Frontiers in Aging
In this movie, Vinay Pathak plays the role of Amar Kaul, a man who is diagnosed with a terminal illness and decides to make a "to-do list" of ten things he wants to accomplish before he dies.
He was a
Palestinian writer, poet, translator, university professor, and activist from
the occupied Gaza Strip. He tragically passed away on December 6, 2023, along
with his family members, in an Israeli airstrike.
Dr. Alareer
is known for his poem titled "If I Must Die," which he shared on his
Twitter profile just weeks before his death. This poem has garnered significant
attention and has been translated into many languages.
If I must
die, let it be with grace,
With a heart
that's full, in a peaceful place.
Let my soul
be light, free from regret,
With
memories cherished, and no debt.
If I must
die, let it be with love,
Surrounded
by those I hold above.
Let my
spirit soar, to the skies so high,
With a
gentle whisper, a soft goodbye.
If I must
die, let it be with peace,
With a mind
at ease, and a sweet release.
Let my
journey end, with a smile so bright,
As I step
into the eternal light.
यदि मुझे मरना है, तो यह गरिमा के साथ हो,
एक भरे हुए दिल के साथ, एक शांतिपूर्ण स्थान में।
मेरी आत्मा हल्की हो, बिना पछतावे के,
स्मृतियों को संजोए हुए, और कोई ऋण नहीं।
यदि मुझे मरना है, तो यह प्रेम के साथ हो,
उनके बीच जिनको मैं सबसे ऊपर रखता हूँ।
मेरी आत्मा ऊँची उड़ान भरे, आसमान में,
एक कोमल फुसफुसाहट के साथ, एक नरम अलविदा।
यदि मुझे मरना है, तो यह शांति के साथ हो,
एक शांत मन के साथ, और एक मीठी मुक्ति।
मेरी यात्रा समाप्त हो, एक उज्ज्वल मुस्कान के साथ,
जैसे मैं अनन्त प्रकाश में प्रवेश करता
हूँ।
https://youtu.be/YsbEjldJjOw?
Refaat Alareer’s major concern was that older people’s stories aka the oral history is dying out because due to modern technology we stopped caring about stories. “I am the man I am because of the stories told to me by my mother and grandmother,” he states. As Palestinians under occupation, storytelling transcends the didactic value to an urgent need to owning our narrative, something that gives back power to the people rather than the elite. Stories that people can tell about a land are proofs of their right to that land. Editor of "Gaza Writes Black", RefaatAlareer teaches Creative Writing and World Literature at the Islamic University, Gaza. Alareer has an MA in Comparative Literature from University of London. After the Israeli aggression of 2008 on Gaza, Alareer expanded his interest to include young Palestinian writers in storytelling as a form of growth, understanding and resistance. Refaat believes in storytelling and its role in building and shaping individuals and communities. "We are what stories have been told to us," he says. In Gaza, storytelling, an activity that has been diminishing recently, has always been women's strategy to exercise power and overcome men's dominance.
Cognitive impairment surveillance refers to the ongoing monitoring and tracking of cognitive function within a population. This is crucial for several reasons:
* Early Detection: Identifying cognitive decline early allows for timely interventions, potentially slowing progression or even reversing some conditions.
* Public Health Planning: Surveillance data helps public health officials understand the prevalence and distribution of cognitive impairment within a population, which informs resource allocation and program development.
* Research: Surveillance data provides valuable information for researchers studying the causes, risk factors, and progression of cognitive decline and dementia.
Methods of Surveillance:
* Population-based studies: These involve large-scale assessments of cognitive function in representative samples of the population.
* Registry-based studies: These utilize existing databases, such as medical records or health insurance claims, to identify individuals with cognitive impairment.
* Surveillance systems: These involve the systematic collection of data on cognitive function from various sources, such as healthcare providers, community organizations, and research institutions.
Commonly Assessed Cognitive Functions:
* Memory: Short-term and long-term memory
* Attention: Focus, concentration, and divided attention
* Language: Understanding and producing speech
* Executive function: Planning, problem-solving, and decision-making
* Visuospatial skills: Perception and manipulation of visual information
Challenges in Cognitive Impairment Surveillance:
* Standardization: Ensuring consistent assessment methods and data collection across different settings.
* Data quality: Maintaining accurate and reliable data, especially in large-scale studies.
* Resource limitations: Adequate funding and personnel are essential for effective surveillance.
* Ethical considerations: Protecting the privacy and confidentiality of individuals participating in surveillance studies.
Overall, cognitive impairment surveillance is a critical public health endeavor that can significantly impact the lives of individuals and families affected by these conditions.
13 साल पहले उनका बेटा मोहाली में जहाँ पढ़ रहा था,चौथी मंजिल से गिर गया । इसके बाद उसके सिर में गंभीर चोट आई थी। आखिरी सुनवाई में सीजेआई चंद्रचूड़ ने केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट देखी और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि सरकार युवक के इलाज की पूरी व्यवस्था करे। घर पर ही लाइफ सपोर्ट लगाया जाए और फिजियोथेरेपिस्ट और डायटीसियन रेग्युलर विजिट करें। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर डॉक्टर और नर्सिंग सपोर्ट भी दिया जाए।
सीजेआई रहते चंद्रचूड़ ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार मुख्त में इलाज की सारी सुविधा उपलब्ध करवाए। अगर होम केयर ठीक ना लगे तो नोएडा के जिला अस्पताल में भर्ती कराकर सुविधाएं दी जाएं। अशोक राणा की तरफ से वकील मनीष ने जानकारी दी कि परिवार ने सरकारी इलाज की बात स्वीकार कर ली है और वह इच्छामृत्यु वाली याचिका वापस लेने को तैयार है.
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि राणा बिना लाइफ सपोर्ट के भी जीवित रह सकते हैं, ऐसे में उन्हें ऐक्टिव इच्छामृत्यु नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा था कि कुछ मामलों में पैसिव इयुथेनेसिया की इजाजत दी जाती लेकिन एक्टिव इच्छामृत्यु की इजाजत भारत में नहीं दी जा सकती। 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ मामलों में ही किसी मरीज को पैसिव इच्छामृत्यु की इजाजत दी जा सकती है। इसके लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है। बाकी सीधे तौर पर इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं होगी।
💥भारत में वेजिटेटिव स्टेट के मरीजों के लिए कानूनी प्रावधान
भारत में वेजिटेटिव स्टेट के मरीजों के लिए कानूनी प्रावधान एक जटिल और लगातार विकसित हो रहा विषय है। इस विषय पर कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठते हैं जिनमें शामिल हैं:
* इच्छामृत्यु (Euthanasia): भारत में इच्छामृत्यु को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग मामले में कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, लेकिन अभी भी कई अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।
* लाइफ सपोर्ट सिस्टम: वेजिटेटिव स्टेट के मरीज अक्सर लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर निर्भर होते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या लाइफ सपोर्ट सिस्टम को हटाया जा सकता है।
* मरीज के अधिकार: वेजिटेटिव स्टेट के मरीज के अधिकारों को कैसे संरक्षित किया जाए, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।
* परिवार का निर्णय: मरीज के परिवार का निर्णय कितना महत्वपूर्ण है, यह भी एक विवादास्पद मुद्दा है।
महत्वपूर्ण अदालती फैसले:
* अरुणा शानबाग मामला: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेजिटेटिव स्टेट में पड़े मरीज के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दी जा सकती।
* अन्य मामले: सुप्रीम कोर्ट ने अन्य मामलों में भी इस विषय पर महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिनमें मरीज के हितों को सर्वोपरि रखने पर जोर दिया गया है।
कानूनी चुनौतियां:
* धार्मिक और नैतिक मुद्दे: इच्छामृत्यु जैसे मुद्दों पर धार्मिक और नैतिक मतभेद होते हैं।
* चिकित्सा जटिलताएं: वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल चिकित्सा स्थिति है और इसके लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार करना मुश्किल है।
* सामाजिक दबाव: समाज में इस विषय पर अलग-अलग विचार हैं, जिसके कारण कानून बनाना मुश्किल हो जाता है।
निष्कर्ष:
भारत में वेजिटेटिव स्टेट के मरीजों के लिए कानूनी प्रावधान अभी भी विकसित हो रहे हैं। इस विषय पर कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है। मरीज के हितों को सर्वोपरि रखते हुए एक संतुलित और व्यापक कानून बनाने की आवश्यकता है।
अधिक जानकारी के लिए आप किसी वकील या चिकित्सक से संपर्क कर सकते हैं।
नोट: यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे किसी कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी भी कानूनी मामले के लिए हमेशा किसी वकील से सलाह लें।
💥वेजिटेटिव स्टेट में रह रहे व्यक्ति के परिवार के लिए जीवन एक भावनात्मक और शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण यात्रा हो सकती है। उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, जिनमें शामिल हैं:
* भावनात्मक उथल-पुथल: प्रियजन को इस अवस्था में देखना परिवार के लिए बहुत दुखद होता है। उन्हें उदासी, गुस्सा, अपराधबोध, और निराशा जैसी भावनाओं से गुजरना पड़ता है।
* अनिश्चितता: वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल स्थिति है और भविष्य के बारे में अनिश्चितता हमेशा बनी रहती है। परिवार को यह नहीं पता होता कि व्यक्ति कब ठीक होगा या क्या कभी ठीक होगा।
* दैनिक देखभाल: वेजिटेटिव स्टेट के मरीज को 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है। परिवार के सदस्यों को रोजमर्रा के कामों के साथ-साथ मरीज की देखभाल भी करनी होती है, जिससे शारीरिक और मानसिक थकान होती है।
* आर्थिक बोझ: इस स्थिति में लंबे समय तक रहने वाले व्यक्ति की देखभाल के लिए बहुत सारे पैसे खर्च होते हैं। यह परिवार के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ हो सकता है।
* सामाजिक अलगाव: परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस स्थिति से जुड़ी भावनात्मक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वे समाज से अलग-थलग पड़ सकते हैं और दोस्तों और रिश्तेदारों से दूरी बना सकते हैं।
* कानूनी और नैतिक मुद्दे: इच्छामृत्यु जैसे मुद्दों पर फैसले लेना परिवार के लिए बहुत कठिन होता है।
* चिकित्सा निर्णय: परिवार को कई मुश्किल चिकित्सा निर्णय लेने होते हैं, जैसे कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम को जारी रखना या बंद करना।
परिवारों को मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं:
* सहायता समूह: अन्य परिवारों के साथ जुड़कर परिवार के सदस्य अपनी भावनाओं को साझा कर सकते हैं और समर्थन प्राप्त कर सकते हैं।
* मनोवैज्ञानिक सलाह: एक मनोवैज्ञानिक परिवार के सदस्यों को भावनात्मक रूप से समर्थन प्रदान कर सकता है।
* धार्मिक नेता: धार्मिक नेता परिवार को आध्यात्मिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।
* चिकित्सा टीम: डॉक्टर और नर्स परिवार को चिकित्सा देखभाल के बारे में जानकारी दे सकते हैं और उन्हें निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं।
वेजिटेटिव स्टेट एक बहुत ही जटिल स्थिति है और परिवारों को इस स्थिति से निपटने के लिए बहुत सारे समर्थन की आवश्यकता होती है।
अगर आप या आपके कोई परिचित इस स्थिति से गुजर रहा है तो कृपया किसी विशेषज्ञ से सलाह लें।
💥वेजिटेटिव स्टेट के बारे में
वेजिटेटिव स्टेट अक्सर बुढ़ापे में हो जाती है, लेकिन यह हमेशा सच नहीं होता।
वेजिटेटिव स्टेट क्या है?
* वेजिटेटिव स्टेट एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति सचेत नहीं होता है, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग काम करते रहते हैं, जैसे कि सांस लेना, दिल का धड़कना और नींद आना।
* यह स्थिति आमतौर पर किसी गंभीर मस्तिष्क की चोट या बीमारी के कारण होती है।
* व्यक्ति इस स्थिति में दर्द महसूस नहीं कर पाता है और अपनी जरूरतों को बता भी नहीं पाता है।
वेजिटेटिव स्टेट और बुढ़ापा
* यह सच है कि बुढ़ापे में मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है, जो वेजिटेटिव स्टेट का कारण बन सकती हैं।
* लेकिन यह स्थिति किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है।
* युवा लोगों में भी गंभीर सिर की चोट या अन्य मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के कारण वेजिटेटिव स्टेट हो सकती है।
अन्य महत्वपूर्ण बातें
* वेजिटेटिव स्टेट एक बहुत ही जटिल स्थिति है और इसके बारे में अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
* इस स्थिति से पीड़ित लोगों के लिए देखभाल करना बहुत मुश्किल हो सकता है।
* अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो वेजिटेटिव स्टेट में है, तो आपको एक अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
💥वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल
वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस स्थिति में व्यक्ति सचेत नहीं होता, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग जैसे कि सांस लेना, दिल का धड़कना आदि काम करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है।
वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल के प्रमुख पहलू:
* शारीरिक देखभाल:
* पोषण: व्यक्ति को नियमित रूप से तरल या नरम आहार दिया जाता है। कई बार ट्यूब के माध्यम से भोजन दिया जाता है।
* स्वच्छता: व्यक्ति को नियमित रूप से नहलाया जाता है और उनकी त्वचा की देखभाल की जाती है।
* मूत्र और मल त्याग: व्यक्ति को मूत्र और मल त्याग के लिए मदद की आवश्यकता होती है।
* शारीरिक व्यायाम: शरीर को लचीला रखने के लिए नियमित रूप से पैसिव व्यायाम करवाया जाता है।
* चिकित्सा देखभाल:
* संक्रमण से बचाव: संक्रमण होने का खतरा रहता है, इसलिए नियमित रूप से जांच की जाती है और जरूरत पड़ने पर एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं।
* दर्द प्रबंधन: यदि व्यक्ति को दर्द होता है तो दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं।
* अन्य स्वास्थ्य समस्याएं: यदि कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या है तो उसका भी इलाज किया जाता है।
* मनोवैज्ञानिक देखभाल:
* परिवार का समर्थन: परिवार के सदस्यों को मनोवैज्ञानिक सलाह दी जाती है ताकि वे इस कठिन समय में व्यक्ति और खुद की देखभाल कर सकें।
* पुनर्वास:
* भौतिक चिकित्सा: शरीर को लचीला रखने के लिए भौतिक चिकित्सा की जाती है।
* व्यवसायिक चिकित्सा: व्यक्ति को अपनी दैनिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए सिखाया जाता है।
* भाषण चिकित्सा: संचार को बेहतर बनाने के प्रयास किए जाते हैं।
वेजिटेटिव स्टेट में लोगों की देखभाल के लिए विशेषज्ञों की टीम:
* न्यूरोलॉजिस्ट
* फिजियोथेरेपिस्ट
* ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट
* भाषण चिकित्सक
* नर्स
* मनोवैज्ञानिक
ध्यान रखने योग्य बातें:
* वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल स्थिति है और प्रत्येक व्यक्ति की देखभाल की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं।
* देखभालकर्ता को धैर्य रखना बहुत जरूरी है।
* परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे का समर्थन करना चाहिए।
* नियमित रूप से डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए आप किसी न्यूरोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन से संपर्क कर सकते हैं।
कृपया ध्यान दें: यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है और इसे किसी चिकित्सकीय सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए हमेशा किसी डॉक्टर से सलाह लें।
💥वेजिटेटिव स्टेट के बारे में समाज में धारणाएं काफी जटिल और विविध हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति सचेत नहीं होता, लेकिन उसके शरीर के कुछ अंग काम करते रहते हैं। इस स्थिति के बारे में कई तरह की धारणाएं और भ्रांतियां मौजूद हैं।
समाज में आम धारणाएं:
* जीवन और मृत्यु के बीच की स्थिति: कई लोग वेजिटेटिव स्टेट को जीवन और मृत्यु के बीच की एक अस्पष्ट स्थिति मानते हैं।
* कोमा के समान: अक्सर वेजिटेटिव स्टेट को कोमा के समान समझा जाता है, जबकि दोनों स्थितियां अलग-अलग होती हैं।
* बेकार जीवन: कुछ लोग मानते हैं कि वेजिटेटिव स्टेट में रहना एक बेकार जीवन है और व्यक्ति को इस स्थिति से मुक्त कर देना चाहिए।
* परिवार पर बोझ: वेजिटेटिव स्टेट में व्यक्ति की देखभाल करना परिवार के लिए एक बड़ा बोझ होता है, इस धारणा को भी समाज में स्वीकार किया जाता है।
* आशा की किरण: कुछ लोग मानते हैं कि व्यक्ति इस स्थिति से उबर सकता है और आशा की किरण हमेशा बनी रहती है।
इन धारणाओं के पीछे के कारण:
* अज्ञानता: वेजिटेटिव स्टेट के बारे में जागरूकता की कमी के कारण लोग गलत धारणाएं रखते हैं।
* धार्मिक और नैतिक मान्यताएं: विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में जीवन और मृत्यु के बारे में अलग-अलग मान्यताएं होती हैं, जो इन धारणाओं को प्रभावित करती हैं।
* मीडिया का प्रभाव: मीडिया में इस विषय पर अक्सर गलत या अधूरी जानकारी दी जाती है, जिससे लोगों में गलत धारणाएं बन जाती हैं।
* व्यक्तिगत अनुभव: किसी के व्यक्तिगत अनुभव भी इन धारणाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
समाज में इन धारणाओं का प्रभाव:
* परिवार पर दबाव: परिवार के सदस्यों पर बहुत दबाव होता है कि वे सही निर्णय लें।
* चिकित्सा निर्णयों में कठिनाई: डॉक्टरों के लिए भी ऐसे मामलों में निर्णय लेना मुश्किल होता है।
* सामाजिक बहिष्कार: वेजिटेटिव स्टेट में व्यक्ति और उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत किया जा सकता है।
समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता:
वेजिटेटिव स्टेट के बारे में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है ताकि लोग इस स्थिति के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें। इससे परिवारों को सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी और समाज में इस स्थिति के प्रति एक अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित होगा।
यह महत्वपूर्ण है कि हम वेजिटेटिव स्टेट में लोगों को मानवता के साथ देखें और उनके अधिकारों का सम्मान करें।