Thursday, November 14, 2024

वेजिटेटिव स्टेट vegetative state


 
 Frontiers in Aging
Hindi film "Dasvidaniya".

In this movie, Vinay Pathak plays the role of Amar Kaul, a man who is diagnosed with a terminal illness and decides to make a "to-do list" of ten things he wants to accomplish before he dies.

"Dasvidaniya" is a 2008 Indian Hindi-language comedy drama film that explores themes of life, death, and finding joy in the present moment. 
Refaat Alareer.

He was a Palestinian writer, poet, translator, university professor, and activist from the occupied Gaza Strip. He tragically passed away on December 6, 2023, along with his family members, in an Israeli airstrike.

Dr. Alareer is known for his poem titled "If I Must Die," which he shared on his Twitter profile just weeks before his death. This poem has garnered significant attention and has been translated into many languages.

If I must die, let it be with grace,

With a heart that's full, in a peaceful place.

Let my soul be light, free from regret,

With memories cherished, and no debt.

 

If I must die, let it be with love,

Surrounded by those I hold above.

Let my spirit soar, to the skies so high,

With a gentle whisper, a soft goodbye.

 

If I must die, let it be with peace,

With a mind at ease, and a sweet release.

Let my journey end, with a smile so bright,

As I step into the eternal light.

यदि मुझे मरना है, तो यह गरिमा के साथ हो,

एक भरे हुए दिल के साथ, एक शांतिपूर्ण स्थान में।

मेरी आत्मा हल्की हो, बिना पछतावे के,

स्मृतियों को संजोए हुए, और कोई ऋण नहीं।

 

यदि मुझे मरना है, तो यह प्रेम के साथ हो,

उनके बीच जिनको मैं सबसे ऊपर रखता हूँ।

मेरी आत्मा ऊँची उड़ान भरे, आसमान में,

एक कोमल फुसफुसाहट के साथ, एक नरम अलविदा।

 

यदि मुझे मरना है, तो यह शांति के साथ हो,

एक शांत मन के साथ, और एक मीठी मुक्ति।

मेरी यात्रा समाप्त हो, एक उज्ज्वल मुस्कान के साथ,

जैसे मैं अनन्त प्रकाश में प्रवेश करता हूँ।

https://youtu.be/YsbEjldJjOw?

Refaat Alareer’s major concern was that older people’s stories aka the oral history is dying out because due to modern technology we stopped caring about stories. “I am the man I am because of the stories told to me by my mother and grandmother,” he states. As Palestinians under occupation, storytelling transcends the didactic value to an urgent need to owning our narrative, something that gives back power to the people rather than the elite. Stories that people can tell about a land are proofs of their right to that land. Editor of "Gaza Writes Black", RefaatAlareer teaches Creative Writing and World Literature at the Islamic University, Gaza. Alareer has an MA in Comparative Literature from University of London. After the Israeli aggression of 2008 on Gaza, Alareer expanded his interest to include young Palestinian writers in storytelling as a form of growth, understanding and resistance. Refaat believes in storytelling and its role in building and shaping individuals and communities. "We are what stories have been told to us," he says. In Gaza, storytelling, an activity that has been diminishing recently, has always been women's strategy to exercise power and overcome men's dominance.

Cognitive impairment surveillance refers to the ongoing monitoring and tracking of cognitive function within a population. This is crucial for several reasons:

 * Early Detection: Identifying cognitive decline early allows for timely interventions, potentially slowing progression or even reversing some conditions.

 * Public Health Planning: Surveillance data helps public health officials understand the prevalence and distribution of cognitive impairment within a population, which informs resource allocation and program development.

 * Research: Surveillance data provides valuable information for researchers studying the causes, risk factors, and progression of cognitive decline and dementia.

Methods of Surveillance:

 * Population-based studies: These involve large-scale assessments of cognitive function in representative samples of the population.

 * Registry-based studies: These utilize existing databases, such as medical records or health insurance claims, to identify individuals with cognitive impairment.

 * Surveillance systems: These involve the systematic collection of data on cognitive function from various sources, such as healthcare providers, community organizations, and research institutions.

Commonly Assessed Cognitive Functions:

 * Memory: Short-term and long-term memory

 * Attention: Focus, concentration, and divided attention

 * Language: Understanding and producing speech

 * Executive function: Planning, problem-solving, and decision-making

 * Visuospatial skills: Perception and manipulation of visual information

Challenges in Cognitive Impairment Surveillance:

 * Standardization: Ensuring consistent assessment methods and data collection across different settings.

 * Data quality: Maintaining accurate and reliable data, especially in large-scale studies.

 * Resource limitations: Adequate funding and personnel are essential for effective surveillance.

 * Ethical considerations: Protecting the privacy and confidentiality of individuals participating in surveillance studies.

Overall, cognitive impairment surveillance is a critical public health endeavor that can significantly impact the lives of individuals and families affected by these conditions.

संज्ञानात्मक हानि निगरानी का तात्पर्य जनसंख्या के भीतर संज्ञानात्मक कार्य की निरंतर निगरानी और ट्रैकिंग से है। यह कई कारणों से महत्वपूर्ण है: * प्रारंभिक पहचान: संज्ञानात्मक गिरावट की प्रारंभिक पहचान समय पर हस्तक्षेप करने, संभावित रूप से प्रगति को धीमा करने या कुछ स्थितियों को उलटने की अनुमति देती है। * सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना: निगरानी डेटा सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को जनसंख्या के भीतर संज्ञानात्मक हानि के प्रसार और वितरण को समझने में मदद करता है, जो संसाधन आवंटन और कार्यक्रम विकास को सूचित करता है। * अनुसंधान: निगरानी डेटा संज्ञानात्मक गिरावट और मनोभ्रंश के कारणों, जोखिम कारकों और प्रगति का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं के लिए मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है। निगरानी के तरीके: * जनसंख्या-आधारित अध्ययन: इनमें जनसंख्या के प्रतिनिधि नमूनों में संज्ञानात्मक कार्य का बड़े पैमाने पर आकलन शामिल है। * रजिस्ट्री-आधारित अध्ययन: ये संज्ञानात्मक हानि वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए मौजूदा डेटाबेस, जैसे मेडिकल रिकॉर्ड या स्वास्थ्य बीमा दावों का उपयोग करते हैं। * निगरानी प्रणाली: इनमें स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, सामुदायिक संगठनों और अनुसंधान संस्थानों जैसे विभिन्न स्रोतों से संज्ञानात्मक कार्य पर डेटा का व्यवस्थित संग्रह शामिल है। सामान्यतः मूल्यांकित संज्ञानात्मक कार्य:
* स्मृति: अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्मृति
* ध्यान: ध्यान, एकाग्रता और विभाजित ध्यान
* भाषा: भाषण को समझना और बनाना
* कार्यकारी कार्य: योजना बनाना, समस्या-समाधान और निर्णय लेना
* दृश्य-स्थानिक कौशल: दृश्य जानकारी की धारणा और हेरफेर
संज्ञानात्मक हानि निगरानी में चुनौतियाँ:
* मानकीकरण: विभिन्न सेटिंग्स में सुसंगत मूल्यांकन विधियों और डेटा संग्रह को सुनिश्चित करना।
* डेटा गुणवत्ता: सटीक और विश्वसनीय डेटा बनाए रखना, विशेष रूप से बड़े पैमाने पर अध्ययनों में।
* संसाधन सीमाएँ: प्रभावी निगरानी के लिए पर्याप्त धन और कार्मिक आवश्यक हैं।
* नैतिक विचार: निगरानी अध्ययनों में भाग लेने वाले व्यक्तियों की गोपनीयता और गोपनीयता की रक्षा करना।
कुल मिलाकर, संज्ञानात्मक हानि निगरानी एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयास है जो इन स्थितियों से प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों के जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
हरीश पिछले 13 सालों से वेजेटेटिव स्टेट (निष्क्रिय अवस्था) में हैं यानी वह जाग तो रहे हैं लेकिन उनका शरीर या दिमाग किसी कार्य में सक्रिय नहीं है और वे किसी भी अनुभव या प्रतिक्रिया में सक्षम नहीं हैं।62 साल के अशोक राणा और उनकी पत्नी निर्मला देवी को बेटे के इलाज में काफी समस्या आ रही थी।

13 साल पहले उनका बेटा मोहाली में जहाँ पढ़ रहा था,चौथी मंजिल से गिर गया । इसके बाद उसके सिर में गंभीर चोट आई थी। आखिरी सुनवाई में सीजेआई चंद्रचूड़ ने केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट देखी और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि सरकार युवक के इलाज की पूरी व्यवस्था करे। घर पर ही लाइफ सपोर्ट लगाया जाए और फिजियोथेरेपिस्ट और डायटीसियन रेग्युलर विजिट करें। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर डॉक्टर और नर्सिंग सपोर्ट भी दिया जाए।


सीजेआई रहते चंद्रचूड़ ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार मुख्त में इलाज की सारी सुविधा उपलब्ध करवाए। अगर होम केयर ठीक ना लगे तो नोएडा के जिला अस्पताल में भर्ती कराकर सुविधाएं दी जाएं। अशोक राणा की तरफ से वकील मनीष ने जानकारी दी कि परिवार ने सरकारी इलाज की बात स्वीकार कर ली है और वह इच्छामृत्यु वाली याचिका वापस लेने को तैयार है.


इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि राणा बिना लाइफ सपोर्ट के भी जीवित रह सकते हैं, ऐसे में उन्हें ऐक्टिव इच्छामृत्यु नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा था कि कुछ मामलों में पैसिव इयुथेनेसिया की इजाजत दी जाती लेकिन एक्टिव इच्छामृत्यु की इजाजत भारत में नहीं दी जा सकती। 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ मामलों में ही किसी मरीज को पैसिव इच्छामृत्यु की इजाजत दी जा सकती है। इसके लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है। बाकी सीधे तौर पर इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं होगी।





💥भारत में वेजिटेटिव स्टेट के मरीजों के लिए कानूनी प्रावधान

भारत में वेजिटेटिव स्टेट के मरीजों के लिए कानूनी प्रावधान एक जटिल और लगातार विकसित हो रहा विषय है। इस विषय पर कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठते हैं जिनमें शामिल हैं:


 * इच्छामृत्यु (Euthanasia): भारत में इच्छामृत्यु को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग मामले में कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, लेकिन अभी भी कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।

 * लाइफ सपोर्ट सिस्टम: वेजिटेटिव स्टेट के मरीज अक्सर लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर निर्भर होते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या लाइफ सपोर्ट सिस्टम को हटाया जा सकता है।

 * मरीज के अधिकार: वेजिटेटिव स्टेट के मरीज के अधिकारों को कैसे संरक्षित किया जाए, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।

 * परिवार का निर्णय: मरीज के परिवार का निर्णय कितना महत्वपूर्ण है, यह भी एक विवादास्पद मुद्दा है।

महत्वपूर्ण अदालती फैसले:

 * अरुणा शानबाग मामला: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेजिटेटिव स्टेट में पड़े मरीज के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दी जा सकती।

 * अन्य मामले: सुप्रीम कोर्ट ने अन्य मामलों में भी इस विषय पर महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिनमें मरीज के हितों को सर्वोपरि रखने पर जोर दिया गया है।

कानूनी चुनौतियां:

 * धार्मिक और नैतिक मुद्दे: इच्छामृत्यु जैसे मुद्दों पर धार्मिक और नैतिक मतभेद होते हैं।

 * चिकित्सा जटिलताएं: वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल चिकित्सा स्थिति है और इसके लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार करना मुश्किल है।

 * सामाजिक दबाव: समाज में इस विषय पर अलग-अलग विचार हैं, जिसके कारण कानून बनाना मुश्किल हो जाता है।

निष्कर्ष:


भारत में वेजिटेटिव स्टेट के मरीजों के लिए कानूनी प्रावधान अभी भी विकसित हो रहे हैं। इस विषय पर कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। मरीज के हितों को सर्वोपरि रखते हुए एक संतुलित और व्यापक कानून बनाने की आवश्यकता है।

अधिक जानकारी के लिए आप किसी वकील या चिकित्सक से संपर्क कर सकते हैं।

नोट: यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे किसी कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी भी कानूनी मामले के लिए हमेशा किसी वकील से सलाह लें।

💥वेजिटेटिव स्टेट में रह रहे व्यक्ति के परिवार के लिए जीवन एक भावनात्मक और शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण यात्रा हो सकती है। उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जिनमें शामिल हैं:

 * भावनात्मक उथल-पुथल: प्रियजन को इस अवस्था में देखना परिवार के लिए बहुत दुखद होता है। उन्हें उदासी, गुस्सा, अपराधबोध, और निराशा जैसी भावनाओं से गुजरना पड़ता है।

 * अनिश्चितता: वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल स्थिति है और भविष्य के बारे में अनिश्चितता हमेशा बनी रहती है। परिवार को यह नहीं पता होता कि व्यक्ति कब ठीक होगा या क्या कभी ठीक होगा।

 * दैनिक देखभाल: वेजिटेटिव स्टेट के मरीज को 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है। परिवार के सदस्यों को रोजमर्रा के कामों के साथ-साथ मरीज की देखभाल भी करनी होती है, जिससे शारीरिक और मानसिक थकान होती है।

 * आर्थिक बोझ: इस स्थिति में लंबे समय तक रहने वाले व्यक्ति की देखभाल के लिए बहुत सारे पैसे खर्च होते हैं। यह परिवार के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ हो सकता है।

 * सामाजिक अलगाव: परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस स्थिति से जुड़ी भावनात्मक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वे समाज से अलग-थलग पड़ सकते हैं और दोस्तों और रिश्तेदारों से दूरी बना सकते हैं।


 * कानूनी और नैतिक मुद्दे: इच्छामृत्यु जैसे मुद्दों पर फैसले लेना परिवार के लिए बहुत कठिन होता है।

 * चिकित्सा निर्णय: परिवार को कई मुश्किल चिकित्सा निर्णय लेने होते हैं, जैसे कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम को जारी रखना या बंद करना।

परिवारों को मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं:

 * सहायता समूह: अन्य परिवारों के साथ जुड़कर परिवार के सदस्य अपनी भावनाओं को साझा कर सकते हैं और समर्थन प्राप्त कर सकते हैं।

 * मनोवैज्ञानिक सलाह: एक मनोवैज्ञानिक परिवार के सदस्यों को भावनात्मक रूप से समर्थन प्रदान कर सकता है।

 * धार्मिक नेता: धार्मिक नेता परिवार को आध्यात्मिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।

 * चिकित्सा टीम: डॉक्टर और नर्स परिवार को चिकित्सा देखभाल के बारे में जानकारी दे सकते हैं और उन्हें निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं।

वेजिटेटिव स्टेट एक बहुत ही जटिल स्थिति है और परिवारों को इस स्थिति से निपटने के लिए बहुत सारे समर्थन की आवश्यकता होती है।

अगर आप या आपके कोई परिचित इस स्थिति से गुजर रहा है तो कृपया किसी विशेषज्ञ से सलाह लें।


💥वेजिटेटिव स्टेट के बारे में

 वेजिटेटिव स्टेट अक्सर बुढ़ापे में हो जाती है, लेकिन यह हमेशा सच नहीं होता।

वेजिटेटिव स्टेट क्या है?

 * वेजिटेटिव स्टेट एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति सचेत नहीं होता है, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग काम करते रहते हैं, जैसे कि सांस लेना, दिल का धड़कना और नींद आना।

 * यह स्थिति आमतौर पर किसी गंभीर मस्तिष्क की चोट या बीमारी के कारण होती है।

 * व्यक्ति इस स्थिति में दर्द महसूस नहीं कर पाता है और अपनी जरूरतों को बता भी नहीं पाता है।

वेजिटेटिव स्टेट और बुढ़ापा

 * यह सच है कि बुढ़ापे में मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है, जो वेजिटेटिव स्टेट का कारण बन सकती हैं।

 * लेकिन यह स्थिति किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है।

 * युवा लोगों में भी गंभीर सिर की चोट या अन्य मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के कारण वेजिटेटिव स्टेट हो सकती है।

अन्य महत्वपूर्ण बातें

 * वेजिटेटिव स्टेट एक बहुत ही जटिल स्थिति है और इसके बारे में अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है।

 * इस स्थिति से पीड़ित लोगों के लिए देखभाल करना बहुत मुश्किल हो सकता है।

 * अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो वेजिटेटिव स्टेट में है, तो आपको एक अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।


💥वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल


वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस स्थिति में व्यक्ति सचेत नहीं होता, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग जैसे कि सांस लेना, दिल का धड़कना आदि काम करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है।

वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल के प्रमुख पहलू:

 * शारीरिक देखभाल:

   * पोषण: व्यक्ति को नियमित रूप से तरल या नरम आहार दिया जाता है। कई बार ट्यूब के माध्यम से भोजन दिया जाता है।

   * स्वच्छता: व्यक्ति को नियमित रूप से नहलाया जाता है और उनकी त्वचा की देखभाल की जाती है।

   * मूत्र और मल त्याग: व्यक्ति को मूत्र और मल त्याग के लिए मदद की आवश्यकता होती है।

   * शारीरिक व्यायाम: शरीर को लचीला रखने के लिए नियमित रूप से पैसिव व्यायाम करवाया जाता है।

 * चिकित्सा देखभाल:

   * संक्रमण से बचाव: संक्रमण होने का खतरा रहता है, इसलिए नियमित रूप से जांच की जाती है और जरूरत पड़ने पर एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं।

   * दर्द प्रबंधन: यदि व्यक्ति को दर्द होता है तो दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं।

   * अन्य स्वास्थ्य समस्याएं: यदि कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या है तो उसका भी इलाज किया जाता है।

 * मनोवैज्ञानिक देखभाल:

   * परिवार का समर्थन: परिवार के सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सलाह दी जाती है ताकि वे इस कठिन समय में व्यक्ति और खुद की देखभाल कर सकें।

 * पुनर्वास:

   * भौतिक चिकित्सा: शरीर को लचीला रखने के लिए भौतिक चिकित्सा की जाती है।

   * व्यवसायिक चिकित्सा: व्यक्ति को अपनी दैनिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए सिखाया जाता है।

   * भाषण चिकित्सा: संचार को बेहतर बनाने के प्रयास किए जाते हैं।

वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल के लिए विशेषज्ञों की टीम:

 * न्यूरोलॉजिस्ट

 * फिजियोथेरेपिस्ट

 * ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट

 * भाषण चिकित्सक

 * नर्स

 * मनोवैज्ञानिक

ध्यान रखने योग्य बातें:

 * वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल स्थिति है और प्रत्येक व्यक्ति की देखभाल की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं।

 * देखभालकर्ता को धैर्य रखना बहुत जरूरी है।

 * परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे का समर्थन करना चाहिए।

 * नियमित रूप से डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए आप किसी न्यूरोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन से संपर्क कर सकते हैं।

कृपया ध्यान दें: यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे किसी चिकित्सकीय सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए हमेशा किसी डॉक्टर से सलाह लें।

💥वेजिटेटिव स्टेट के बारे में समाज में धारणाएं काफी जटिल और विविध हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति सचेत नहीं होता, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग काम करते रहते हैं। इस स्थिति के बारे में कई तरह की धारणाएं और भ्रांतियां मौजूद हैं।

समाज में आम धारणाएं:

 * जीवन और मृत्यु के बीच की स्थिति: कई लोग वेजिटेटिव स्टेट को जीवन और मृत्यु के बीच की एक अस्पष्ट स्थिति मानते हैं।

 * कोमा के समान: अक्सर वेजिटेटिव स्टेट को कोमा के समान समझा जाता है, जबकि दोनों स्थितियां अलग-अलग होती हैं।

 * बेकार जीवन: कुछ लोग मानते हैं कि वेजिटेटिव स्टेट में रहना एक बेकार जीवन है और व्यक्ति को इस स्थिति से मुक्त कर देना चाहिए।

 * परिवार पर बोझ: वेजिटेटिव स्टेट में व्यक्ति की देखभाल करना परिवार के लिए एक बड़ा बोझ होता है, इस धारणा को भी समाज में स्वीकार किया जाता है।

 * आशा की किरण: कुछ लोग मानते हैं कि व्यक्ति इस स्थिति से उबर सकता है और आशा की किरण हमेशा बनी रहती है।

इन धारणाओं के पीछे के कारण:


 * अज्ञानता: वेजिटेटिव स्टेट के बारे में जागरूकता की कमी के कारण लोग गलत धारणाएं रखते हैं।

 * धार्मिक और नैतिक मान्यताएं: विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में जीवन और मृत्यु के बारे में अलग-अलग मान्यताएं होती हैं, जो इन धारणाओं को प्रभावित करती हैं।

 * मीडिया का प्रभाव: मीडिया में इस विषय पर अक्सर गलत या अधूरी जानकारी दी जाती है, जिससे लोगों में गलत धारणाएं बन जाती हैं।

 * व्यक्तिगत अनुभव: किसी के व्यक्तिगत अनुभव भी इन धारणाओं को प्रभावित कर सकते हैं।

समाज में इन धारणाओं का प्रभाव:

 * परिवार पर दबाव: परिवार के सदस्यों पर बहुत दबाव होता है कि वे सही निर्णय लें।

 * चिकित्सा निर्णयों में कठिनाई: डॉक्टरों के लिए भी ऐसे मामलों में निर्णय लेना मुश्किल होता है।

 * सामाजिक बहिष्कार: वेजिटेटिव स्टेट में व्यक्ति और उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत किया जा सकता है।

समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता:

वेजिटेटिव स्टेट के बारे में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है ताकि लोग इस स्थिति के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें। इससे परिवारों को सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी और समाज में इस स्थिति के प्रति एक अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित होगा।

यह महत्वपूर्ण है कि हम वेजिटेटिव स्टेट में लोगों को मानवता के साथ देखें और उनके अधिकारों का सम्मान करें।


Wednesday, November 13, 2024

मानव मन

 मानव मन। बिस्तर पर लेटा हुआ आदमी, रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सांसारिक कामों से घिरा हुआ...... विचारमग्न।

हमारे विचार भ्रामक हो सकते हैं या विभिन्न कारकों से प्रभावित हो सकते हैं, और उनका आलोचनात्मक मूल्यांकन करना आवश्यक है....our thoughts can be distorted or wrinkled, just like clothes.हमारे विचार भी कपड़ों की तरह विकृत या झुर्रीदार हो सकते हैं........importance of mindfulness and being present in the moment....सजगता और वर्तमान में उपस्थित रहने का महत्व।

💥developing  critical thinking

Developing critical thinking skills can be achieved through practice, patience, and dedication. Here are some strategies to help you develop your critical thinking skills:


*Active Learning*


1. *Ask questions*: Encourage yourself to ask questions about the information you receive.

2. *Analyze information*: Break down complex information into smaller parts to understand it better.

3. *Evaluate evidence*: Assess the credibility and reliability of the evidence presented.


*Critical Thinking Exercises*


1. *Solve puzzles and brain teasers*: Engage in activities that challenge your problem-solving skills.

2. *Debate and discuss*: Engage in respectful debates and discussions to develop your critical thinking skills.

3. *Reflect on your biases*: Recognize and challenge your own biases and assumptions.


*Media Literacy*


1. *Evaluate sources*: Be cautious of sources with vested interests or biases.

2. *Identify propaganda*: Recognize techniques used to manipulate public opinion.

3. *Seek multiple sources*: Verify information by consulting multiple credible sources.


*Personal Growth*


1. *Practice mindfulness*: Cultivate a mindful approach to thinking and decision-making.

2. *Embrace curiosity*: Maintain a childlike curiosity and be open to new ideas and experiences.

3. *Learn from mistakes*: Reflect on your mistakes and use them as opportunities for growth.


*Seek Out Diverse Perspectives*


1. *Engage with people from different backgrounds*: Expose yourself to diverse viewpoints and experiences.

2. *Read widely*: Explore different genres, authors, and topics to broaden your understanding.

3. *Travel and explore*: Expand your horizons by experiencing different cultures and ways of life.


By incorporating these strategies into your daily life, you'll be well on your way to developing your critical thinking skills. 

अभ्यास, धैर्य और समर्पण के माध्यम से आलोचनात्मक सोच कौशल विकसित किया जा सकता है। यहाँ कुछ रणनीतियाँ दी गई हैं जो आपको अपनी आलोचनात्मक सोच कौशल विकसित करने में मदद करेंगी:

*सक्रिय शिक्षण*

1. *प्रश्न पूछें*: आपको जो जानकारी मिलती है उसके बारे में प्रश्न पूछने के लिए खुद को प्रोत्साहित करें।


2. *जानकारी का विश्लेषण करें*: जटिल जानकारी को बेहतर ढंग से समझने के लिए उसे छोटे भागों में तोड़ें।


3. *साक्ष्य का मूल्यांकन करें*: प्रस्तुत किए गए साक्ष्य की विश्वसनीयता और विश्वसनीयता का आकलन करें।


*आलोचनात्मक सोच अभ्यास*


1. *पहेलियाँ और दिमागी पहेलियाँ हल करें*: ऐसी गतिविधियों में शामिल हों जो आपकी समस्या-समाधान कौशल को चुनौती देती हों।


2. *बहस और चर्चा करें*: अपनी आलोचनात्मक सोच कौशल विकसित करने के लिए सम्मानजनक बहस और चर्चा में शामिल हों।


3. *अपने पूर्वाग्रहों पर चिंतन करें*: अपने पूर्वाग्रहों और मान्यताओं को पहचानें और उन्हें चुनौती दें।


*मीडिया साक्षरता*


1. *स्रोतों का मूल्यांकन करें*: निहित स्वार्थों या पूर्वाग्रहों वाले स्रोतों से सावधान रहें।


2. *प्रचार की पहचान करें*: जनमत को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों को पहचानें।


3. *कई स्रोतों की तलाश करें*: कई विश्वसनीय स्रोतों से परामर्श करके जानकारी की पुष्टि करें।


*व्यक्तिगत विकास*


1. *ध्यान का अभ्यास करें*: सोचने और निर्णय लेने के लिए एक सचेत दृष्टिकोण विकसित करें।


2. *जिज्ञासा को अपनाएँ*: बच्चों जैसी जिज्ञासा बनाए रखें और नए विचारों और अनुभवों के लिए खुले रहें।


3. *गलतियों से सीखें*: अपनी गलतियों पर चिंतन करें और उन्हें विकास के अवसरों के रूप में उपयोग करें।


*विविध दृष्टिकोणों की तलाश करें*


1. *विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों से जुड़ें*: खुद को विविध दृष्टिकोणों और अनुभवों से अवगत कराएँ।


2. *व्यापक रूप से पढ़ें*: अपनी समझ को व्यापक बनाने के लिए विभिन्न शैलियों, लेखकों और विषयों का अन्वेषण करें।


3. *यात्रा करें और अन्वेषण करें*: विभिन्न संस्कृतियों और जीवन के तरीकों का अनुभव करके अपने क्षितिज का विस्तार करें।


इन रणनीतियों को अपने दैनिक जीवन में शामिल करके, आप अपनी आलोचनात्मक सोच कौशल को विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

💥Critical thinking has a profound impact on daily life, influencing how we make decisions, solve problems, and interact with others. Here are some ways critical thinking affects our daily lives:


1. *Informed Decision-Making*: Critical thinking enables us to evaluate information, identify biases, and make informed decisions. By analyzing evidence and arguments, we can choose the best course of action.

2. *Problem-Solving*: Critical thinking helps us approach problems in a systematic and logical way. We can identify the root cause of a problem, evaluate potential solutions, and select the most effective one.

3. *Effective Communication*: Critical thinking improves our communication skills by enabling us to articulate our thoughts clearly, listen actively, and respond thoughtfully.

4. *Media Literacy*: Critical thinking helps us navigate the vast amount of information available in the media. We can evaluate the credibility of sources, identify biases, and recognize misinformation.

5. *Personal Growth and Development*: Critical thinking promotes personal growth and development by encouraging us to question our assumptions, challenge our beliefs, and develop new perspectives.

6. *Improved Relationships*: Critical thinking helps us build stronger, more meaningful relationships by promoting empathy, understanding, and effective conflict resolution.

7. *Better Time Management*: Critical thinking enables us to prioritize tasks, focus on what's truly important, and avoid distractions.

8. *Increased Creativity*: Critical thinking can actually foster creativity by encouraging us to question assumptions and explore new ideas.


By cultivating critical thinking skills, we can navigate life's challenges more effectively, make better decisions, and achieve our goals.

आलोचनात्मक सोच का दैनिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, यह इस बात को प्रभावित करता है कि हम कैसे निर्णय लेते हैं, समस्याओं का समाधान करते हैं और दूसरों के साथ बातचीत करते हैं। आलोचनात्मक सोच हमारे दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करती है, इसके कुछ तरीके इस प्रकार हैं:


1. *सूचित निर्णय लेना*: आलोचनात्मक सोच हमें जानकारी का मूल्यांकन करने, पूर्वाग्रहों की पहचान करने और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। साक्ष्य और तर्कों का विश्लेषण करके, हम कार्रवाई का सबसे अच्छा तरीका चुन सकते हैं।


2. *समस्या-समाधान*: आलोचनात्मक सोच हमें समस्याओं को व्यवस्थित और तार्किक तरीके से हल करने में मदद करती है। हम किसी समस्या के मूल कारण की पहचान कर सकते हैं, संभावित समाधानों का मूल्यांकन कर सकते हैं और सबसे प्रभावी समाधान का चयन कर सकते हैं।


3. *प्रभावी संचार*: आलोचनात्मक सोच हमें अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने, सक्रिय रूप से सुनने और सोच-समझकर जवाब देने में सक्षम बनाकर हमारे संचार कौशल में सुधार करती है।


4. *मीडिया साक्षरता*: आलोचनात्मक सोच हमें मीडिया में उपलब्ध विशाल मात्रा में जानकारी को नेविगेट करने में मदद करती है। हम स्रोतों की विश्वसनीयता का मूल्यांकन कर सकते हैं, पूर्वाग्रहों की पहचान कर सकते हैं और गलत सूचना को पहचान सकते हैं।


5. *व्यक्तिगत विकास और प्रगति*: आलोचनात्मक सोच हमें अपनी मान्यताओं पर सवाल उठाने, अपनी मान्यताओं को चुनौती देने और नए दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करके व्यक्तिगत विकास और प्रगति को बढ़ावा देती है।


6. *बेहतर संबंध*: आलोचनात्मक सोच हमें सहानुभूति, समझ और प्रभावी संघर्ष समाधान को बढ़ावा देकर मजबूत, अधिक सार्थक संबंध बनाने में मदद करती है।


7. *बेहतर समय प्रबंधन*: आलोचनात्मक सोच हमें कार्यों को प्राथमिकता देने, वास्तव में महत्वपूर्ण चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने और ध्यान भटकाने वाली चीज़ों से बचने में सक्षम बनाती है।


8. *बढ़ी हुई रचनात्मकता*: आलोचनात्मक सोच वास्तव में हमें मान्यताओं पर सवाल उठाने और नए विचारों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करके रचनात्मकता को बढ़ावा दे सकती है।


आलोचनात्मक सोच कौशल विकसित करके, हम जीवन की चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से सामना कर सकते हैं, बेहतर निर्णय ले सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

💥संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह

संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह सोच और निर्णय लेने में व्यवस्थित त्रुटियाँ हैं। यहाँ कुछ सामान्य संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह दिए गए हैं जिनके बारे में आपको पता होना चाहिए:


*धारणा और ध्यान में पूर्वाग्रह*


1. *पुष्टि पूर्वाग्रह*: केवल ऐसी जानकारी की तलाश करना जो पहले से मौजूद मान्यताओं की पुष्टि करती हो।


2. *एंकरिंग पूर्वाग्रह*: सामने आई पहली जानकारी पर बहुत ज़्यादा निर्भर रहना।


3. *उपलब्धता अनुमान*: मन में आने वाली जानकारी के महत्व को ज़्यादा आंकना।


4. *पश्चदृष्टि पूर्वाग्रह*: किसी घटना के घटित होने के बाद यह मानना ​​कि यह पूर्वानुमानित थी।


*स्मृति और सीखने में पूर्वाग्रह*


1. *चयनात्मक स्मृति*: केवल ऐसी जानकारी को याद रखना जो पहले से मौजूद मान्यताओं का समर्थन करती हो।


2. *बैडर-मीनहोफ़ घटना*: किसी पैटर्न या घटना को हाल ही में उसके संपर्क में आने के बाद ही नोटिस करना।


3. *फ़ोरर प्रभाव*: सामान्य विवरण या भविष्यवाणियों को बहुत ज़्यादा महत्व देना जो व्यक्तिगत लगते हैं।


*निर्णय लेने में पूर्वाग्रह*


1. *हानि से बचना*: लाभ प्राप्त करने के बजाय नुकसान से बचना पसंद करना।


2. *डूबे हुए खर्च का भ्रम*: पहले से ही प्रतिबद्ध संसाधनों के कारण किसी निर्णय में निवेश करना जारी रखना।


3. *जुआरी का भ्रम*: यह मानना ​​कि किसी यादृच्छिक घटना के घटित होने की अधिक संभावना है क्योंकि यह हाल ही में नहीं हुई है।


4. *डनिंग-क्रूगर प्रभाव*: अपनी खुद की क्षमताओं और प्रदर्शन को ज़्यादा आंकना।


*सामाजिक प्रभाव में पूर्वाग्रह*


1. *अनुरूपता पूर्वाग्रह*: किसी समूह के साथ तालमेल बिठाने के लिए अपने व्यवहार या राय को बदलना।


2. *अधिकार पूर्वाग्रह*: अधिकार वाले लोगों की राय या निर्णयों को बहुत ज़्यादा महत्व देना।


3. *हेलो प्रभाव*: किसी के चरित्र या क्षमताओं को किसी एक विशेषता या गुण के आधार पर आंकना।


इन पूर्वाग्रहों के बारे में जागरूक होने से आपको ज़्यादा सूचित निर्णय लेने और दुनिया की ज़्यादा सूक्ष्म समझ विकसित करने में मदद मिल सकती है।

Cognitive biases are systematic errors in thinking and decision-making. Here are some common cognitive biases to be aware of:


*Biases in Perception and Attention*


1. *Confirmation Bias*: Seeking only information that confirms pre-existing beliefs.

2. *Anchoring Bias*: Relying too heavily on the first piece of information encountered.

3. *Availability Heuristic*: Overestimating the importance of information that readily comes to mind.

4. *Hindsight Bias*: Believing, after an event has occurred, that it was predictable.


*Biases in Memory and Learning*


1. *Selective Memory*: Remembering only information that supports pre-existing beliefs.

2. *The Baader-Meinhof Phenomenon*: Noticing a pattern or phenomenon only after being recently exposed to it.

3. *The Forer Effect*: Giving high credence to general descriptions or predictions that seem personalized.


*Biases in Decision-Making*


1. *Loss Aversion*: Preferring to avoid losses rather than acquire gains.

2. *The Sunk Cost Fallacy*: Continuing to invest in a decision because of the resources already committed.

3. *The Gambler's Fallacy*: Believing that a random event is more likely to happen because it has not happened recently.

4. *The Dunning-Kruger Effect*: Overestimating one's own abilities and performance.


*Biases in Social Influence*


1. *Conformity Bias*: Changing one's behavior or opinion to fit in with a group.

2. *Authority Bias*: Giving too much weight to the opinions or decisions of authority figures.

3. *The Halo Effect*: Judging someone's character or abilities based on a single trait or characteristic.


Being aware of these biases can help you make more informed decisions and develop a more nuanced understanding of the world.


💥यहाँ रोज़मर्रा की ज़िंदगी में संज्ञानात्मक पूर्वाग्रहों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:


*निर्णय लेने में पूर्वाग्रह*


1. *एंकरिंग पूर्वाग्रह*: एक स्टोर एक शर्ट का विज्ञापन इस तरह करता है "मूल रूप से $50, अब $30." $50 का मूल्य टैग एक एंकर के रूप में कार्य करता है, जिससे $30 की कीमत अधिक उचित लगती है.


2. *हानि से बचना*: एक व्यक्ति $100 खोने से बचने के लिए $100 पाने से अधिक प्रेरित होता है.


*धारणा और स्मृति में पूर्वाग्रह*


1. *पुष्टि पूर्वाग्रह*: एक व्यक्ति जो किसी विशेष राजनीतिक दल का समर्थन करता है, वह केवल उन समाचार लेखों को पढ़ता है जो उनके विचारों का समर्थन करते हैं और विरोधी दृष्टिकोणों को अनदेखा करते हैं.


2. *पश्चदृष्टि पूर्वाग्रह*: एक दोस्त के कार दुर्घटना में फंसने के बाद, आप कहते हैं, "मुझे पता था कि वे किसी दिन दुर्घटना में फंसने वाले थे."


*सामाजिक संपर्क में पूर्वाग्रह*


1. *अनुरूपता पूर्वाग्रह*: एक व्यक्ति समूह चर्चा में बहुमत के दृष्टिकोण से मेल खाने के लिए अपनी राय बदलता है. 2. *अधिकार पूर्वाग्रह*: एक व्यक्ति डॉक्टर की राय पर सिर्फ़ उनके पद और विशेषज्ञता के कारण भरोसा करने की अधिक संभावना रखता है।


*खरीदारी और वित्त में पूर्वाग्रह*


1. *सनक कॉस्ट फ़ालसी*: एक व्यक्ति पहले से ही खर्च किए गए पैसे के कारण एक असफल व्यवसाय में निवेश करना जारी रखता है।


2. *फ़्रेमिंग इफ़ेक्ट*: एक उत्पाद को "10% वसा" के बजाय "90% वसा रहित" के रूप में विज्ञापित किया जाता है, जिससे यह अधिक आकर्षक लगता है।


*स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती में पूर्वाग्रह*


1. *प्लेसीबो इफ़ेक्ट*: एक व्यक्ति को प्लेसीबो गोली लेने के बाद लक्षणों में सुधार का अनुभव होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि यह काम करेगी।


2. *उपलब्धता अनुमान*: एक व्यक्ति किसी बीमारी के जोखिम को ज़्यादा आंकता है क्योंकि उसका कोई दोस्त या परिवार का सदस्य हाल ही में उससे संक्रमित हुआ है।


इन पूर्वाग्रहों को पहचानने से आपको अधिक सूचित निर्णय लेने और दुनिया की अधिक सूक्ष्म समझ विकसित करने में मदद मिल सकती है।

Here are some examples of cognitive biases in everyday life:

*Biases in Decision-Making*


1. *Anchoring Bias*: A store advertises a shirt as "originally $50, now $30." The $50 price tag serves as an anchor, making the $30 price seem more reasonable.

2. *Loss Aversion*: A person is more motivated to avoid losing $100 than to gain $100.


*Biases in Perception and Memory*


1. *Confirmation Bias*: A person who supports a particular political party only reads news articles that support their views and ignores opposing viewpoints.

2. *Hindsight Bias*: After a friend gets into a car accident, you say, "I knew they were going to get into an accident someday."


*Biases in Social Interactions*


1. *Conformity Bias*: A person changes their opinion to match the majority view in a group discussion.

2. *Authority Bias*: A person is more likely to trust a doctor's opinion simply because of their title and expertise.


*Biases in Shopping and Finance*


1. *The Sunk Cost Fallacy*: A person continues to invest in a failing business because of the money they've already spent.

2. *Framing Effect*: A product is advertised as "90% fat-free" instead of "10% fat," making it seem more appealing.


*Biases in Health and Wellness*

1. *The Placebo Effect*: A person experiences improved symptoms after taking a placebo pill because they believe it will work.

2. *The Availability Heuristic*: A person overestimates the risk of a disease because a friend or family member recently contracted it.

Recognizing these biases can help you make more informed decisions and develop a more nuanced understanding of the world.

Monday, November 11, 2024

बूमर Boomer

 


लोकतांत्रिक देशों में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का चुनाव सीधे तौर पर पॉपुलर यानी लोकप्रिय मतों से होता है। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। यहां कोई प्रत्याशी अगर पॉपुलर मतों से विजयी भी हो जाता है तो जरूरी नहीं कि वह राष्ट्रपति बन ही जाए।

हाँ, 

अमेरिका के चुनावों में बूमर (Baby Boomers) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बूमर वे लोग हैं जो 1946 से 1964 के बीच पैदा हुए थे। इस पीढ़ी के लोग अब 60 से 80 साल की उम्र के हैं और वे अमेरिका की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा हैं। 




बूमर पीढ़ी की कुछ विशेषताएँ हैं जो उन्हें चुनावों में महत्वपूर्ण बनाती हैं:


1. **उच्च मतदान दर**: बूमर पीढ़ी के लोग आमतौर पर चुनावों में अधिक संख्या में मतदान करते हैं। वे अपने नागरिक कर्तव्यों को गंभीरता से लेते हैं।

2. **राजनीतिक प्रभाव**: इस पीढ़ी के लोग अक्सर राजनीतिक रूप से सक्रिय होते हैं और उनके पास राजनीतिक अनुभव भी होता है।

3. **आर्थिक स्थिरता**: बूमर पीढ़ी के लोग आर्थिक रूप से स्थिर होते हैं और उनके पास संपत्ति और निवेश होते हैं, जिससे वे आर्थिक नीतियों पर प्रभाव डाल सकते हैं।

4. **स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा**: बूमर पीढ़ी के लोग स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान देते हैं, जो चुनावी मुद्दों में महत्वपूर्ण होते हैं।



इस प्रकार, बूमर पीढ़ी का वोट और उनकी राजनीतिक सक्रियता चुनावों के परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।





13 नवम्बर 2024


व्हाइट हाउस क्लासरूम टू करियर समिट में राष्ट्रपति बिडेन की टिप्पणी

राष्ट्रपति जो बिडेन और प्रथम महिला जिल बिडेन ने व्हाइट हाउस में "क्लासरूम-टू-कैरियर" शिखर सम्मेलन में टिप्पणी की। राष्ट्रपति ने अपने प्रशासन के "अमेरिका में निवेश" एजेंडे पर प्रकाश डाला, जिसमें बुनियादी ढांचे, स्वच्छ ऊर्जा और उन्नत विनिर्माण में नौकरियों के लिए कैरियर मार्गों का विस्तार करना शामिल था। पहली महिला, जो उत्तरी वर्जीनिया सामुदायिक कॉलेज में प्रोफेसर हैं, ने मुफ्त सामुदायिक कॉलेज की वकालत की। यह घटना राष्ट्रपति-चुनाव डोनाल्ड ट्रम्प के संघीय शिक्षा विभाग को बंद करने के समर्थन में आवाज उठाने के बीच हुई...................https://www.c-span.org/video/?539989-1/president-biden-remarks-white-house-classroom-career-summit

अमेरिकी चुनाव में कमला हैरिस को हराने के बाद नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने वाइट हाउस में निर्वतमान राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात की है। बाइडन ने शांतिपूर्ण परिवर्तन का आश्वासन देते हुए कहा था, "मैं पूरे प्रशासन को उनकी टीम के साथ काम करने का निर्देश दूंगा।" 2020 में ट्रंप ने बाइडन के जीतने पर परंपरा नहीं निभाई थी।

नव-निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की टीम ने एक कार्यकारी आदेश का मसौदा बनाया है जिसके तहत एक 'वॉरियर बोर्ड' बनेगा जिसे 3-4 स्टार वाले सैन्य अधिकारियों के निष्कासन का अधिकार होगा। बोर्ड बर्खास्तगी के लिए सुझाव ट्रंप को सौंपेगा जिसे 30 दिनों में लागू करना होगा। बकौल रिपोर्ट, इससे उन्हें निकालना आसान होगा जिनमें अपेक्षित नेतृत्व की कमी है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, नव-निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के खिलाफ 2-आपराधिक मामले देखने वाले वकील जैक स्मिथ और उनकी टीम के कुछ सदस्य ट्रंप के पदभार ग्रहण करने से पहले इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। गौरतलब है, स्मिथ ने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप के दस्तावेज़ों को गलत तरीके से संभालने के मामले में जांच शुरू की थी।


एफडीआर प्रशासन <>लैंड लीज समझौता <>अमेरिका, ब्रिटेन, जापान के प्रमुख सब एक पल को भूल गए कि ये वही जॉर्जिया मेलोनी है, जिसने कभी दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी की राष्ट्रनीति की तारीफ की थी।.....अमेरिका जैसा राष्ट्र, जो खुद को कितना ही प्रगतिशील क्यों ना मानता हो, वहां के नागरिकों में दासता के प्रति एक खास लगाव हमेशा से देखा गया है। लोगों में तानाशाही को लेकर सकारात्मकता देखने को मिलेगी।


दरअसल यह समस्या केवल अमेरिका की नहीं अपितु प्रत्येक लोकतांत्रिक देश की है।..........हिटलर के शासन के शुरुआती काल में अमेरिकी अखबारों ने हिटलर की तारीफ़ की थी:  

तथ्य

हिटलर और अमेरिका

अमेरिकी अखबारों ने हिटलर के शासन के शुरुआती काल में उसकी तारीफ़ की थी.

हिटलर और नाज़ीवाद

हिटलर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (नाज़ी) के नेता थे।उन्होंने जातीय राष्ट्रवाद की नीति शुरू की थी, जिसमें यहूदियों और अन्य दुश्मनों को खत्म करने के निर्देश शामिल थे।

हिटलर और प्रथम विश्व युद्ध

प्रथम विश्व युद्ध में हिटलर ने जर्मन सेना के लिए स्वेच्छा से काम किया था। उन्हें पश्चिमी मोर्चे पर जमीनी सैनिकों के लिए नियुक्त किया गया था।

हिटलर और द्वितीय विश्व युद्ध

1939 के प्रारंभ में हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण किया था। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में, मित्र देशों की सेनाओं ने नाज़ी उत्पीड़न के साक्ष्य बरामद किए थे.

Containment का हिन्दी में अर्थ है - संरोधन, नियंत्रण, काबू, धारण. किसी प्रतिद्वंद्वी की अंतरराष्ट्रीय शक्ति को सीमित करने या बाधित करने के लिए बनाई गई रणनीति को भी कंटेन्मन्ट कहते हैं. 

अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ की ओर से पूर्वी यूरोप, एशिया, अफ़्रीका, और लैटिन अमेरिका में साम्यवादी प्रभाव बढ़ने के ख़िलाफ़ कंटेन्मन्ट नीति अपनाई थी. इस नीति के तहत, अमेरिका ने डेटेंटे (संबंधों में ढील) और रोलबैक (सक्रिय रूप से किसी शासन को बदलना) के बीच एक मध्य-भूमि की स्थिति बनाई थी. 

रूस और चीन ने अमेरिका की इस नीति का मुकाबला करने का फ़ैसला किया था. रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगू ने कहा था कि अमेरिका और उसके उपग्रहों द्वारा रूस और चीन पर 'दोहरे नियंत्रण' की नीति का मुकाबला करना सबसे ज़रूरी काम है. 

💥यूएस रीप्रोडक्टिव हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशंस ने बताया है कि अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के बाद गर्भपात की गोलियां और गर्भ निरोधकों की मांग बढ़ी है। महिलाओं को लग रहा है कि अब 'रीप्रोडक्टिव अपोकेलिप्स' हो जाएगा और दवाओं तक पहुंच मुश्किल होगी। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में अबॉर्शन राइट्स खत्म किया था जिसका ट्रम्प ने समर्थन किया था।
💥दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल इनदिनों गोल्फ खेलना सीख रहे हैं। राष्ट्रपति कार्यालय ने मंगलवार को पुष्टि की है कि राष्ट्रपति यह तैयारी अमेरिका के भावी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ रिश्ते मज़बूत करने के उद्देश्य से कर रहे हैं। दक्षिण कोरियाई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यून ने 2016 के बाद गोल्फ कोर्स में वापसी की है।
भारत में अगले वर्ष अगस्त 2025 में क्वाड शिखर सम्मेलन होने वाला है। हालांकि इस सम्मेलन की तिथि तय नहीं है। ऐसे में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप भारत आ सकते हैं। 
💥अरबपति गौतम अदाणी ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में जीत हासिल करने पर डॉनल्ड ट्रंप को बधाई दी है। अदाणी ने 'X' पर लिखा, "अदाणी समूह अमेरिकी ऊर्जा सुरक्षा और मज़बूत बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में $10 बिलियन का निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा लक्ष्य इसके ज़रिए 15,000 नौकरियां सृजित करने का है।"

Thursday, November 7, 2024

The Rorschach test रोर्शाक परीक्षण

 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) कैदियों का जातिगत डेटा जुटा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जेल रजिस्टरों में 'जाति कॉलम' हटाने का उसका पिछला निर्देश इसमें बाधा नहीं डालेगा। शीर्ष कोर्ट ने 3 अक्टूबर को जेलों में जाति आधारित भेदभाव पर नाराजगी जताई थी।पीठ ने कहा, "... यह स्पष्ट किया जाता है कि निर्देश (iv) एनसीआरबी द्वारा डेटा संग्रह में बाधा नहीं डालेगा।"

Read more: https://lawtrend.in/sc-confirms-ncrb-data-collection-unaffected-amid-caste-bias-reforms-in-prisons/
3अक्टूबर को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने जाति आधारित भेदभाव जैसे शारीरिक श्रम का विभाजन, बैरकों का पृथक्करण और गैर-अधिसूचित जनजातियों और आदतन अपराधियों के कैदियों के खिलाफ पूर्वाग्रह को प्रतिबंधित कर दिया और इस तरह के पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देने वाले 10 राज्यों के जेल मैनुअल नियमों को "असंवैधानिक" करार दिया।

शीर्ष अदालत उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के जेल मैनुअल के कुछ भेदभावपूर्ण प्रावधानों से निपट रही थी, जब उसने उन्हें खारिज कर दिया।

फैसले में, शीर्ष अदालत ने कहा, "नियम जो जाति के आधार पर व्यक्तिगत कैदियों के बीच विशेष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से जाति पहचान के प्रॉक्सी का हवाला देकर भेदभाव करते हैं, वे अमान्य वर्गीकरण और मौलिक समानता के उल्लंघन के कारण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं," इसने कहा था। यह निर्णय पत्रकार सुकन्या शांता द्वारा एक जनहित याचिका पर दिया गया था, जिन्होंने जेलों में जाति-आधारित भेदभाव की व्यापकता पर लिखा था।

The Rorschach test has been widely used in India since its introduction in the mid-20th century. Here's a brief overview of its cultural impact and usage in India:

Historical Context

  • Introduction: The Rorschach test was introduced in India around 1947 and has since been widely used in clinical settings for psychological assessment.

  • Research and Norms: Various studies have been conducted to adapt the test to the Indian context, generating normative data for proper responses. This helps ensure that the test is culturally relevant and accurate for Indian populations.

Clinical Use

  • Psychological Assessment: The test is extensively used by clinical psychologists and psychiatrists in India to diagnose and understand psychopathology, as well as to aid in therapy.

  • Differential Diagnosis: It is often used for differential diagnosis, helping to distinguish between different mental health conditions.

Cultural Adaptation

  • Norms and Scoring: Efforts have been made to develop norms for different indices, including content signs for caste, religion, and linguistically diverse populations. This ensures that the test is culturally sensitive and applicable to the diverse Indian population.

  • Research: Despite its popularity, there has been a decline in research interest in recent years, prompting calls to revitalize training and research on the test in India.

Challenges and Criticisms

  • Cultural Influence: Critics have pointed out that cultural differences can influence responses, making it challenging to interpret results accurately without proper cultural adaptation.

  • Validity and Reliability: Like in many other countries, the test's reliability and validity have been subjects of debate.

The Rorschach test remains a valuable tool in Indian psychology, but ongoing research and adaptation are essential to maintain its relevance and effectiveness.

20वीं सदी के मध्य में इसकी शुरुआत के बाद से ही रोर्शाक परीक्षण का भारत में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है। यहाँ भारत में इसके सांस्कृतिक प्रभाव और उपयोग का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

ऐतिहासिक संदर्भ

• परिचय: रोर्शाक परीक्षण भारत में 1947 के आसपास शुरू किया गया था और तब से मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के लिए नैदानिक ​​सेटिंग्स में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है।

• अनुसंधान और मानदंड: परीक्षण को भारतीय संदर्भ में अनुकूलित करने के लिए विभिन्न अध्ययन किए गए हैं, जिससे उचित प्रतिक्रियाओं के लिए मानक डेटा तैयार किया गया है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि परीक्षण भारतीय आबादी के लिए सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक और सटीक है2.

नैदानिक ​​उपयोग

• मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन: भारत में नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों द्वारा मनोविकृति का निदान और समझने के साथ-साथ चिकित्सा में सहायता के लिए परीक्षण का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

• विभेदक निदान: इसका उपयोग अक्सर विभेदक निदान के लिए किया जाता है, जिससे विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बीच अंतर करने में मदद मिलती है।

सांस्कृतिक अनुकूलन

मानदंड और स्कोरिंग: जाति, धर्म और भाषाई रूप से विविध आबादी के लिए सामग्री संकेतों सहित विभिन्न सूचकांकों के लिए मानदंड विकसित करने का प्रयास किया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि परीक्षण सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील है और विविध भारतीय आबादी के लिए लागू है1।

• अनुसंधान: इसकी लोकप्रियता के बावजूद, हाल के वर्षों में अनुसंधान रुचि में गिरावट आई है, जिससे भारत में परीक्षण पर प्रशिक्षण और अनुसंधान को पुनर्जीवित करने के लिए आह्वान किया गया है।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

• सांस्कृतिक प्रभाव: आलोचकों ने बताया है कि सांस्कृतिक अंतर प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे उचित सांस्कृतिक अनुकूलन के बिना परिणामों की सही व्याख्या करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

• वैधता और विश्वसनीयता: कई अन्य देशों की तरह, परीक्षण की विश्वसनीयता और वैधता बहस का विषय रही है।

रोर्शच परीक्षण भारतीय मनोविज्ञान में एक मूल्यवान उपकरण बना हुआ है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए चल रहे अनुसंधान और अनुकूलन आवश्यक हैं।

क्या आप भारत में इसके उपयोग के किसी विशिष्ट पहलू के बारे में अधिक जानना चाहेंगे?

 1 www.researchgate.net 2 www.ejpsychiatry.com 3 www.acadmedia.edu

1 https://www.researchgate.net/profile/Leister-Manickam/publication/304571798_Rorschach_Inkblot_Method_in_India_Historical_Review_and_Perspectives_for_Future_Action/links/586b56e608ae329d62117932/Rorschach-Inkblot-Method-in-India-Historical-Review-and-Perspectives-for-Future-Action.pd


Monday, November 4, 2024

व्यक्तिपरक अनुभव ...अस्पताल


 व्यक्तिपरक अनुभव ..अस्पताल<>हम अकेले नहीं हैं और उपचार पहुँच के भीतर है।

कोरोना काल के बाद कई बार अस्पताल जाना पड़ा।


अस्पतालों का व्यक्तिपरक अनुभव अस्पताल के प्रकार (सरकारी बनाम निजी), स्थान और उपयोग किए जा रहे विशिष्ट विभाग या सेवा जैसे कारकों के आधार पर बहुत भिन्न हो सकता है। हालाँकि, रोगी के अनुभवों से कुछ सामान्य विषय उभर कर आते हैं:

सकारात्मक अनुभव:

* समर्पित और दयालु कर्मचारी: कई रोगी डॉक्टरों और नर्सों के साथ सकारात्मक अनुभव बताते हैं जो देखभाल करने वाले, चौकस और आराम और सहायता प्रदान करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करते हैं।

* उन्नत चिकित्सा तकनीक और उपचार: कुछ अस्पताल, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, अत्याधुनिक चिकित्सा तकनीक और उपचार प्रदान करते हैं जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर हैं।

* सांस्कृतिक संवेदनशीलता: भारत में कई अस्पताल सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हैं और विभिन्न पृष्ठभूमि के रोगियों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।


* सस्ती देखभाल: सरकारी अस्पताल और कुछ निजी अस्पताल सस्ती या रियायती देखभाल प्रदान करते हैं, जिससे यह व्यापक श्रेणी के लोगों के लिए सुलभ हो जाता है।

नकारात्मक अनुभव:

* भीड़भाड़ और लंबा इंतजार: विशेष रूप से सरकारी अस्पतालों में भीड़भाड़ हो सकती है, जिससे अपॉइंटमेंट और उपचार के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।


* खराब स्वच्छता और सफाई: कुछ अस्पताल, खास तौर पर पुराने या कम वित्तपोषित अस्पताल, में स्वच्छता और सफाई के मानक कम हो सकते हैं।

* सहानुभूति और संचार की कमी: कुछ मरीज़ स्टाफ़ द्वारा उपेक्षित या गलत समझे जाने की शिकायत करते हैं, जो शायद बहुत ज़्यादा काम करते हैं या मरीज़ों के साथ संवाद करने के लिए उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलता।


* उच्च लागत: निजी अस्पताल बहुत महंगे हो सकते हैं, जिससे कई लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं हो पाती।

कुल मिलाकर,  अस्पतालों का व्यक्तिपरक अनुभव मिला-जुला है। जहाँ कई मरीज़ों के अनुभव सकारात्मक होते हैं, वहीं अन्य को भीड़भाड़, स्वच्छता और संचार से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अस्पताल और विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर देखभाल की गुणवत्ता में काफ़ी अंतर हो सकता है। अपनी ज़रूरतों और बजट के हिसाब से शोध करना और अस्पताल चुनना ज़रूरी है।

संज्ञानात्मक चेतना से संबंधित व्यक्तिपरक अनुभव हमारी अपनी मानसिक प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता और उन पर विचार करने की क्षमता है। चेतना का यह रूप अन्य प्रकार की चेतना से अलग है, जैसे संवेदी चेतना, जिसमें संवेदी उत्तेजनाओं के बारे में जागरूकता शामिल है।

संज्ञानात्मक चेतना संज्ञानात्मक नियंत्रण से निकटता से जुड़ी हुई है, जो बदलती परिस्थितियों के जवाब में हमारे व्यवहार को लचीले ढंग से और तेज़ी से अनुकूलित करने की क्षमता को संदर्भित करता है। संज्ञानात्मक नियंत्रण कार्यों में शामिल हैं:


* त्रुटि का पता लगाना और सुधार

* संघर्ष समाधान

* प्रतिक्रिया अवरोध

* कार्य स्विचिंग

कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि चेतना के लिए संज्ञानात्मक नियंत्रण आवश्यक है, जबकि अन्य तर्क देते हैं कि यह चेतना में योगदान देने वाले कई कारकों में से केवल एक है।


संज्ञानात्मक नियंत्रण और निर्णय लेने में चेतना की भूमिका अभी भी बहस का विषय है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि जटिल संज्ञानात्मक कार्यों, जैसे निर्णय लेने के लिए चेतना आवश्यक है, जबकि अन्य तर्क देते हैं कि कई संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ अनजाने में हो सकती हैं।

संज्ञानात्मक चेतना का अध्ययन मनोविज्ञान, तंत्रिका विज्ञान और दर्शन में अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह अभी भी एक जटिल और चुनौतीपूर्ण विषय है, लेकिन यह स्पष्ट होता जा रहा है कि चेतना मानव अनुभव का एक मूलभूत पहलू है।

The subjective experience of  hospitals can vary greatly depending on factors such as the type of hospital (government vs. private), location, and the specific department or service being utilized. However, some common themes emerge from patient experiences:

Positive Experiences:

 * Dedicated and compassionate staff: Many patients report positive experiences with doctors and nurses who are caring, attentive, and go the extra mile to provide comfort and support.


   

 * Advanced medical technology and treatments: Some hospitals, particularly in urban areas, offer cutting-edge medical technology and treatments that are comparable to international standards.

   

 * Cultural sensitivity: Many hospitals in India are culturally sensitive and cater to the diverse needs of patients from different backgrounds.

 * Affordable care: Government hospitals and some private hospitals offer affordable or subsidized care, making it accessible to a wider range of people.

Negative Experiences:

 * Overcrowding and long wait times: Government hospitals, in particular, can be overcrowded, leading to long wait times for appointments and treatments.


   

 * Poor hygiene and sanitation: Some hospitals, especially older or less well-funded ones, may have subpar hygiene and sanitation standards.

 * Lack of empathy and communication: Some patients report feeling neglected or misunderstood by staff who may be overworked or lack adequate training in patient communication.

 * High costs: Private hospitals can be very expensive, making healthcare inaccessible to many people.

Overall, the subjective experience of  hospitals is a mixed bag. While many patients have positive experiences, others face challenges related to overcrowding, hygiene, and communication. The quality of care can vary significantly depending on the hospital and the specific circumstances. It's important to do your research and choose a hospital that aligns with your needs and budget.


subjective experience corelated with cognitive consciousness is the awareness of our own mental processes and the ability to reflect on them. This form of consciousness is distinct from other types of consciousness, such as sensory consciousness, which involves the awareness of sensory stimuli.

Cognitive consciousness is closely linked to cognitive control, which refers to the ability to flexibly and rapidly adapt our behavior in response to changing circumstances. Cognitive control functions include:

 * Error detection and correction

 * Conflict resolution

 * Response inhibition

 * Task switching

Some researchers believe that cognitive control is essential for consciousness, while others argue that it is only one of many factors that contribute to consciousness.

The role of consciousness in cognitive control and decision making is still a matter of debate. Some researchers believe that consciousness is necessary for complex cognitive tasks, such as decision making, while others argue that many cognitive processes can occur unconsciously.

The study of cognitive consciousness is an important area of research in psychology, neuroscience, and philosophy. It is still a complex and challenging topic, but it is becoming increasingly clear that consciousness is a fundamental aspect of the human experience

आयुर्वेद भारतीय विज्ञान की एक शाखा है जो चिकित्सा, हर्बलिज्म, टैक्सोलॉजी, शरीर रचना विज्ञान, सर्जरी, कीमिया और संबंधित विषयों से निपटती है। प्राचीन भारत में आयुर्वेद की पारंपरिक प्रथा कम से कम पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व की है। साहित्य आमतौर पर विभिन्न ☄️काव्य मीटरों का उपयोग करके संस्कृत में लिखा जाता है।

Sub section – rasashashtra…………….Rasashastra, latest concepts…..रसशास्त्र के भीतर महत्वपूर्ण अवधारणाओं की विस्तृत सूची के साथ-साथ कहानियों, किंवदंतियों, उपमाओं, रूपकों के अंश।...रसशास्त्र आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो जड़ी-बूटियों, धातुओं और खनिजों के साथ रासायनिक  विशेषज्ञता रखती है। कुछ ग्रंथ विभिन्न रासायनिक कार्यों के साथ यौगिक और तांत्रिक प्रथाओं को जोड़ते हैं। रसशास्त्र का अंतिम लक्ष्य न केवल जीवन को संरक्षित और लम्बा करना है, बल्कि मानव जाति को ऐश्वर्य प्रदान करना भी है।

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