक
गरीब वहाँ निर्दयतापूर्वक क्यों मार डाला गया.अब प्रशासन का यह कहना कि क़ानून अपना
काम करेगा,और किसी को क़ानून हाथ में नहीं लेना चाहिए,तंत्र की सम्बेदनहीनता ही
जाहिर करता है.वर्ष 1998 में भी प्रशासनिक मौजूदगी में सुलह हुआ,जिसकी एक शर्त थी
कि बाहरी किसान कदापि नहीं काबिज होंगे. बाहरी लोंगो से धन लेकर कब्जा दिया गया . भूमि सुधार कानून, बेनामी भूमि का वितरण, जंगल सुरक्षा अधिनियम और पशु सुरक्षा अधिनियम। इन सारे नियमों
के द्वारा ब्रिटिश नीति और सोच को बढ़ावा
दिया गया। राज्यों में
भूमि सुधार केवल कागजी अभ्यास बना रहा। लैंड सीलिंग एक्ट के तहत 1.5 प्रतिशत से भी कम भूमि
का बंटवारा हो पाया। संभवत: जातिगत विषमता, जमींदारी
व्यवस्था और घोर सामाजिक अन्याय के मिले-जुले स्वरूप के कारण यह क्षेत्र .नक्सल बेल्ट के लिए अत्यंत उर्वर क्षेत्र बन गया।सरकार व प्रशासन वोट
बैंक की राजनीति को किनारे कर इस मुद्दे पर आम सहमति बनाए तभी समस्या का समाधान हो
सकता है. इस देश में नीति बनाने व उसके तोड़ने में माहिर एक मजबूत तंत्र है.
किस तरह क़ानून अपना काम कर रहा है,एक दशक पूर्व
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाजीपुर के इकबाल अहमद की याचिका पर सुनवाई करते हुए
सुप्रीम कोर्ट के हिंचलाल तिवारी केस में दिए गए फैसले को आधार मानते हुए राज्य
सरकार को प्रदेश के तालाबों के 1952 की स्थिति बहाल करने का आदेश दिया .मीटिंग पर
मीटिंग,निर्देश पर निर्देश और आदेश पर आदेश होते रहे रहे,उधर हाई कोर्ट में
तालाबों पर अबैध कब्जे को लेकर रोजाना आधा दर्जन याचिकाएं दाखिल होती रहीं.कोर्ट
ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम के तहत एसडीएम को
कार्यवाही के लिए आदेश देते हुए कहा कि सक्षम अधिकारी के के रूप में वह अबैध कब्जे
हटवाएं .बीते दिनों है कोर्ट ने एसडीएम की कार्यवाही में बिलम्ब को देखते हुए
राज्य सरकार से सम्बंधित क़ानून में बदलाव लाने के लिए अपना पक्ष रखने की बात कही.
अब कहा जा रहा है कि प्रदेश में तालाबों पर हुए अबैध कब्जे हटाने को लेकर नए नियम
बनाने की सरकार कवायद तेज कर दी है.इस तरह की कार्यप्रणाली पर पूर्व में ही इलाहाबाद
हाई कोर्ट आदेश दे चुका है. पुलिस बिभाग तो क़ानून ब्यवस्था और विवेचना के लिए
अलग-अलग पुलिस का प्रयोग सूबे के इलाहाबाद,मेरठ,कानपुर,लखानऊ,वाराणसी और आगरा में
करने जा रही है.
हाई कोर्ट आदेश पर शासन,प्रशासन के इस तरह की
मीटिंग पर मीटिंग,निर्देश पर निर्देश और आदेश पर आदेश होते हैं. जनता को मीडिया
दिखा रहा है कि कुम्भकर्णी नींद,और भस्मासुर का आचरण क्यों और कैसे हो रहा है? दुर्गा शक्ति नागपाल एसडीएम
महिला IAS क्यों निलंबित हैं,और कौन इनको “बेहूदी औरत”, तथा मैंने इनको निलंबित
करवाया कह रहा है.क्यों और कौन खनन माफिया को संरक्षण दे रहा है? दिनांक 5 अगस्त
का चेतन भगत और शोभा डे का ट्वीट भी एक पक्ष का नुमाइंदा है कि जनता क्या चाहती
है? जनता यह भी देख रही है कि इतने शासनादेश और गाइडलाइन के बाद भी आईएएस
मुख्य-सचिव, प्रमुख सचिव क्यों छोटी-छोटी अनियमितता पर गलत तर्क दे
कर्मचारी/अधिकारी को तीन-तीन ,चार-चार साल निलंबित रखते हैं. उसको अधिक से अधिक बेइज्जत
करने के लिए बिशेष पत्र वाहक से आदेश उसके
घर पर चस्पा कराते हैं.एक अधिकारी तो इससे भी आगे बढ़ कर शादी उत्सव में सभी
रिश्तेदारों के सामने ऊँची आवाज में आदेश को तामील कराये हैं. आईएएस संघ के सचिव
इत्यादि का कहना है कि निलंबन सबसे बड़ी सजा है,तो अन्य संवर्गके निलंबन पर कोर्ट में यह हलफनामा क्यों पेश करते हैं कि
निलंबन कोई सजा नहीं है. गरीब कर्मचारी बेचारा कहाँ तक इनकी क़ानून की
ब्याख्या,पैतरें और धूर्तता का सामना कर पायेगा. रिटायर्ड होने पर उसकी ग्रेच्युटी
और पेंशन रोक देना और क़ानून की मनमानी ब्याख्या करना कोई इनसे सीखे, बार-बार हाई
कोर्ट कह चुकी है कि किसी भी रिटायर्ड की ग्रेच्युटी और पेंशन अनियमित ढंग से नहीं
रोकी जा सकती है.कोई कहाँ तक इनसे मुकदमें बाजी करे. जैसे एक पेंशन निदेशालय है जो आपके रिटायरमेंट के बाद पेंशन में आपत्ति लगा देगा और आपकी
पेंशन नहीं मिलेगी,भले ही आप सही-सलामत वेतन लेते हुए रिटायर हों.जून 2012 में
रिटायर एक मिडिल स्कूल के टीचर श्री रामलखन बिश्वकर्मा वाराणसी डीएम के आवास के समक्ष पार्क में 14/15
अगस्त की रात में आत्मह्त्या कर लिये.उन्हें अपनी पेशन नहीं मिल पा रही थी.हर
संभावित सहायता हेतु वे दौड़ते-दौड़ते थक हार चुके थे.चोलापुर मिडिल स्कूल के हेडमास्टर पद से रिटायर हुए थे.उनके आवास से
DM,IG,SSPके साथ जिला स्तर के अन्य अधिकारियों
के नाम स्पीड पोस्ट की रसीद मिली. एक प्रमुख सचिव के
बिभाग में तो पदोन्नति के बाद पदोन्नत लोंगो को वेतन,उसका एरियर इत्यादि दिए जा
रहे हैं जब कि पेंशन प्रकरण में यह आपत्ति लगाई जा रही है कि रिटायर लोंगो की
पदोन्नति सही नहीं है. क़ानून एक है लेकिन निहित स्वार्थ उसकी अलग- अलग ब्याख्या
करा रहा है. एक उदाहरण काफी होगा- रिटायर्ड हाई-कोर्ट के जज
आर.ए.मेहता 25 अगस्त 2011में गुजरात के
लोकायुक्त नियुक्त हुए. इनको नियुक्ति और ज्वाईन कराने की जगह नियुक्ति को अनियमित
बताते हुए याचिका राज्य प्रशासन द्वारा दाखिल कर दी गयी.यह तथ्य जग-जाहिर है कि दिसंबर
2003 से लोकायुक्त गुजरात में नहीं हैं. याचिका दर याचिका खारिज होने पर रिब्यू
याचिका पेश की गयी. रिब्यू खारिज होने पर पुन:निरीक्षण (Curative petition) पेश की गयी,जो सुप्रीम
कोर्ट द्वारा अस्वीकार की गयी. 45 करोड़ जनता का रूपया बर्बाद हुआ और 2 साल का समय
लगा,जब कि रिटायर्ड हाई-कोर्ट के जज से सम्बंधित मामला था. बिभिन्न न्यायालयों में
दाखिल शपथ-प्रति शपथ पत्र व बिभिन याचिकाएं किसके हस्ताक्षरों से दाखिल हैं,यह सभी
लोग जानते हैं. दूसरी तरफ करोड़ों के घोटालों के आरोपियों पर केस चलाने के लिए
अनुमति नहीं दी जारही है.संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के बाबुओं के खिलाफ केस चलाने
के लिए पहले केंद्र से मंजूरी लेनी पड़ती है.सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति के लिए चार महीने
का समय सीमा तय की है.सीबीआई ने भ्रष्टाचार के 20 मामलों में 36 अधिकारियों पर केस
चलाने की अनुमति माँगी जो अभी तक नहीं मिली. एक तरफ रिटायर्ड जज तो दूसरी तरफ
आईएएस.एक के बिरुद्ध याचिका दर याचिका,दूसरे को गलत संरक्षण.ब्यावहारिक और
सैद्धांतिक अंतर और गलत गठजोड़ तथा प्रश्रय देश के लिए अच्छा नहीं है.15 अगस्त को
लाल किले से प्रधान मंत्री के भाषण में सेना के आत्मबल को बढाने वाली कोई बात न
रहने पर नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में
इसको बिस्तृत रूप से रेखांकित किया.वजह चाहे जो हो,हो सकता है भाषण किसी सचिव
द्वारा तैयार किया गया हो. सी उदय भास्कर बरिष्ठ स्तंभकार के अनुसार
राजनीतिक,आर्थिक,सामरिक,न्यायिक,प्रशासनिक,और यहाँ तक कि मीडिया के क्षेत्र में भी
हताशा-निराशा ब्याप्त है. आगे लिखते है कि आजादी के साढ़े छः दशक बाद भी भारतीय
सेना का सामरिक नीति में कोई दखल नहीं है,और कार्यकारी स्तर पर भारत की सुरक्षा की
जिम्मेदारी रक्षा सचिव पर है.तीनों सेनाओं के प्रमुखों का सामरिक नीति में कोई दखल
नहीं है और राजनीतिक वर्ग के पास इस क्षेत्र के लिए न तो समय है और न संकल्प.
सरकार और पूर्व सैनिकों के बीच कानूनी जंग इसको सिद्ध कर चुकी है.न्याय दिलाने की
क्षमता बेहद निराशाजनक है.बिभिन्न अदालतों में तीन करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं.
रूपया की गिरावट व महंगाई बढ़ रही है.आतंरिक सुरक्षा ढांचा दो महत्वपूर्ण संस्थानों सीबीआई औए आइबी में
टकराव सत्ता प्रतिष्ठान की कमजोर नीतियों की उपज हैं.राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)
डेविड हेडली के बयान को सीबीआई से साझा करने से यह कहते हुए इनकार किया है कि यह
बयान अमेरिका से हुए द्विपक्षीय कानूनी सहायता संधि के तहत दर्ज हैं,जिसमें यह
मनाही है कि यह किसी से साझा नहीं किया जाएगा.सीबीआई को बयान इसलिए चाहिए कि हेडली
ने इशरत के लश्कर से रिश्ते की बात कबूली
है. ऐसी स्थिति में गृह मंत्रालय ने क़ानून मंत्रालय की राय माँगी है.राडिया टेप
प्रकरण मीडिया और मार्केट के वीच अपबित्र गठबंधन पर गहन आत्ममंथन की जरूरत
रेखांकित करता है.भारतीय लोकतांत्रिक अनुभव में योगदान देने वाला लगभग संस्थान दागी है.
गुरूचरण दास के अनुसार जैसे ही दुर्गाशक्ति
नागपाल राजनेताओं,बिल्डरों और रेत माफिया के गठजोड़ पर चोट की तुरंत उन्हें दण्डित
कर दिया गया.हर कोई जानता है कि सांसद बिधायक अपराधी हैं,पर हम यह नही जानते कि सांसदों
बिधायकों में 48% ने चुनाव आयोग में दिए गए शपथ पत्र में खुद स्वीकार किया है कि
उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.अर्थात करीब आधे बिधायकों
की आपराधिक पृष्ठभूमि है.असोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स तथा नेशनल
इलेक्शन वाच इन हलफनामों का अध्ययनकर
बताया है कि 4807 सांसदों बिधायकों में से 1460 सांसदों बिधायकों पर
आपराधिक मामले दर्ज हैं.और इनमें से 688 पर तो ह्त्या और दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों के
केस चल रहे हैं. सभी सांसदों बिधायकों ने अपने 5 साल के कार्यकाल में अपनी संपत्ति
औसतन दस गुना बढ़ा ली है. झारखंड सबसे आगे है,वहाँ 74% बिधायकों पर आपराधिक मामले
दर्ज हैं. 98 बर्ष के स्वतन्त्रता सेनानी श्री भुनेश्वर प्रसाद गुप्ता ने सोनभद्र
जिला प्रशासन से 15 अगस्त को प्राप्त
सम्मान यह कहते हुए वापस कर दिया कि उसकी कार्यप्रणाली भ्रष्टाचार से लिप्त है.
सभी लोग इस बात से अवगत हैं कि अबैध खनन के लिए यह जिला बदनाम है.
एक मामला 4-जी का
है. संचार क्षेत्र की एक जानी मानी कंपनी इन्फोटेल ब्राडबैंड सर्विसेज लिमिटेड को
लाभ पहुंचाने के लिए अफसरशाही में जबरदस्त लाँबिंग चल रही है.नोयडा,गाजियाबाद,रामपुर,मेरठ,आगरा
सहित कई शहरों में काम होना है. रोड कटिंग के साथ ग्राउंड बेस्ड मास्ट ,मेन होल,और
रूट मारकर का निर्माण किया जाना है . नगर
निगम आगरा के अफसरों ने 41 किलो मीटर लम्बी केबिल डालने के लिए 369 मेन होल का
किराया सर्किल रेट के हिसाब से 20 साल का और सुपरविजन चार्ज 12.5% जोड़ते हुए 1.79
करोड़ का डिमांड नोट कंपनी को जारी किया है. 2013में 6 महीने से मामला लटका है. शासनादेश के अनुसार
अन्य शहरों में कंपनी को बिना चार्ज लिए काम करने की अनुमति दे दी गयी. लखनऊ के
अफसर भी शासनादेश की ब्याख्या बिना शुल्क लिए काम करने की है. शासनादेश में स्थायी
निर्माण पर लीज रेंट लिए जाने का क्लाज है और आगरा के अफसर इसे स्थाई निर्माण मान
रहे हैं. अभी आगरा में एक ADM(F & R) को CAG ने स्टाम्प वाद के निर्णय में
राजस्व की हाँनि दिखाते हुए दण्डित करने को लिखा है. इस धींगामुस्ती में बीएसएनएल और MTNL ने अपने को 4-जी से अलग कर
लिया है,और अपनी जमानत राशि क्रमश: 6724 करोड़ ,4533 करोड़ वापस माँग लिया है. लेन-देन के
प्रतियोगिता में कमलोग ही टिक पाते हैं. नीरा राडिया टेप काण्ड में लोगों ने देखा
है कि कैसे एक निजी कंपनी समानांतर सरकार चला रही थी,वह नामी कंपनियों को ठेके व
लाइसेंस दिलवाने में तो सक्षम थीं ही नेताओं को सरकार में मंत्री बनवाने में भी
सक्षम थीं. सरकारी अफसर टेप सुनते रहे लेकिन उन्होने कोई कार्यवाही करना मुनासिब
नहीं समझा. एक निजी कंपनी और कारपोरेट लीडर को अनुचित लाभ पहुचाने के लिए अधिकारी
इस सीमा तक चले गए कि अदालत को कहना पडा कि यह करार-लेखपत्र कंपनी के अफसरों का
बनाया हुआ है,जिसपर सरकारी अफसरों ने बिना समझे बुझे हस्ताक्षर कर देश को नुकसान
पहुंचाया है.CPI लीडर गुरूदास दासगुप्ता ने तो संसद में गिरधर अरमाने संयुक्त सचिव का नाम लिया जिनका स्थानान्तरण रिलायंस कंपनी के
प्रति अड़ियल रवैया अपनाने के कारण हुआ,लेकिन पेट्रोलियम मंत्री ने सदन में 13
अगस्त 13 को इसका खंडन किया.उधर मद्रास हाईकोर्ट में बालासुब्रमंयन एडवोकेट ने
याचिका दाखिल की कि निजी पेट्रोल कंपनियों
से दाम निर्धारित करने का अधिकार ले लिया जाय लेकिन याचिका में अमर्यादित भाषा का प्रयोग प्रधान
मंत्री और तेल प्राकृतिक गैस मंत्री के खिलाफ रहने के कारण याचिका खारिज की गयी..सरकारी
अफसर इतनी मोटी खाल व खोल के अन्दर सुरक्षित हैं कि अपने जबाब में केवल इतना कह
दिए कि मेरे हस्ताक्षर भ्रमित कर प्राप्त किये गए हैं. नीरा राडिया टेप काण्ड में
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद CBI यह
कहने लगी है कि अमुख-अमुख मामलों की जांच हो सकती है. नामी-गिरामी कंपनियों के
हाँथ बिकना कितना फायदेमंद है ,एक तो अच्छा पारितोषिक और रिटायरमेंट के बाद अच्छी
सैलरी पर उस कंपनी में कार्य करने का सुअवसर. देश का चाहे जितना नुकसान हो ,अपना
तो निहित स्वार्थ पूरा हो रहा है. बरेली में नामी गिरामी कंपनियों ने बेरोजगार
युवकों को नौकरी देने के नाम पर ठगा.दैनिक जागरण ने 30 जुलाई 13 के अंक में इसे
छापा,लेकिन पुलिस के यहाँ से केवल दुर्ब्यहार मिला.कहीं सुनवाई न होने पर ई-मेल से
मामला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बेरोजगारों द्वारा भेजा गया है.
देश की अर्थब्यवस्था के बारे में भी देश की जनता
को नौकरशाह द्वारा भ्रमित किया जाता है.1935 में जब रिजर्ब बैक की स्थापना हुईथी
तो पेशेवर बैकर सर आँसबर्न स्मिथ को इसका पहला गवर्नर नियुक्त किया गया था.
कार्यकाल पूरा किये बगैर जून 1937 में इस्तीफा दे दिए तब से 1975 तक बाबुओं का
बोलबाला रहा.1975 से 1985 तक आईएएस इस पद से दूर रहे. यही वह काल था जब इस पद पर
मशहूर अर्थशास्त्री और बैकर काबिज रहे. रूपये की गिरती साख से सरकार ने मशहूर
अर्थशास्त्री रघुराम राजन को रिजर्व बैक का गवर्नर नियुक्त करना पडा है, शायद अब रूपये की दुर्दशा रूक जाय. लगभग 70
रूपया एक डालर के स्तर तक रूपया पहुँच गया है.
राष्ट्रीय
ग्रीन ट्रिब्यूनल की जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने 5 अगस्त 2013
को उत्तर-प्रदेश में रेत माफिया के बारे याचिका में आदेश दिया है कि रेत निकालने
के पहले केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय या सम्बंधित राज्य के पर्यावरण प्रभाव
आकलन प्राधिकरण की अनुमति लेनी होगी और देश के किसी भी नदी में बिना इजाजत रेत की
खुदाई या निकालने पर रोक लगा दी है.अभी 5 हेक्टेयर से कम के प्लाट से रेत हटाने के
लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं होती लेकिन अब यहाँ भी मंजूरी जरूरी होगी. राष्ट्रीय ग्रीन
ट्रिब्यूनल (N.G.T) की 5 सदस्यीय पीठ के समक्ष 14 अगस्त को उत्तर-प्रदेश के
मुख्य सचिव ने स्वीकार किया कि राज्य में अबैध रेत खनन हो रहा है ,गौतमबुद्ध नगर
में इसके लिए सरकार की तरफ से एक बार भी पर्यावरण मंजूरी नहीं दी गयी है.अब तक एक
भी खनन माफिया नहीं पकड़ा जा सका है.आकड़ो और मीडिया में रोज प्रचारित होता रहा कि
इतने जेसीबी ,डम्पर ट्रक इत्यादि पकडे गए.यह है राज्य सरकार के अफसरों की कथनी और
करनी में अंतर.अबैध खनन रोकने के सभी धर पकड़ दिखावटी और निहित स्वार्थ पूरे होने
के लिए किये जा रहे हैं.पीठ ने नोएडा के पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी किया कि 29
अगस्त को उपस्थित हो यह बताये कि क्यों न उनके बिरुद्ध 5 अगस्त के पीठ के और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में
नाकाम रहने के लिए कार्यवाही की जाय.सुनवाई के बाद पीठ ने प्राधिकरण के किसी भी
वकील या किसी भी नागरिक को अबैध खनन कर रहे लोगों के उजागर करने की छूट दी. NGT ने
ओखला पक्षी बिहार के 10 कि०मी० के दायरे में चल रहे नोयडा के उनसभी बिल्डर
प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य तत्काल बंद करने का आदेश दिया है जिन्होंने इन्वायरामेंट
क्लीयरेंस अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया है. भूजल संसाधन के अबैध दोहन पर नोयडा
प्राधिकरण को तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया है.
कैग ने भी अपने
रिपोर्ट में कहा है कि 2004 से 2011 के बीच उत्तर प्रदेश में मनमाने तरीके से खनिज
संपदा का दोहन किया गया,जिससे प्रदेश को 1400 करोड़ के राजस्व की हानि हुई.
यह खेल पुराना और काफी पेचीदा है.(स्रोत: तहलका जस्टिस कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में बनी सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने 10 मई, 1996 को सुनाए गए अपने एक फैसले में पर्यावरण संबंधी चिंताओं के चलते फरीदाबाद की बड़कल और सूरजकुंड झील के पांच किलोमीटर के दायरे में सभी निर्माणों पर रोक लगा दी थी. यह आदेश कांत इंक्लेव नामक उस योजना के तहत काटे गए प्लॉटों पर किसी भी निर्माण को भी प्रतिबंधित करता था जो सूरजकुंड झील के पास पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन ऐक्ट के सेक्शन चार के तहत घोषित वन भूमि पर हो रहा था. वन भूमि होने के चलते इस जमीन पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और सुप्रीम कोर्ट (गोदावर्मन मामले में अदालत के आदेश के चलते) की इजाजत के बिना कोई भी निर्माण नहीं हो सकता था. लेकिन एक चीफ जस्टिस ने न सिर्फ इस योजना के तहत प्लॉट खरीदा बल्कि उसके बाद वहां एक मकान (वह भव्य बंगला जहां वे रिटायरमेंट के बाद से रह रहे हैं) भी बनवाया जो वहां बने सबसे पहले मकानों में से एक था. यह अदालत के आदेशों का उल्लंघन था और वन संरक्षण कानून का भी. जल्दी ही चीफ जस्टिस ने खंडपीठों का फिर से निर्माण किया और कांत इंक्लेव और अन्य पक्षों द्वारा अदालती आदेशों के खिलाफ दायर समीक्षा याचिकाओं को तुरंत सूचीबद्ध करवाया जिसके बाद इन आदेशों में बदलाव किया गया. 11 अक्टूबर, 1996 को दिए गए एक आदेश में निर्माण पर प्रतिबंध का दायरा पांच किलोमीटर से घटाकर एक किलोमीटर कर दिया गया. कांत इंक्लेव और अन्य पक्षों द्वारा दाखिल समीक्षा याचिकाओं पर आगे भी इस आदेश में बदलाव किया गया और 17 मार्च, 1997 को सुनाए गए एक फैसले में निर्माण के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गई. इसमें आगे भी बदलाव हुआ और 13 अप्रैल, 1998 को दिए गए एक आदेश में सूरजकुंड झील के एक किलोमीटर के दायरे में भी निर्माण की इजाजत दे दी गई. कांत इंक्लेव के घर का निर्माण न सिर्फ पूरी तरह से गैरकानूनी है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और वन संरक्षण कानून का भी उल्लंघन है, इस तथ्य को सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही 14 मई 2008 को दिए गए अपने उस आदेश में साफ तौर पर माना है जो कांत इंक्लेव की स्पष्टीकरण याचिका पर दिया गया था.
अदालत की केंद्रीय अधिकार प्राप्त कमेटी ने भी पाया है कि कांत इंक्लेव में घर बनाने वालों द्वारा किए गए उल्लंघन इतने गंभीर हैं कि उसने इन निर्माणों को ध्वस्त करने की सिफारिश की है. इनमें जस्टिस अहमदी का घर भी शामिल है. यह सिफारिश 13 जनवरी, 2009 को कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट में की गई है.
सच तो यह है कि ज्यादातर राज्य सरकारें अबैध खनन
को कोई रोकने वाला सक्षम निगरानी तंत्र ही स्थापित नहीं कर पायी हैं.वे इससे भी
अनभिज्ञ हैं अथवा अनभिज्ञ बनीं रहना चाहती हैं कि खनन किस तरह पर्यावरण को नुकसान
पहुंचाता है,और इस नुकसान की भरपाई कैसे की जा सकती है. मीडिया में सचित्र अबैध
खनन छपता है,लेकिन मुख्य-सचिव,प्रमुख सचिव
जिलाधिकारी को पत्र लिखने की खानापुरी तथा मंत्री मुख्यमंत्री रोकने की
डपोरशंखी घोषणा करते हैं. एक खनन सुरक्षा
निदेशालय है,उसका काम यह नहीं है कि बैध को अबैध व अबैध को बैध बनाए, खनन बिभाग से
अनुमति के बाद भी निदेशालय यह आपत्ति लगा रहा है कि पट्टा खनन का रकबा कम है,
पट्टा खनन क्षेत्र से बिजली का तार गया है इत्यादि,भले ही बिद्युत सुरक्षा निदेशालय उस पर अनापत्ति दे चुका हो.
स्रोत-NEED OF SOCIAL TRANSFORMATION FOR SUSTAINABLE ECONOMIC DEVELOPMENT
Dr. Nisha Pandey*
Dr. V. Vedak**
*Sr. Lecturer, MITCON Institute of
management, Pune, India
Nisha_pandey16@rediffmail.com, 09370981803
**Director, MITCON Institute of management,
Pune, India
II. What is Real Development?
Development does not mean only quantitative transformation but it is the
result of both qualitative and quantitative transformation of whole
society, a shift to a new ways of thinking and
correspondingly, to new relation and new methods of production. This transformation of qualifies are possible only if people
will improve their quality of life. Quality of life
include happiness and satisfaction and can be termed as subjective well being of society but there is additional in quality
of life such as nutrition , a non hazardous environment
and a long and healthy life . (David Philiphs: 2006)
Humane being survives in a well designed system. Nature is a whole system,
which consist of an economy system, a family, a company, a
community, or many other things. Nature can be
looked at as one unit of entire universe.Indicators do not change reality, but they do help to shape the way we perceive
it, and they serve to forge a common understanding of
development. Indicators have fundamental importance to a complex and rapidly changing world.
Bhutan, a small nation, has suggested a method to make development human
and nature-centered. This country uses the concept of Gross
National Happiness (GNH), instead of Gross
National Product (GNP), to measure the achievements and impact of development. (Gross National Happiness, The Centre for
Bhutan Studies, Thimphu, Bhutan, July 1999)
The true gauge of success for development projects is not to be found in
numerical data or statistics but “in the smiles of children.”(Daisaku
Ikeda – 2003)
Meaningful development requires that “the seemingly antithetical processes
of
individual progress and social are an organic process in which "the
spiritual aspect is expressed and carried out in the material."
लोकसभा में लिखित बयान में केन्द्रीय वन और
पर्यावरण मंत्री ने माना कि जून 2013 की उत्तराखंड आपदा पर्यावरणविदों के
अनुसार पर्यावरण संबंधी चिंताओं को ध्यान
में रक्खे बिना करवाए गए विकास कार्यों के कारण यह आपदा मानव जनित है.
अन्तराष्ट्रीय समेकित पर्वत बिकास की नेपाल की
संस्था(International Centre for
Integrated Mountain Development)ने हिंदूकुश हिमालयन
क्षेत्र की दस बड़ी नदियों से 3,00,000 MW हाइड्रो पावर प्राप्त करने के उपक्रम में 76 पानी निर्मित
आपदा प्रति बर्ष आने का मुख्य कारण बताया है. इसके कारण ही 1990 सी 2012 के बीच
भारत के हिमालयन क्षेत्र में 532 आपदा आयी.जब कि चीन की तरफ हिमालय क्षेत्र में
670 आपदा घटित हुई. केदार झील के पानी से इस साल की त्रासदी चीन के हिमालयन
क्षेत्र के ग्लेसियर के ज्यादा पिघलने से भी संभावित हो सकती है.
केन्द्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने भारतीय
वन प्रबंधन संस्थान की रिपोर्ट के आधार पर यह शासनादेश व क़ानून चाहता है कि वन
भूमि का उपयोग किसी और मकसद के लिए किये जाने पर उतनी रकम ही नहीं देनी होगी जिससे
दूसरी जगह पर वन विकसित किया जा सके .वरन यह मौजूदा वास्तविक मूल्य ( नेट प्रजेंट
वैल्यू- एनपीवी) से 130 से 433 फीसद ज्यादा होगी. एक सामान्य आदमी तो बहुत पहले से
यह जानता है कि 1 पेड़ काटने की अनुमति उसे तभी मिलती है,जब वह 10 पेड़ लगाने के लिए
सहमत होता है.
सामान्य जनता भूमि के विवाद में तुरंत जान जाती
है कि किसकी गलती है. प्रशासन भी जानकर भी अनजान बनाता है,और मीटिंग पर
मीटिंग,निर्देश पर निर्देश और आदेश पर आदेश किसी माफिया,नेता इत्यादि की सांठ-गाँठ
से देता है. बहुत ज्यादा ववाल होने पर
आयोग बैठा देगा,या कमेटी नियुक्त कर देगा. दो सदस्यीय आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को
अपनी रिपोर्ट आदर्श सोसायटी की इमारत के बारे में राज्य सरकार
को दे दिया है. दो बिंदु थे कि जमीन किसकी थी-आयोग के अनुसार राज्य सरकार की थी.
दूसरा सिर्फ छः मंजिलों के लिए प्रस्तावित इमारत को 31 मंजिलों तक पहुंचाने में
कौन –कौन दोषी हैं. इस दूसरे विन्दु पर 700 पृष्ठ की रिपोर्ट मुख्य सचिव को दे दी गयी
है. परीक्षण चल रहा है ,मुख्यमंत्री यह कहकर कतरा गए कि उक्त रिपोर्ट के आधार पर
कार्रवाई रिपोर्ट ( एटीआर) तैयार न होने से यह रिपोर्ट 2013 के मानसून सत्र में सदन में पेश की जायेगी. वैसे एक
राज्य में ऐसी ही रिपोर्ट पाँच साल के परिश्रम के बाद तैयार हुयी, सरकार बदल कर
उसी दल की आगई,जिसके बिरुद्ध रिपोर्ट थी.मुख्य सचिव ने परीक्षण कर लिखा कि पूरी रिपोर्ट केवल नियम और
शासनादेशों का पुलिंदा भर है,जिसके आधार पर कोई कार्यवाही,या किसी को दोषी सिद्ध
नहीं किया जा सकता. एक रिपोर्ट लगभग 105 पेज की अशोक खेमका की है, जिसे हरियाणा के मुख्य सचिव पढ़
नहीं पा रहे हैं.इसमें एक दामाद की अनियमितता और राज्य के मुख्यमंत्री की संलिप्तता है. नियम-क़ानून और
जांच पड़ताल कैसे हो. एक कंपनी स्काईलाइट हास्पिटैलिटी
ने कारपोरेशन बैंक के फर्जी चेक से साढ़े सात करोड़ में 3.5 एकड़ जमीन खरीदा और उसका
भू उपयोग बदलवा कर दो महीने के अन्दर 58
करोड़ में बेचकर मुनाफ़ा कमाया. कारपोरेशन बैंक कई बार कह चुका है कि उसने यह चेक
नहीं दिया है. एक और घोटाला जिसको खेमका ने बताया है,के अनुसार फरीदाबाद के गाँव
बिरसी का है.१५ करोड़ रूपये के इस भू घोटाले में एक रसूखदार मंत्री,उसका रिश्तेदार
सहायक चकबंदी अधिकारी,सीनियर आईएएस और उनके चहेते चार्टर्ड एकाउटेंट सम्मिलित
हैं.सहायक चकबंदी अधिकारी को तो पारितोषिक के रूप में पदोन्नत भी कर दिया गया
है.ACO ने 17 फरवरी 2011 को खसरा नंबर में हेराफेरी कर बिरासी गाँव के एक दिवंगत
ब्यक्ति द्वारा खरीदी गयी साढ़े छै एकड़ जमीन का राजस्व रिकार्ड में कब्जा सीए के
नाम चढ़ा दिया.इसकी अधिसूचना भी 21 सितम्बर 2012 को जारी कर दी गयी कि जमीन
सीए की है. दिवंगत ब्यक्ति के परिजन अधिसूचना
को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी,तब जाकर सरकार की तरफ से 1 दिसंबर
2012 में इस घोटाले को स्वीकार किया गया.अब कौन जांच एजेंसी इसकी जांच कर पायेगी. 2004
में ही खेमका द्वारा जमीन को अबैधानिक एक प्राइवेट बिल्डर को देने का बिरोध और
2012 में गुड़गाँव के जमीन घोटाला को उजागर करने के बिरुद्ध हरियाणा के IAS ही सबसे
ज्यादा मुखर हैं,और खेमका को गलत सिद्ध कर दिए हैं.खेमका के वकील अनुपम गुप्ता के अनुसार खेमका का फोन तक टेप
किया जा रहा है,और राज्य सरकार ने CID लगा रक्खी है कि 24 घंटे इनके परिवार पर नजर
रख सके.माफिया द्वारा इनके तथा इनके परिवार को जान की धमकी दी जा रही है. हरियाणा
के खेमका बिरोधी IAS कह रहे हैं कि खेमका नियम बिरुद्ध जमीन का दाखिल खारिज
इत्यादि कार्य नहीं किये जिसके कारण इनका स्थानान्तरण किया गया है. सुप्रीम कोर्ट
की देख रेख में CBI द्वारा हो रहीं कोयला घोटाले की जांच को तो प्रधान मंत्री के
कार्यालय के संयुक्त सचिव ने बदलवा डाला, सुप्रीम कोर्ट द्वारा पकड़ लिए जाने पर भी
कोई कार्यवाही नहीं हुयी. एक सचिव तो गोपनीय दस्तावेज शत्रु देश को सौपने पर पकडे
जाने पर राज्य सरकार को वापस भेज दिए गए जहां एक महत्वपूर्ण पद पर पदस्थ हैं. यह परम
सुरक्षा लाभ किसी देश की नौकरशाही को नहीं
प्राप्त है कि मौसम के अनुसार केन्द्रीय सेवा में रहे और मौसम खराब हो तो राज्य
सेवा में आ जाँय.
जमीन से सम्बंधित सभी बिभाग ने अपनी अनियमितताओं से देश के संसाधनों की लूट की
है.अनेक मुकदमों में इसको बिस्तार से हाई कोर्ट इलाहाबाद ने अपने निर्णय में कहा
है. बिकास प्राधिकरण,आवास विकास,नगर निगम,ओद्योगिक विकास निगम,नगर पालिका,नगर
पंचायत,और जिला पंचायत ने तो सबसे अमूल्य
जमीनों को लूट जाने दिया है,जो इनकी रक्षा हेतु सीधे उत्तरदायी हैं. बिभाग भी पीछे
नहीं हैं.सिचाई ,उद्योग,बन,राजस्व,चकबंदी,कृषि,इत्यादि ने इस लूट को बढ़ावा ही दिया
है. उत्तराखंड
में 65 प्रतिशत भूमि वनों से
आच्छादित है। यदि सिर्फ पहाड़ों की बात करें तो वहां सिर्फ साढ़े
बारह प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है। बाकी में वन हैं। उत्तर प्रदेश के दौर के एक
सरकारी निर्णय की वजह से कृषि योग्य यह भूमि भी वन भूमि में परिवर्तित होती जा
रही है। 1997 में जारी इस आदेश के
अनुसार गांव की नाप भूमि को
छोड़कर
सिविल सोयम तथा बेनाप भूमि स्वत: बन भूमि हो जायेगी ,इन चौदह सालों में पहाड़ों की
हजारों हेक्टेयर कृषि योग्य बेनाप भूमि वन भूमि में परिवर्तित हो चुकी
है। यह क्रम लगातार जारी है। यदि विकास कार्यो तथा सड़क आदि के लिए भूमि हस्तांतरित
करने की जरूरत पड़ती है तो यह वह भूमि भी हो सकती है, जो बेनाप से वन भूमि में
परिवर्तित हुई है। इसके एवज में राज्य को एक तरफ पौधरोपण के लिए धनराशि देनी पड़ती
है। दूसरी तरफ विकास कार्यो के लिए ली गई वन भूमि की दोगुनी भूमि अलग से देनी पड़ती
है। उत्तराखंड जैसे राज्य पर यह दोहरी मार पड़ रही है, लेकिन इस निर्णय को बदलने के
राज्य सरकार के प्रयास फलीभूत होते नहीं दिखाई दे रहे हैं।
SC
reprimands UP government for helping private firm grab 27.95 acres
4/6/2010
4/6/2010
The Supreme Court has severely reprimanded the Uttar Pradesh government for conniving with a company in illegally granting thirty years lease of land measuring 27.95 acre situated in district Pilibhit.
A bench comprising Justices G S Singhvi and Asok Kumar
Ganguly imposed a cost of Rs two lakh on the appellant company Oswal Fats and
Oils Limited for suppressing material facts from the court.
The apex court coming down heavily on the State
government observed, ‘Before parting with the case, we deem it necessary to
express our serious reservation about the bona fides of the State government in
granting lease of excess land to the appellant.
‘It is impossible to fathom any rational reason for this action of the State government ignoring that the appellant had purchased land in patent violation of section 154(1) of the Act
‘It is impossible to fathom any rational reason for this action of the State government ignoring that the appellant had purchased land in patent violation of section 154(1) of the Act
. ‘By executing lease agreement dated October 15, 1994
the concerned officers of the State effectively frustrated the object sought to
be achieved by the legislature by enacting the Act and the orders passed by the
collector.’ Justice Singhvi in his 39-page judgement also stated that ‘We
direct the government of Uttar Pradesh not to renew the lease of the appellant
at the end of thirty years period and deal with excess land in accordance with
the provisions of the Act.’
एक जज ने एवं जम्मू-कश्मीर के चीफ
जस्टिस रहते हुए व्यक्तिगत हित के लिए पद का
दुरुपयोग किया. जम्मू-कश्मीर कृषि सुधार कानून- 1976 के मुताबिक जिस जमीन पर सरकार का अधिकार
होना चाहिए था उस पर उन्होंने अपना स्वामित्व रखा. जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार से जम्मू के गांधीनगर में दो
कनाल का एक प्लॉट बाजार
भाव की तुलना में नाममात्र की कीमत पर लिया. इसके लिए उन्होंने एक झूठा हलफनामा
दिया जिसमें उन्होंने कहा कि उनके पास जम्मू में किसी तरह की अचल संपत्ति या जमीन नहीं है. 3 अगस्त, 2007 को कैंपेन फॉर
ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमें न्याय-पालिका से जुड़े
अन्य अनियमित मामले हैं.
आंकड़ो का खेल भी कम दिलचस्प नहीं है .उत्तर
प्रदेश के कृषि निदेशक के अनुसार 2012-13 में 68 जिलों में 34234 हेक्टेयर
बंजर,बीहड़,व अनुपयोगी भूमि को लगभग 50.18 करोड़ रूपये खर्च कर खेती योग्य बनाया गया
और 2013 -14 में 140 करोड़ की लागत से 59105 हेक्टेयर भूमि खेती योग्य बनाई जायेगी.
दिल्ली विकास प्राधिकरण 1979 में फ़्लैट का आबंटन
किया.आबंटी भुगतान न कर सके तो आबंटन रद्द हो गया.अब 2007-08 में प्रापर्टी डीलरों
ने उनसे रद्द फ्लैटों के भुगतान के बदले आबंटन पत्र ले लिया,और डीडीए के
अधिकारियों के साथ सांठ-गांठ कर रद्द फ्लैटों का आबंटन अबैध रूप से बहाल करा लेता
था. फाईल में यह आवेदन पुरानी तारीख में लिखवा कर रख लिया जाता कि पुराना आवेदक का
पता बदल गया था जिससे उसे आबंटन पत्र नहीं मिला था. अब मामला सीबीआई को दे दिया
गया है.
नीति ऐसी बनेगी,जिससे अनीति ज्यादा हो और उसके
क्रियान्वयन से मुकदमेबाजी हो. एक नीति है रक्षा खरीद नीति 2006 ,जिसको तोड़ते हुए अगस्टा
वेस्टलैंड हेलीकाप्टर में 362 करोड़ की दलाली ले ली गयी.कैग की यह रिपोर्ट 13 अगस्त
13 को लोकसभा में रख दी गयी. फील्ड मूल्यांकन टीम (FET) जनवरी 2008 में इस सौदे के
बिरुद्ध रिपोर्ट दी थी. इसकी काट के रूप में कांट्रेक्ट नेगोशियेशन कमेटी (सीएनसी)
बनी,जिसकी रिपोर्ट पर यह खेल हुआ. 12 VVIP हेलीकाप्टर में 3 की आपूर्ति भी सन 2012 में हो चुकी है.
25 फरवरी 2013 में उत्तर-प्रदेश सरकार ने
विश्व-विद्यालय खोलने के के जमीन के मानक घटाकर हरियाणा की तर्ज पर शहरी क्षेत्रमें
10 एकड़,और ग्रामीण क्षेत्रमें 20 एकड़ किया था.इसे फिर बदल कर शहरी क्षेत्रमें 40
एकड़,और ग्रामीण क्षेत्रमें 100 एकड़ का शासनादेश 17 अगस्त को जारी किया गया.
अभी उत्तर-प्रदेश
में खनन बिभाग के e-tendering पालिसी में प्रथम आगत,प्रथम स्वागत की नीति थी .यह
वहीं चर्चित 2 जी की नीति है,जिसमें एक केन्द्रीय मंत्री को जेल हुयी. इसको बदलकर
उच्च बोली/टेंडर वालों को देने की नीति बनायी गयी.उसमें प्राविधान किया गया कि टेंडर
लेने वाले को 6 महीने के भीतर पर्यावरण की मंजूरी लेनी होगी नहीं तो टेंडर
अस्वीकार हो जायेंगे. लगभग 100 रिट याचिका
पर्यावरण मंजूरी न मिलने व टेंडर खारिज होने पर दाखिल हुई. हाई-कोर्ट यह कहते हुए
सारी कार्यवाही पर स्टे दे दिया कि 6 महीने की बाध्यता टेंडर लेने वाले पर नहीं
लगाई जा सकती. उक्त नीति में फिर बदलाव कर 6 महीने की बाध्यता समाप्त की गयी. लगभग
400 रिटे फिर दाखिल हुईं. अब उक्त नीति में यह कमी थी कि राज्य के खनन अधिनियम में
पर्यावरण नियमों को समाहित नहीं किया गया था. अदालत ने कहा कि इसको समाहित करने के
बाद e-tendering पालिसी जारी की जाय.
उन्नाव जिले के मनभावन ,शंकरपुर,सराय आदि
गांवों की 2031 किसानों की 1151 एकड़ जमीन
अधिगृहीत कर गंगा बेराज के पास दुबई की तर्ज पर हाईटेक सिटी बसाने की ओद्योगिक
विकास निगम की योजना है. 750 करोड़ की
योजना में लोग निवेश को तैयार हैं. अब पर्यावरण मंत्रालय से NOC माँगी गयी
है.
Lucknow
HC forms 5 member committee to investigate illegal mining
3/11/2010
3/11/2010
The Lucknow Bench of the Allahabad High Court constituted a five member committee to investigate incidents of illegal mining in Uttar Pradesh.
A division bench comprising of Justices Devi Prasad Singh and Justice S C Chaurasiya passed this order on a writ petition filed by one Noor Mohammad
. The committee, including three Central Government
officers, would be chaired by Deputy General Secretary of Geological Survey of
India (GSI). Other members of the committee would be officers of Indian Bureau
of Mines, Ministry of Environmental Forests, UP Archaeological and Mining and
UP Ground Water Level Department.
The court has directed the committee to submit the report
of investigation in every two months.
Court, in its
order, observed that heavy mining would adversely affect nature and
environment. The Court would hear this case on April 7.
Allahabad
HC order CBI probe into mining contract
3/11/2010
3/11/2010
A division bench of the Allahabad High Court ordered a CBI probe into allotment of mining lease to private contractractors.
Justices P C Verma and B K Narain passed an order on a petition filed by Sameer Dwivedi sometime last year.
The court directed SP,CBI to submit his preliminary report to it by April 4, 2010 and court fixed April 5, as the next date of hearing.
The court firmed the affidavit filed by Uttar Pradesh Chief Secretary on the matter not satisfactory. It said the CBI probe will disclose the manner in which mining lease contract were given the state government.
The counsel for the petitioner had said the state government, the concerned minister and his men were involved in giving mining contract on pick and choose basis.
Earlier, the court had asked the Chief Secretary to file his affidavit.
Allahabad
HC takes serious note of bridge alongside Yamuna in Vrindavan
1/23/2010
1/23/2010
The Allahabad High Court today took serious note of the fact that in gross violation of Indian Archaeological Act as well as Environment Protection Act, a bridge is being constructed alongside the river Yamuna Vrindavan in Mathura district.
The court, therefore, in a PIL directed to stop the construction of the bridge as it was being constructed alongside the river Yamuna and other illegal constructions on the land which was between the ghats and the river on both the sides in Vrindavan.
The order was passed by a division bench, consisting of Justices V M Sahai and V K Dixit on a PIL filed by Madhu Mangal Shukla.
The court, while staying the construction of the bridge and other illegal construction also stopped dumping of garbage in the river Yamuna or its bank and directed all the concerned departments, including Pollution Control Board and Environment Department of the Central government to ensure that no further constructions are raised in Vrindavan area.
Allahabad
HC directs state govt to file affidavit Vrindavan Samagra Vikas Pariyojna case
2/25/2010
2/25/2010
A division bench of Allahabad High Court asked the chief secretary of state and the Principal Secretary (Finance) to explain, by filing their personal affidavit, why fund for VSVP work was sanctioned and distributed when the master plan of Braj Region has not yet been sanctioned.
The court wanted to know why the funds had been sanctioned when Vrindavan Samagra Vikas Pariyojna (VSVP) Tourism Master Plan of Braj region had not yet been sanctioned.
Passing this order on a PIL filed by Madhu Mangal Shukla, a division bench of Justices V M Sahai and R R Awasthi further directed both the senior officers to explain why the construction work at Vrindavan was started without obtaining a No Objection Certificate (NOC) from the Supreme Court.
Since construction of work was being carried out by the JP associates, the judges directed the state government to file the contract entered into between the state government and JP associates along with counter affidavit.
The court has already stayed the construction of the bridge and other illegal construction in Vrindavan. It will now hear this case on March 29, 2010.
JP associates has also been asked to file reply in this case. Principal Secretary (finance), Principal Secretary, PWD, Engineer-in-chief, PWD and others have been party in the PIL.
Allahabad
HC talks tough on Ganga pollution
12/18/2009
12/18/2009
Talking tough on the pollution of river Ganga in Uttar Pradesh, the Allahabad High Court today issued several directions which included the state government would have to take a decision with regards to action against Nagar Ayukta of Kanpur.
The Court has directed the state government to take decision within four weeks with regards to action against Kanpur Nagar Ayukta for ignoring the court orders in connection with Ganga pollution control.
A division bench comprising of Justices Ashok Bhushan and Arun Tandon issued the directions on the applications of UP Pollution Control Board (UPPCB) which said that the Kanpur nagar Ayukta had failed to implement the court orders with regards to Ganga pollution control.
The next date of hearing on the Public Interest Litigation (PIL), filed by Hari Chaitanya Brahamchari, was fixed on January 4, 2010 and the Principal Secretary (Urban Development), UP, UPPCB and other parties should file the counter affidavit on or before that date.
इस नीति , रिट याचिका तथा मीडिया में बालू,रेत
के अबैध खनन और दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन इत्यादि अनेक ज्वलंत मुद्दों पर बहस
होती रही. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी सार्वजनिक जमीन पर धार्मिक स्थल न
बनाए जाँय,और बनने पर जिम्मेदार अधिकारी को दण्डित किया जाय. मुख्यमंत्री तक कह
चुके हैं कि दुर्गाशक्ति नागपाल ने
धार्मिक स्थल की दीवार गिराई,जिससे दंगा होने का अंदेशा था,अत: निलंबित किया गया.
PIL के बारे में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की एक समीक्षा
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने निम्न आर्टिकल में किया है:--
Has
The Philosophy Of The Supreme Court On Public Interest Litigation Changed In
The Era Of Liberalisation?
By
Prashant Bhushan
SC drops contempt of court
proceedings against UP Chief Secretary
The Supreme Court dropped contempt of court proceedings against Uttar Pradesh Chief Secretary (CS) Atul Kumar Gupta for alleged defiance of Supreme Court orders banning construction in parks and memorials in Lucknow. |
10 Feb 2010
|
UP
HC bans conversion of green belt area for commercial use by UP govt
12/4/2009
12/4/2009
Lucknow bench of the Allahabad High Court banned the Uttar Pradesh government’s order to convert eight acres of green belt for commercial use on the side of the Gomti river in the state capital.
The ban dashes the
state government’s proposal to set up a Five Star hotel in the private sector
on the area.
A division bench
comprising Justices Prdeep Kant and Rituraj Awasthi gave their orders to ban
the change in the land use on a Public Interest Litigation (PIL) filed by
advocate B K Singh.
However, the state government did not oppose the PIL in
the court.
In the PIL it has been alleged that the state government
was converting the eight acres of green belt for commercial use near Haider
canal, which will lead to major floods in the nearby villages.
It further said the state capital is left with only three
per cent green belt area against the required 20 to 25 per cent area.
Supreme Court had not allowed the state government to hold any functions at the Ambedkar memorial on the death anniversary of B R Ambedkar on December 6.
Supreme Court had not allowed the state government to hold any functions at the Ambedkar memorial on the death anniversary of B R Ambedkar on December 6.
MP
HC: Contempt notice against Govt. for illegal construction
The Madhya Pradesh High Court has issued contempt notices to the state government and three directors of a construction company on a petition challenging the government's failure to take action against illegal construction of a five-storeyed hotel on the green belt of Ganesh nagar colony in Babaria Kala. |
28
Jul 2009
|
Allahabad
HC awards imprisonment to senior officer for contempt
12/12/2009
12/12/2009
The Allahabad High Court ordered 15 days imprisonment to Ram Shankar, the vice-chairman of Aligarh Development Authority, on charges of the contempt of the court.
Single Judge Bench
of Justice D P Singh, however, suspended the implementation of judgement till
December 17, 2009 on the request of counsel of the officer.
The Court also fined Rs 2,000 in addition to 15 days
simple imprisonment to the VC of ADA, a senior Provincial Civil Service (PCS)
officer.
According to the case, the court order to maintain status-quo with regards to construction on the land of the petitioner. It was placed in the court that despite the order, the ADA went ahead with the construction which amounted to contempt of the court.
According to the case, the court order to maintain status-quo with regards to construction on the land of the petitioner. It was placed in the court that despite the order, the ADA went ahead with the construction which amounted to contempt of the court.
कुछ बरिष्ठ मंत्रियों ने इसे एक छोटी अफसर की गुस्ताखी
,बेहूदगी,और IAS को बदनाम करने का आचरण बताया. एक मंत्री के अनुसार हम तो MD ,चीफ इंजीनियर तक को जब
चाहें निलंबित करते हैं,कभी मीडिया इतना
हल्ला नहीं किया.अब लोग SDM के स्तर के अधिकारी के पक्ष में इसलिए बोल रहे हैं कि
चुनाव में इनसे धांधली करा सके. मंत्री जी रोजा इफ्तार के लिए इलाहाबाद में एक
दोस्त के यहाँ जा रहे थे ,पुलिस एस्कोर्ट की गाडी आगे चली गयी, इतने नाराज हुए कि
लखनऊ लौट गए, चार सिपाही और ड्राईबर निलंबित कर दिए गए. बिदेश में सुरक्षा जांच से इतने नाराज हुए कि एयरपोर्ट से
लौट आये. अब बिदेश में तो क़ानून एक है, आप VVIP हैं,तो आपके लिए दूसरा क़ानून नहीं
हो जाएगा. उन देशों में अगर मंत्री भी क़ानून तोड़ता है, तो उसे दंड भुगतना पड़ता
है.यहाँ तो मेरठ में एक दल के प्रांतीय अध्यक्ष का बेटा यातायात पुलिस के रोकने भर
से इतना नाराज हुआ कि उसने मार पीट कर उसके कपडे तक फाड़ डाले. 5 सिपाही सीमा पर
पाकिस्तानी सेना द्वारा मार डाले गए .बिहार के 4 शहीद थे. एक पत्रकार के यह पूछने
पर कि मंत्री महोदय आप शहीद के अंतिम संस्कार में नहीं गए, मंत्री इतने नाराज हुए
कि उसको नसीहत देने लगे कि सेना और पुलिस के सिपाही शहीद होने के लिए ही होते
हैं----और बिहार के कैबिनेट मंत्री यहीं तक नहीं रुके उसके बाप तक पहुँच गए कि
तुम्हारे बाप वहाँ गए थे ? वे भी तो भारतीय नागरिक हैं. Hindustan Times August 11,2013 में IAS अफसरों के बिभिन्न उम्र के लगभग 500 लोंगो पर एक सर्वे
प्रकाशित है,जिसके अनुसार देश के बिभिन्न प्रान्तों के इन अफसरों में घोर निराशा
है और लगभग 75% से ऊपर तक लोगो ने बिभिन्न
गलत दबाबों को स्वीकार किया है. दिलचस्प यह है कि यह पूछने पर कि इसके बाद भी IAS
बनाना पसंद करेंगे, 66% ने हाँ में जबाब दिया. IAS की कुल 6154 पोस्ट के बिपरीत इस समय देश में 4377 लोग कार्यरत हैं. 35 पर CBI
द्वारा घूस के FIR दर्ज है(2009-2012 ). 200 IAS बीत दस सालों में निलंबित हैं. 47
IAS पर ऐसे आरोप हैं कि वे पदच्यूत किये
जा सकते हैं. दुर्गा शक्ति ,पंकज चौधरी,अशोक खेमका और ऐसे ही अन्य अधिकारी अपने
बरिष्ठ अधिकारियों से ही प्रताड़ित किये गए हैं,क्योंकि निलंबन,दंड इत्यादि पर हस्ताक्षर इन्हीं के हैं.
देश में रेत माफिया
अबैध खनन कर रहे हैं.उ०प्र० में गाजियाबाद से गोरखपुर,बुन्देलखंड,तक.मध्य प्रदेश
में नर्वदा ,चम्बल और बेतवा.और केरल में
पम्पा,मनिमाला,और अचंकोविल नदियों में अबैध खनन है. मध्य प्रदेश में CAG ने 6906 मामले में अनियमितता निकालते हुए
1496.29 करोड़ राजस्व का नुकसान दिखाया है, बिहार में 7000 से 8000 करोड़ राजस्व का
नुकसान अनुमानित है. कोई भी इस लूट से बिचलित हो सकता है. तिरुअनंतपुर (केरल) में
एक 31 साल की बुर्काधारी महिला जो 3 बच्चों की माँ है, इस लूट के बिरोध में
अनिश्चित कालीन अनशन सेक्रेटरियेट के सामने शुरू की है. उसका कहना है कि इस रेत की
लूट के बिरोध को स्थानीय प्रशासन नहीं सुन
रहा है.केवल खानापूरी कर अपने निहित स्वार्थ पूर्ति हो जाने पर अपनी देख-रेख में
नयी-नयी तरकीबों से रेत की लूट करा रहा है. आखिर आदमी जाए तो
किसके पास? कभी-कभी कार्यपालिका अपनी ड्यूटी वैसे नहीं निभाती जैसे निभाना चाहिए
तब न्यायालय का हस्तक्षेप होता है। वैसे कुछ राज्य ने अपने
यहाँ पुलिस शिकायत प्राधिकरण राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की तरह बना रक्खा है,जो
पुलिस को सजा दे सकता है.गोवा में एक इन्स्पेक्टर को GSPCA ने FIR न लिखने की अनोखी व रचनात्मक सजा सुनाई
कि गोवा की दस ग्राम पंचायतों में सामाजिक सेवा इन्स्पेक्टर द्वारा की जाय.
सामाजिक न्याय पर 4 वाल्यूम में लेख हैं:-
Volume 27 - Issue 05 :: Feb. 27-Mar. 12, 2010
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