Wednesday, January 22, 2014

सर्व शक्तिमान कैडर

 इनको सक्षम,योग्य और समर्थ बनाने में देश का कितना ब्यय होता है,इस वेबसाइट से जाहिर है.
Devyani khobragade offers her respects at chaityabhoomi in Dadar to payrespects to Dalit leader Babasaheb Ambedkar


           अमेरिका में मानव तस्करी के पीड़ितों को पहली संघीय सामरिक कार्ययोजना के तहत घरेलू नौकरों व उनके कथित शोषण पर कई घोषणाएं की गई हैं। वरिष्ठ राजनयिक देवयानी खोबरागडे का मामला खूब उछल रहा है. हंस के जनवरी 14 के अंक के अनुसार “ताज्जुब है कि जार्ज फर्नांडीस से लेकर अब्दुल कलाम तक पर ऐसा बवंडर नहीं खडा हुआ.यह संभवत: अजर-अमर सर्व-शक्तिमान कैडर का मामला था,तो यह तो होना ही था सबकी देशभक्ति हठात उछाल मार गयी.नौकरानी संगीता रिचर्ड्स का पहलू ब्लैकाआउट कर दिया गया.------------------हम ऐसी सामंती (आदर्श,अदभुत) ब्यवस्था (1) में जीने के अभ्यस्त हो चुके हैं,जहां घरेलू नौकर की वकत एक फर्नीचर से ज्यादा नहीं होती.लोग एक ग्लास पानी भी खुद नहीं लेना चाहते.बचे-खुचे भोजन और उतारे-पुतारे कपड़ों को दे महानताबोध से फूले नहीं समाते हैं.सुबह से रात तक खटाने के उपरांत कुछ देना पड जाय तो भारी लगता है.उनसे दुर्ब्यवहार एक आम बात है.उनके जीवन की जरूरतों के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं रहता .यहाँ रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि अमेरिका जैसे मुल्क में जहां बड़े से बड़ा आदमी 24x7 के सेवक का खर्च वहन नहीं कर सकता,हमारे छोटे शुरूआती राजनयिकों की यह हैसियत होती है कि वह हिन्दुस्तान से नौकर आयात कर लें और जोड़-तोड़ कर ‘आदर्श ’ में स्थान प्राप्त कर सकें ”  ऐसी ही समस्या एक अन्य राजनयिक ने 2010 में पैदा किया था. (2)

गूगल पर देवयानी खोबरागडे टाईप करें आपको लगभग  66,700,000  पन्ने मिल जायेंगे.Clean Khobragade Mess , Devyani’s ‘politics’ raises many an eyebrow शीर्षक से Indrani Bagchi का दिनाँक 16 जनवरी 14 व दिनाँक 17 जनवरी 14 टाइम्स आफ इंडिया में छपा लेख भी इस पर प्रकाश डालता है.यह मामला नाम कम बदनाम ज्यादा ही कर डाला.
(जागरण 15-1-14) महाराष्ट्र में यूपी की 11 वर्षीय नौकरानी संग बर्बरता
 महाराष्ट्र के ठाणो में मालिकों ने अपनी 11 वर्षीय नौकरानी के साथ बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं। मालिकों ने कथित रूप से उसे कई दिनों तक भूखा रखा और गुप्तांग में हरी मिर्च डाल दी।  मीरा रोड थाने के पुलिस इंस्पेक्टर ने बताया कि पीड़िता को उत्तर प्रदेश से घरेलू कार्यो के लिए लाया गया था। उसने शनिवार को पड़ोसियों की मदद से पुलिस से संपर्क किया। पीड़िता आरोपी सरजिल अंसारी और फरहत अंसारी के लिए काम करती थी। नौकरानी के शरीर पर कई पुराने और नए घाव के निशान हैं। उसे कथित रूप से मामूली बातों के लिए पीटा जाता था। अपनी शिकायत में नौकरानी ने कहा है कि उसे जबरन मिर्च खिलाई जाती थी। बात नहीं मानने पर मिर्च उसके गुप्तांग में डाल दी थी। नौकरानी द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की जा रही है। इस तरह के मालिक और पीड़ित हर कदम पर मिलेंगे.

 पिछले सप्ताह भारत लौटी महिला राजनयिक देवयानी खोबरागडे मंगलवार को मुंबई पहुंच गई। वीजा धोखाधड़ी मामले में देवयानी के खिलाफ अमेरिका में अभियोग पत्र दाखिल किया गया है। हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद उन्होंने कहा, ‘मैं मुंबई के प्यार और सहयोग के लिए आभारी हूं।सेवानिवृत आइएएस अधिकारी उत्तम खोबरागडे की बेटी देवयानी के वरसोवा स्थित अपने मां-बाप के घर कुछ दिन रुकने की उम्मीद है। 

          

           सर्व शक्तिमान कैडर से देश को इस तरह के असंवेदनशीलता, वीजा धोखाधड़ी पर और भी बहुत कुछ सुनने को मिलेंगे। निष्कासित अमेरिकी राजनयिक ने फेसबुक पर टिप्पणी किया  कि मेरा कुत्ता भारतीय माली से बेहतर खाता है भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागडे की गिरफ्तारी के बाद जैसे को तैसा की कार्रवाई करते हुए भारत द्वारा पिछले सप्ताह निष्कासित किए गए अमेरिकी राजनयिक की भारतीय संस्कृति के खिलाफ की गई असंवेदनशील टिप्पणी से ओबामा प्रशासन ने खुद को अलग कर लिया है। दरअसल, निष्कासित किए जाने के बाद राजनयिक और उनकी पत्नी के फेसबुक अकांउट की भारतीय मीडिया ने जांच की थी, जिसमें कई निंदात्मक टिप्पणियां की गई थी। अमेरिकी राजनयिक की पत्नी भी वरिष्ठ राजनयिक हैं।  अमेरिकी विदेश मंत्रलय की उपप्रवक्ता मैरी हर्फ ने इन राजनयिकों की पहचान उजागर करने से इंकार कर दिया, लेकिन भारतीय सूत्रों ने इनकी पहचान वायने मे के तौर पर की है। वायने पिछले हफ्ते पत्नी एलिसिया के साथ स्वदेश लौट आए थे। उनके फेसबुक पर भारत के रहन-सहन पर निंदात्मक टिप्पणी की गई थी। इन्हें एक वेबसाइट पर नस्लवादी अमेरिकन डिप्लोमेट्सशीर्षक से प्रकाशित किया गया। इसमें वायने ने भारत में गोमांस की अनुपलब्धता पर दुख व्यक्त किया था। वहीं उनकी पत्नी ने साफ-सफाई न होने की शिकायत की। उन्होंने दावा किया कि उनके कुत्ते को उनके भारतीय माली की तुलना में बेहतर खाना मिलता है।
   यह सही है कि भारत और अमेरिका ने दोनों उक्त राजनयिक अफसरों के क्रिया-कलापों से अपने को अलग कर अन्य जरूरी मुद्दों पर बातचीत व सहयोग जारी रहने की प्रतिबद्धता दुहराई है.
अमरीका में राजनयिक रहीं देवयानी खोबरागड़े के पिता उत्तम खोबरागड़े ने कहा कि वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। किस दल से जुड़ेंगे, इस पर कहा कि विभिन्न दलों से बातचीत चल रही है। उचित समय पर इस बारे में घोषणा करूंगा। राजनयिक की गिरफ्तारी को लेकर चल रहे विवाद के बीच देवयानी खोबरागडे के पिता उत्तम खोबरागडे ने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी की पूर्व नौकरानी संगीता रिचर्ड अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए की एजेंट हो सकती है। उनके मुताबिक देवयानी को बलि का बकरा बनाया गया है। उनके खिलाफ वीजा धोखाधड़ी के आरोपों के पीछे साजिश की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। पूर्व आइएएस अधिकारी ने यहां कहा कि झूठे आरोप वापस लेने पर ही उनके परिवार को न्याय मिलेगा। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआइ) के प्रमुख रामदास अठावले के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर रहे उत्तम खोबरागडे ने कहा कि पिछले एक साल में हुए घटनाक्रम को देखने के बाद भारत सरकार का मानना है कि यह एक साजिश है। उन्होंने कहा, ‘मौजूदा परिस्थितियों में हमें लगता है कि संगीता रिचर्ड सीआइए की एजेंट है। देवयानी एक बहादुर महिला है और अपने कर्तव्यों का नियमित रूप से निर्वहन करती रही है।अठावले ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा कि यह फर्जी मामला है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की कि जब तक केस वापस नहीं लिया जाता, वे अपना प्रदर्शन जारी रखें। अठावले के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करेगा। अठावले ने कहा कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी मुलाकात की कोशिश कर रहे हैं। एक दिन पहले ही उन्होंने ओबामा को एक ईमेल भेजा है, जिसका जवाब नहीं मिला है। देवयानी को वीजा धोखाधड़ी मामले में 12 दिसंबर को अपमानजनक तरीके से गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
भारत और अमेरिका ने देवयानी प्रकरण से आगे बढ़ने और द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक बनाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है। अमेरिका के उपविदेश मंत्री विलियम बर्न्‍स ने 13-01-13 को विदेश मंत्रलय के मुख्यालय फॉगी बॉटम में भारत के नवनियुक्त राजदूत एस जयशंकर के लिए लंच आयोजित किया था। इस दौरान दोनों ने स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, रक्षा, आर्थिक और व्यापार वार्ताओं और आतंकवाद से मुकाबला जैसे मुद्दों पर भारत और अमेरिका के संयुक्त कार्य को जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई। दोनों पक्षों ने विभिन्न मुद्दों पर भविष्य की द्विपक्षीय बैठकों और विचार के आदान-प्रदान के लिए शुरुआती तैयारी पर भी चर्चा की। विदेश मंत्रलय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि दोनों ने इस बात पर सहमति जताई कि बीते कुछ सप्ताह चुनौतीपूर्ण रहे। दोनों ने इसे पीछे छोड़ते हुए मौजूद विभिन्न द्विपक्षीय मुद्दों पर सहयोग बहाल करने पर प्रतिबद्धता जताई। जयशंकर ने हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के स्पीकर से भी मुलाकात की। वह अब तक 15 शीर्ष अमेरिकी सांसदों से मुलाकात कर चुके हैं। समझा जाता है कि इन सभी मुलाकातों में जयशंकर ने प्रस्तावित आव्रजन सुधार पर भारत की चिंताओं को उठाया और यह आश्वासन चाहा कि एच1बी वीजा नियोक्ताओं के साथ उचित व्यवहार किया जाएगा। देवयानी मामले के बाद अमेरिका ने तस्कर पीड़ितों के लिए सामरिक कार्य योजना को पेश किया है। इसके तहत विदेशी राजनयिकों के घरेलू नौकरों का व्यक्तिगत तौर पर पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। ह्वाइट हाउस द्वारा जारी इस कार्ययोजना में कहा गया है कि वाशिंगटन में विदेशी राजनयिकों के नौकरों का व्यक्तिगत तौर पर पंजीकरण उनके अमेरिका आने के शीघ्र बाद किया जाएगा।
भारत  सरकार पर सबसे चिंताजनक आरोप पूर्व गृह सचिव आरके सिंह ने लगाया है। उनका कहना है कि संप्रग सरकार ने वोट बैंक की नीतियों के कारण देश की सुरक्षा को दांव पर लगा दिया है। यद्यपि कांग्रेस ने इन आरोपों को गलत बताया है, लेकिन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के कामकाज से एक तरह से इनकी पुष्टि होती है। पिछले दिनों उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को आपराधिक मामलों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को गिरफ्तार करने में सावधानी बरतनी चाहिए। शिंदे ने कहा कि उन्होंने तमाम राज्य सरकारों को लिखा है कि वे जांच कराएं कि कहीं अल्संख्यक समुदाय के लोगों को गैरकानूनी ढंग से गिरफ्तार तो नहीं किया गया है। देश के गृहमंत्री का यह असंवैधानिक और सांप्रदायिक बयान आरके सिंह के इस आरोप को पुख्ता करता है कि संप्रग सरकार देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगा रही है। इतना ही झटका देने वाला आरके सिंह का यह बयान है कि आइपीएल सट्टेबाजी मामले में शिंदे नहीं चाहते थे कि दाऊद इब्राहीम के एक करीबी से पूछताछ की जाए। उनका यह भी दावा है कि शिंदे पिछले कुछ समय से यह जो कह रहे हैं कि दाऊद इब्राहीम शीघ्र ही भारत की पकड़ में होगा और अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआइ इस काम में मदद करेगी वह एक झूठ ही है। आरके सिंह के अनुसार गृहमंत्री के साथ अमेरिका गए प्रतिनिधिमंडल में वह भी शामिल थे, जहां एफबीआइ के साथ दाऊद इब्राहीम के बारे में बात हुई थी। पूर्व केंद्रीय गृहसचिव आरके सिंह के साथ घरेलू कामकाज के लिए तैनात तैनात सरकारी स्टाफ को 16-01-14 को हटा लिया गया। इनमें से ज्यादातर अर्धसैनिक बलों से संबद्ध कर्मचारी हैं। स्टाफ हटाने के संबंध में सिंह ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी सिंह के आरोपों पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है। हाल ही में सिंह भाजपा में शामिल हुए हैं। उन्होंने शिंदे पर आरोप लगाया था कि उन्होंने दाऊद इब्राहिम के नजदीकी कारोबारी से पूछताछ की इजाजत नहीं दी थी। श्री सिंह ने अनेक गलत कार्यों हेतु दबाब बनाया,जिससे मैंने एक बार त्यागपत्र तक देने का मन बना लिया,लेकिन कैबिनेट सेक्रेटरी के समझाने पर रूक गया. पी चिदंबरम और ए.के एंटोनी को शिंदे से लाख गुना अच्छा मंत्री बताया.शिंदे को गृह मंत्री के उपयुक्त न होने का प्रमाण पत्र भी दे डाला.
  इसी तरह गोवा के मुख्य सचिव J C Almeida ने अपने रिटायरमेंट के 10 साल बाद यह कह कर सनसनी फैला दी कि प्रताप राने ने गोवा को राज्य का दर्जा गलत तथ्यों को दर्शाते हुए प्राप्त की,जब कि दादर ,नगर,हवेली इत्यादि को राज्य का दर्जा नहीं मिल पाया . 1961 में गोवा को पुर्तगाल से आजाद कराया गया और 1987 में इसे राज्य का दर्जा मिला. 26 साल के बाद इस मामले में क्या सही है,क्या गलत सिद्ध करना संभव नहीं है.
           भूतपूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी श्री के० एम० चंद्रशेखर का इंटरब्यू दिनांक 20 अगस्त 13 के Hindustan times –INSIDE GOVERNMENT Page पर छापा है, जिसके अनुसार “ ---there are serious systemic flaws in our administrative mechanism.We operate under a set of archaic rules using procedures no longer relevant .Our systems are still based on colonial concepts of concentration of power and distrust”
“When I entered the civil service in 1970 ,the range and ambit of government services was much smaller ,Besides,other components of national governance,namely ,the political excutive and the judiciary have grown in their reach and authority ,thus shrinking the space available for the administrative excutive.The regulatory system,including audit, has also grown much larger .For these reasons ,I think decisions making ,like other aspects of governance ,has been affected”
         केरल के कन्नूर में आयोजित मीट द प्रेसकार्यक्रम में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा बड़ी संख्या में जनहित याचिकाएं दाखिल की जा रही हैं, जबकि इन्हीं अफसरों ने अपने कार्यकाल में अपने राजनीतिक आकाओं की बहुत अच्छे से सेवा की थी। अब रिटायरमेंट के बाद अचानक उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ कि सभी नेता पागल हैं।सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तिलमिलाए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने अदालतों के लक्ष्मण रेखा लांघने को खतरनाक चलन बताया है। 31-10-13  को शीर्ष अदालत ने एक फैसले में कहा था कि नौकरशाहों को राजनीतिक आकाओं के मौखिक आदेशों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। शुक्रवार को जयराम ने कहा कि अदालतों का सीमाएं पार करते हुए अफसरों और सरकार के काम को अपने हाथ में ले लेना ठीक नहीं है  इस सब के लिए केंद्र सरकार का सिविल सेवा स्थापना बोर्ड (भारतीय प्रशासनिक सेवा नियमन, 1955 )पहले से ही मौजूद है। अफसरों के समूहों को सेवानिवृत्ति के बाद अचानक मिलने वाले ज्ञान के कारण देश को इस तरह के और भी फैसले सुनने को मिलेंगे। उन्होंने कहा, ‘यह देश में सेवानिवृत्त अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रचारित किया जा रहा खतरनाक चलन है।उन्होंने शीर्ष अदालत पर तीखा हमला करते हुए कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट देश में लोकतंत्र और खुला माहौल चाहता है, लेकिन जब जजों की नियुक्ति की बारी आती है तो सब कुछ ताक पर रख दिया जाता है। दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग के मुताबिक तकरीबन 600 से अधिक समितियों और आयोगों ने सिविल सेवा सुधार के तमाम पहलुओं पर विचार किया।ऐसा देखने में आया है कि हाल के विवादास्पद ट्रांसफर मामलों में वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने अधीनस्थों को मौखिक आदेश के आधार पर कार्य सुनिश्चित करने को कहा। यहां यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जो आदेश औपचारिक नही हैं उन पर पूर्ण विराम लगे। यहां तक कि अलिखित तात्कालिक आदेशों के मामले में भी यथाशीघ्र सत्यापन आवश्यक होने चाहिए।
जागरण
आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं, सर्व शक्तिमान कैडर का मन्त्र सभी दल के नेताओं को मन्त्र-मुग्ध कर रहा है. नौकरी करते हुए समाज,देश और जन-सामान्य को कितना लाभ इनके द्वारा मिल पाता है,वह तो जग जाहिर है.
             मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में सर्दी के कारण हुई करीब 50 बच्चों की मौत की खबरें मीडिया में आने के बाद यूपी सरकार ने अपने बचाव के लिए मेरठ मंडल के कमिश्नर के नेतृत्व में एक जांच कमिटी का गठन किया था। जिसने बृहस्पतिवार को अपनी रिपोर्ट सार्वजानिक की है। इसके मुताबिक शिविरों में मरने वालों की संख्या 34 है। इसके साथ ही कमेटी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में प्रत्येक मृतक के नाम के साथ उसकी मौत के कारणों को स्पष्ट किया गया है। उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए यह बयान दिया कि इनमें से किसी के भी मौत का कारण सर्दी नहीं है। अगर ऐसा होता तो साइबेरिया में कोई नहीं जिंदा नहीं रहता।
                                    R Prasad on... UP official mocks Muzaffarnagar victims
हाई कोर्ट के आदेशों को मानने में देरी करने वाले कई आला अफसरों को हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में मई 2013 को कड़ी फजीहत झेलनी पड़ी। अदालती आदेशों की अवमानना के मामले में दो अलग-अलग पीठों ने प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव स्टांप व निबंधन बीएम मीना, अपर आयुक्त प्रशासन फैजाबाद शैलेंद्र कुमार सिंह सहित तमाम अधिकारियों को दिनभर अपनी हिरासत में रखा।
पीठ ने कहा कि अधिकारी यह कहकर बच नहीं सकते कि उनकी जिम्मेदारी नहीं थी। सायं चार बजे न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति डॉ. सतीश चंद्रा की अलग-अलग पीठों ने सभी अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए बिना शर्त माफी मांगने व भविष्य में गलती न होने का शपथ पत्र देने पर 10-10 हजार रुपये का हर्जाना जमा करने के बाद मुक्त कर दिया।
   प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव को बिना शर्त माफी मांगे जाने पर बुधवार सुबह सवा दस बजे तक की मोहलत दी गई है। पीठ ने प्रमुख सचिव को बुधवार को फिर उपस्थित होने को कहा है। पूर्व बसपा मंत्री रामवीर उपाध्याय को सुरक्षा दिए जाने के मामले में पीठ ने प्रमुख सचिव गृह को तलब किया था, जबकि दूसरी पीठ ने बीएम मीना प्रमुख सचिव स्टांप, बस्ती के बीएसए राम सकल वर्मा व अपर आयुक्त प्रशासन, फैजाबाद शैलेंद्र कुमार सिंह को अदालती आदेश का पालन देर से किए जाने के मामले में तलब किया था। अफसरशाही के टालू रवैए से आजिज आकर पीठ ने मंगलवार को इन अधिकारियों को तलब कर अदालत में हिरासत में ले लिया। पीठ ने कई अवमानना याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आरोप तय करने की तिथियां निश्चित कर दीं।
पीठ के समक्ष प्रमुख सचिव बीएम मीना की ओर से कहा गया कि उन्होंने जुलाई 2012 में विभाग में कदम रखा और जब उनको अवमानना नोटिस मिली तो उन्होंने आदेश का पालन कर दिया। पीठ ने कहा कि अधिकारी यह बहाना बनाकर बच नहीं सकते कि पूर्व अधिकारी की जिम्मेदारी थी। पीठ ने सुबह ग्यारह बजे बीएम मीना को हिरासत में लेते हुए तीन दिन जेल की सजा सुना दी, बाद में बिना शर्त माफी का हलफनामा लेकर याची को 10 हजार रुपये हर्जाना देने की बात पर छोड़ा गया।
क्या था मामला
पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय की वाई श्रेणी की सुरक्षा 2007 में वापस कर ली गई थी। इस पर उपाध्याय ने याचिका दायर कर वाई श्रेणी सुरक्षा दिए जाने की मांग की। पीठ ने प्रत्यावेदन पर विचार किए जाने को कहा था। आदेश का पालन न होने पर अवमानना याचिका दायर की गई जिस पर पीठ ने कड़ा रुख अपनाया।
अपर आयुक्त फैजाबाद के मामले में याची ने एक मामले में दाखिल खारिज की मांग करते हुए दावा प्रस्तुत किया। आदेश का पालन न होने पर याची ने अवमानना याचिका दायर की थी। इसी क्रम में प्रमुख सचिव स्टांप एवं निबंधन बीएम मीना ने वर्ष 2007 में पारित आदेश का पालन 2012 में किया। पीठ को बताया कि जब अवमानना मामले का पता चला और नोटिस प्राप्त हुई तब आदेश का पालन किया गया। इस पर पीठ ने कड़ी फटकार लगाई। पीठ ने कहा कि अवमानना मामला कोई आम मामला नहीं है और अधिकारियों को इसे सहजता से नहीं लेना चाहिए। यदि नौकरशाह पीठ के आदेश का पालन ठीक से करें तो अवमानना की आवश्यकता ही न पड़े। अदालत का कहर इससे पहले भी यूपी के अधिकारी झेल चुके हैं।
नोएडा डेवेलपमेंट अथारिटी में तैनात अखिलेश आईएएस अफसरों राकेश बहादुर और संजीव सरन पर अदालत ने कड़ा शिकंजा कसा था। हाईकोर्ट ने इन दोनों दागी अफसरों को अदालत के आदेश के बावजूद उनको पदों से न हटाये जाने पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने यूपी के चीफ सेक्रेटरी को इन्हें तीन दिनों में हटाने या फिर कोर्ट में हाजिर होकर अवमानना की कार्यवाही का सामना करने को कहा था।

उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्यान्न घोटाले में आरोपी 18 अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी कोर्ट ने दी थी। शासन ने शीर्ष नौकरशाही को हाईकोर्ट के गुस्से से बचाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। कवायद की जा रही है कि हाईकोर्ट में उच्चाधिकारियों को अब जिम्मेदार अधिकारियों की गलती की सजा नहीं भुगतनी पड़ेगी। सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता हाईकोर्ट से यह आग्रह करेंगे कि उसी अधिकारी के खिलाफ नोटिस जारी हो या फिर पक्षकार बनाया जाए जो वास्तव में कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं करने का जिम्म्मेदार है। ऐसे उच्चाधिकारियों के खिलाफ नोटिस जारी नहीं की जाए जो जिम्मेदार नहीं है। प्रमुख सचिव गृह के पद पर रहते हुए आरएम श्रीवास्तव को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश पर हिरासत में लिया जाना तो नजीर मात्र है। पिछले एक साल में ऐसे कई मौके आए, जब शासन के उच्चाधिकारियों, मसलन-मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव को जिम्मेदार न होते हुए भी कोर्ट की दुश्वारियों से जूझना पड़ा। ऐसे में शासन ने इस तरह के मामलों में उच्चाधिकारियों को बचाने के लिए नयी पहल की है। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह निर्णय किया गया है कि हाईकोर्ट को ऐसे मामलों से अवगत कराते हुए आग्रह किया जाएगा कि सिर्फ जिम्मेदार अधिकारियों को नोटिस दिया जाए। न्याय विभाग के प्रमुख सचिव एसके पांडेय ने अगले सप्ताह में इलाहाबाद व लखनऊ बेंच के मुख्य स्थायी अधिवक्ता से कार्यवाही सुनिश्चित कर रिपोर्ट भी तलब की है।दरअसल, उस्मानी का मानना है पिछले दिनों ऐसे कई मामलों में उच्चाधिकारियों को हाईकोर्ट ने तलब किया या कार्रवाई की जद में लिया, जिसमें उनकी कोई भी जिम्मेदारी नहीं थी। मुख्य सचिव ने कहा, कि ज्यादातर मामले जिलास्तरीय या फिर विभागाध्यक्ष स्तर के होते हैं, लेकिन ऐसे मामलों में भी प्रमुख सचिव, सचिव और उच्चाधिकारियों को जिम्मेदार बना दिया जाता है। यही नहीं, उनको सीधे तौर पर अवमानना के लिए जिम्मेदार भी ठहरा दिया जाता है। वरिष्ठ अधिकारियों ने कैसे अपने अधीनस्थों को मौखिक आदेश के आधार पर कार्य न करने दिया , अदालती आदेशों को उपेक्षा, बेफिक्री सर्व शक्तिमान कैडर की प्रतिक्रिया से न्यायालय भलीभांति परिचित है. वर्ष 2007 में पारित आदेश का पालन 2012 तक न किया जाय,तो इसे क्या कहा जाएगा. mis-joinder व nonjoinder की कानूनी बाध्यता से उन्हें पक्षकार बनाया जाता है.
हरिशंकर मिश्र इलाहाबाद जागरणबेवजह सरकारी अफसरों को कोर्ट में तलब किए जाने के मामला उठाकर राज्य सरकार ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। सवाल उठने लगे हैं कि आखिर राज्य सरकार किन अफसरों को बचाना चाहती है।हर मीटिंग में इस पर चर्चा होती है. कोर्ट में वही अफसर तलब होते रहे हैं जो अवमानना या अन्य मामलों में अदालती आदेशों को उपेक्षा करते रहे हैं। राज्य सरकार यदि इस संबंध में पत्र जारी करती है तो यह मानना भी स्वाभाविक ही है कि इस बहाने कहीं कुछ अदालती आदेशों पर तो प्रतिक्रिया नहीं जताई गई है। वस्तुत: कोर्ट की नाराजगी अदालत के आदेशों पर अधिकारियों की बेफिक्री से रही है। पूर्व प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव के मामले में भी ऐसा ही था। अधिकारी अदालत में जवाब दाखिल करने से हमेशा कतराते रहे हैं। इसी कारण लंबित मुकदमों का भी पहाड़ खड़ा हुआ। आंकड़ों पर गौर करें तो यह बात और भी साफ हो जाती है। सरकार की तमाम सख्ती के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में 27380 मामलों में जवाब दाखिल किया जाना बाकी है। इनमें नौ हजार से अधिक मामले लखनऊ खंडपीठ के हैं, जहां आसानी से हलफनामा दाखिल किया जा सकता है। इनमें ज्यादातर मामले राजस्व, गृह और शिक्षा विभाग से जुड़े हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कंदर्प नारायण मिश्र के अनुसार सरकार से पहले सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में अधिकारियों को ताकीद कर चुकी है लेकिन उसे ऐसा करने का अधिकार है।  राज्य सरकार यदि अफसरों के संबंध में हाईकोर्ट से आग्रह करती है तो यह एक नई परंपरा होगी। सरकार को अपना तंत्र चौकस करना चाहिए। अधिकारियों को लेकर राज्य सरकार की बेचैनी यूं ही नही है। नोएडा में दागी अधिकारियों को पुन: नियुक्ति देने के प्रकरण में सरकार हाईकोर्ट के आदेश की लगातार उपेक्षा करती रही और मजबूर होकर उसने आदेश का पालन किया। इस बीच कई ऐसे फैसले आए जिनमें सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ा और कुछ में तो अधिकारियों के बचाव में सरकारी अधिवक्ताओं को पूरी ताकत तक लगानी पड़ी। विशेष तौर पर गृह विभाग और शिक्षा विभाग से जुड़े मामलों में उसे परेशानी का सामना करना पड़ा। इन विभागों में ही सरकार के चहेते अफसर भी बैठे हैं।“
अदालत के आदेश की ब्याख्या और लागू करने का एक दिलचस्प उदाहरण देखें:--

       हाँ सेवाकाल की सेटिंग व लाबिंग से रिटायरमेंट के बाद जरूर निजी/प्राइवेट कंपनियों में इन अधिकारियों को निदेशक के तौर पर एक बार बैठने के लिए दस हजार रुपये और सालाना 170 करोड़ रुपये तक वेतन मिल जाता है। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के अनुच्छेद 13(1)(डी)(3) में प्रावधान है कि सार्वजनिक सेवा के पद पर रहने के दौरान जनहित के बिना किसी व्यक्ति को कोई भी आर्थिक लाभ पहुंचाना भ्रष्टाचार के दायरे में आता है। इसका तात्पर्य है कि अगर किसी फैसले के कारण किसी व्यक्ति, कंपनी या किसी संगठन को आर्थिक लाभ होता है, तो अधिकारी पर अभियोग चल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपी वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच में सीबीआइ को खुली छूट देते हुए कहा है कि कोर्ट के आदेश और निगरानी में हो रही जांच में सीबीआइ को संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ जांच से पहले सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपने निरीक्षण में यह पाया है कि हमारे समृद्धि और समानता के लक्ष्य में प्रशासन एक कमजोर कड़ी है। खराब प्रशासन के कारण विकास के सतत लक्ष्यों को हासिल करने में कठिनाई आती है। उत्तर-प्रदेश के एक महत्वपूर्ण राजनेता ने घोषणा की कि वह आइएएस अधिकारियों के बिना बेहतर काम कर सकते हैं।
   निजी/प्राइवेट कंपनियों के पास भी अपनी मजबूरी हैं- या तो वे नेताओं और अफ़सरों को रिश्वत दें या फिर अवकाश प्राप्त अफ़सरों को अपने यहां नौकरी पर रखें जो उनके लिए राजनीतिक और अफ़सरशाही वर्ग से निपट सकें। पहले की तुलना में दूसरा विकल्प बहुत तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। सालाना 170 करोड़ रुपये तक वेतन की योग्यता तो सर्व शक्तिमान कैडर में है नहीं,या तो अपने कार्यकाल में इन निजी/प्राइवेट कंपनियों को फ़ायदा पहुंचाएं हो अथवा इस बात की गारंटी दिए हों कि वेतन से कई गुना लाभ अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर दिला देंगे.
किसी आइएएस, आइपीएस के राज्यपाल बनने या अन्य सरकारी ओहदा संभालने पर किसी भी किस्म की रोक नहीं लगेगी। 01-11-13 को सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड अफसरों की पुनर्नियुक्ति के लिए समय सीमा निर्धारित करने से इन्कार कर दिया। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने सेवानिवृत्त अफसरों के फिर से सरकारी पद संभालने पर दो वर्ष तक अनिवार्य रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी। मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘हम इस तरह का निर्देश जारी नहीं कर सकते हैं। क्योंकि प्रशासनिक कार्यो को दक्षता पूर्वक संचालित करने के लिए कभी-कभी अनुभवी लोगों की जरूरत होती है।हालांकि पीठ ने पूर्व डीजीपी को सलाह दी कि इस बारे में वह केंद्र सरकार को मांग पत्र सौंप सकते हैं। इससे पूर्व प्रकाश सिंह की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि अदालत को इस मामले में दिशा-निर्देश  करने चाहिए क्योंकि ऐसा प्रावधान नौकरशाही की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए बेहद जरूरी है।

    मौजूदा नियम के मुताबिक, सरकारी अफसर रिटायरमेंट के बाद, कम से कम एक साल तक निजी क्षेत्र में नौकरी नहीं कर सकते हैं। इस अवधि को कूलिंग ऑफ पीरियड कहा जाता है। एक जनवरी 2007 तक अनिवार्य कूलिंग ऑफ पीरियड दो साल हुआ करता था, मगर आईएएस अधिकारियों की जबरदस्त लामबंदी के चलते इसे घटाकर एक साल कर दिया गया। इतना ही नहीं, अधिकारियों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर निजी क्षेत्र से जुड़ जाता है।
इस कैडर पर नियंत्रण रखने वाले कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से इससे पूर्व काम करने की इजाजत लेनी पड़ती है जो वह  राज्य सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों से मशविरे के बाद डीओपीटी उन्हें दे देती है। राज्य सरकार, अन्य संबंधित एजेंसियों और डीओपीटी में उन्हीं के सम्बर्गीय रहते हैं,जिनकी छात्र-छाया में यह खेल बखूबी चलता है.लाबिंग का खेल भी न्यायालय के एक मुकदमें में नीरा राडिया काण्ड से उजागर हुआ है.



 क्या सर्व शक्तिमान कैडर को ऐसी लॉबिंग फर्म या किसी कंपनी से जुडऩे दिया जाना चाहिए, जिससे उनके अंतिम तीन पदों का कोई लेना-देना रहा हो। सही कहा जाए तो कूलिंग ऑफ पीरियड के फॉर्मूले को ही लॉबिंग में अनैतिकता रोकने के लिए काफी समझना ठीक नहीं होगा। कई बार रिटायर हो चुके अधिकारी इसे बाईपास करते हुए फुलटाइम कर्मचारी होने की बजाय सलाहकार बनकर कंपनियां ज्वाइन कर लेते हैं।
वर्ष 2001 के बाद से 100 से अधिक सर्व शक्तिमान कैडर ने निजी क्षेत्र की नौकरी पकडऩे की खातिर सरकारी नौकरी से या तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली या फिर रिटायरमेंट के बाद निजी क्षेत्र का रूख किया है।
RTI में एक बिल द्वारा यह संशोधन किया गया कि नौकरशाह अगर निहित स्वार्थ वश कोई सूचना नहीं देता है तो उसकी शिकायत न्यायिक मजिस्ट्रेट से की जाय, जो अगर सही पाता है तो नौकरशाह को  एक साल का जेल और अतिरिक्त 20000 रू० जुर्माना लगा सके. यह संशोधन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं,ने किया  था. कैबिनेट ने 04 मई 2005 और संसद इस संशोधन को मई 2005 में पास किया. इसके पास होने के एक सप्ताह पूर्व Department of Personnel & Training  जिसका प्रमुख एक आईएएस होता है,ने 06 मई 2005 को एक नोट प्रधानमंत्री को लिखा जिसमें कहा गया कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में अफसर को इसके लिए जेल का प्राविधान नहीं है. प्रधान मंत्री ने तुरंत इस जेल के प्राविधान को समाप्त करते हुए संशोधन को पास कराया. अब चैन से सर्व शक्तिमान कैडर नौकरशाही बंशी बजा रही है,लोग सूचना के लिए दर दर भटक रहे हैं.एक सूचना के आवेदन  में यह सूचना मिली कि अगर यह अधिकार मिल गया होता तो आज 850 सर्व शक्तिमान अफसर जेल में होते.
Department of Personnel & Training   ने एक आवेदक द्वारा यह सूचना माँगने पर कि अखिल भारतीय सेवा के कितने अफसरों के खिलाफ महिला उत्पीडन (sexual harassment) की शिकायत है,जबाब दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय गिरीश आर देशपांडे बनाम सीआइसी व अन्य के अनुसार यह सूचना RTI से छूट की श्रेणी की है,जिसे नहीं दिया जा सकता है. अखिल भारतीय सेवा में आईएएस,आईपीएस, IFoS आते हैं. 3 अक्टूबर 12 को सुप्रीम कोर्ट ने उक्त वाद में निर्णय दिया है कि आरोपपत्र, कारण बताओ नोटिस और दंड देने के आदेश,आय कर रिटर्न  इत्यादि की सूचना RTI में नहीं दी जा सकती है. पूरे देश में 4737 आईएएस, 3637 आईपीएस और 2700 वन सेवा के अफसर हैं. सूचना आयुक्त ने कई निर्णय में यह कहा है कि यौन अपराध की सूचना देना आवश्यक है क्योंकि यह मानव अधिकार उल्लंघन की श्रेणी में है. आजकल देश महिलाओं के प्रति किसी भी अपराध के प्रति बहुत जागरूक है. दिल्ली रेप काण्ड ने देश को जगा दिया है. कई  संत भी इस अपराध में जेल काट चुके हैं. मीडिया में एक संत और उसके बेटे और बेटी तथा पत्नी के इस अपराध में लिप्त होने की चर्चा महीनो से चल रही है,और उसकी जमानत भी नहीं हो रही है. सर्व शक्तिमान कैडर इस देश में सबसे ऊपर है.
नौकरी में रहते हुए भी बरिष्ठ सहकर्मी के साथ सर्व शक्तिमान कैडर का रवैया नितांत ही निंदनीय है. 50 साल से ऊपर के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देना इनका सबसे प्रिय कार्य है,बरना इनकी शर्तों पर कार्य करें. औरवाटांड (चंदौली) के पुलिस चौकी पर तैनात चौकी प्रभारी 55 बर्षीय मुन्ना सिह अपनी सर्विस रिवाल्वर से आत्म ह्त्या कर लिए. उनका मोबाइल जिले के आला अफसरों ने छिपा लिया. वे अस्वस्थ थे तथा कई बार अपने स्थानान्तरण की गुहार इन्हीं अफसरों से कर चुके थे. रक्षक कल्याण ट्रस्ट द्वारा संचालित अराजपत्रित पुलिस कल्याण संस्थान के संस्थापक व अध्यक्ष बृजेन्द्र सिह यादव ने 07 अक्टूबर 13 को चौकी पर पहुँच कर जांच और पूछताछ की .उन्होंने कहा कि नक्सल क्षेत्र में 45 बर्ष से अधिक के दारोगा व पुलिस को नियुक्त न किये जाने का शासनादेश है, इसके बावजूद 9 सब इन्स्पेक्टर और 80 कांस्टेबलों की तैनाती इस नक्सल प्रभावित इलाके में लगाई गयी है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्याय मूर्ति अमर सरन और न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने दहेज़ ह्त्या के सजायाप्ता कैदी शाहजहापुर निवासी गोबर्धन की अपील पर यह निर्णय दिया कि गोबर्धन अत्यंत निर्धन है,और उसके वकील अदालत में उपस्थित नहीं हो रहें हैं, उसकी माँ गंगा देवी बरिष्ठ नागरिक (80साल )हैं, इसे देखते हुए दोनों को जमानत पर रिहा किया जाय .कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि निर्धन होने के कारण वे जमानत राशि न दे सकें,तो निजी बन्धपत्र पर उन्हें रिहा किया जाय. इसके साथ सभी जिला व सत्र न्यायाधीशों को निर्देश दिए गए हैं कि पाँच साल से बंद चल रहे कैदियों को कानूनी मदद उपलब्ध कराई जाय. आई जी जेल से बरिष्ठ नागरिक कैदी का पूरा ब्योरा मांगा है,और दस बारह साल से निरुद्ध कैदियों की सूची तलब की है.यह नजरिया न्यायिक अफसरों के हैं,दूसरी तरफ हर साल डीएम व पुलिस अधीक्षक के भी निरीक्षण होते हैं,जो केवल औपचारिकता भर हैं. असहाय व बृद्ध कैदियों के प्रति भी इनके मन में दया भाव नहीं उपजता है. दिमाग और दिल रखने के बाद भी इस तरह का आचरण सर्व शक्तिमान कैडर नौकरशाही ही कर सकती है. हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान है,जिसमें सर्व शक्तिमान कैडर नौकरशाही के  लटके-झटके इसी तरह के हैं, जिसका चित्रण नसीर इस्लाम की किताब में है-- (3)
नौकरी चाहे सरकारी हो या निजी उसकी झंझटों व सभी नीति,नियम और क़ानून से मुक्ति का आसान उपाय नेता बन जाओ.
(1) Posted 11:48 AM by Anurag
Are we born free?Review on 56th Republic Day ----The fundamental deficinecy in our system is absurd model of democracy.In which public servants have become masters.They have zero accountability and hardly any action is taken against any person in government thanks to completely rotten higher public services cadres like IPS,IAS and similar ones.They have totally failed the nation, every one of them competing for corruption, rapid promotions,perquisites and authority without any responsibility.Never any complaint of citizen is replied and manadatory action taken.This has completly deteriorated lower cadres right upto a Havaldar
Lawsuit: Indian official in NYC forced 17-year-old girl to work long hours for no pay
By Associated Press
July 2, 2010 | 5:52 p.m.                  
NEW YORK (AP) — A young woman from India has filed a federal lawsuit accusing a government official from her country of enslaving her in New York City, forcing her to work 16-hour days without pay.

Shanti Gurung (SHAHN'-tee GEHR'-ung) says in her lawsuit filed Thursday that she was "essentially kidnapped" from India in 2006 at age 17 and was ordered to give daily massages and perform other chores.

The suit says Gurung was held in involuntary servitude for more than three years by the official, Neena Malhotra (MAHL'-hot-rah), and her husband, Jogesh Malhotra. The suit said Neena Malhotra is now assigned to the Ministry of External Affairs in New Delhi.
(3) Nasir Islam, "Pakistan" in V. Subramanian, Public Administration in the
                        Third World (New York: Greenwood Press, 1990): 69-101, and Ralph Braibanti,
                        "Reflections on Bureaucratic Corruption," Public Administration 40 (Winter 1962):
                         357-61.
"Social Development Planning, Management and Implementation in
Pakistan," in C.N. Padungkarn, ed., Social Development Alternatives: Concept and
Practice in Asian and Pacific Countries (Nagoya, Japan: United Nations Centre for
Regional Development, 1987), p.78.
"Colonial Legacy, Administrative Reform and Politics: Pakistan 1947-
87," Public Administration and Development 9 (June/August 1989): 279.
Tinker, India and Pakistan, Chapter 7, "The Public Services.
Kennedy, Bureaucracy in Pakistan, especially Chapfer 5, "Recuntment to
the Federal Bureaucracy."  India  inherited as well the imperial practice dating back to the
early 1800s in providing pre-service training in selected institutions
for young probationers. The main purpose was to socialise the
probationers into the "grand tradition" of the bureaucracy rather than
impart technical knowledge and skills. CSP (CivilService Academy ) probationers were required  to be proficient in horseback riding, were given membership in
the exclusive Lahore Gymkhana Club, and attended mess nights
where formal attire was required, and often important officials and
foreign guests were invited. The ethos was one of training for rulership
in the imperial tradition. In descending order were found also the
Finance Services Academy and the Police Training Institute. These
two institutions tended to replicate the CS A. Probationers to the lesser
prestigious services received diluted or no pre-service training.
                      Some changes by time but in I.A.S. Week Nevertheless the bureaucratic value of guardianship and distrust of "people" politics continued.


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