Tuesday, January 7, 2025

e Kumbh


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 'रंगी को नारंगी कहे' कबीर साहब का एक कथन हैइसका मतलब है कि जो रंगदार चीज़ है उसे

नारंगी कहते हैं और दूध से खोवा बनता है, जिसमें सब कुछ सार रहता है, उसे खोवा कहते हैं. 
कबीर साहब का पूरा कथन है, 'रंगी को नारंगी कहे, बने दूध का खोवा। चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया'. इसका मतलब है कि चलती को गाड़ी कहना दुनिया का उल्टा तरीका है. सच्चे को झूठ कहना भी उल्टा तरीका ही है. ...... जागते रहो (1956) फिल्म में भी इस लाइन को कहा गया है...





महाकुंभ का आयोजन 14 जनवरी 2025 को प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में शाही स्नान से शुरू होगा और यह 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। महाकुंभ का विशेष महत्व है क्योंकि यह हर 144 वर्षों में एक बार होता है और इसे ज्योतिषीय घटनाओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है।........ 


इसमें कई अनोखे नाम वाले बाबा.........इनमें 'ई रिक्शा बाबा', 'छोटू बाबा', 'चाबी बाबा', 'रुद्राक्ष बाबा', भयंकर बाबा, सरकार बाबा, भगवान बाबा,, जिज्ञासु बाबा, प्रज्ञाबाबा,अंतर्ज्ञानीबाबा,'एम्बेसडर बाबा', 'एनवायरनमेंट बाबा', 'डिज़िटल मौनी बाबा', 'सिलिंडर वाले बाबा', 'बवंडर बाबा', ज्ञानी बाबा और 'लंबे नाखून वाले बाबा' समेत कई बाबा शामिल हैं। 'चाबी वाले बाबा' का असली

नाम हरिश्चंद्र है.........महाकुंभ मेला का आगाज 13 जनवरी से होने जा रहा है। आगरा से कुंभनगरी आए

एक दंपती ने अपनी 13 साल की बेटी को जूना अखाड़े को दान कर दिया। बेटी राखी सिंह चाहती थी कि वह साध्‍वी बने। वह आगरा के स्प्रिंग फील्‍ड इंटर कॉलेज में कक्षा 9 की छात्रा है। उसके पिता संदीप सिंह पेठा कारोबारी हैं जबकि मां गृहणी हैं।
गंगा स्‍नान के बाद जूना अखाड़ा के संत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्‍चार के बीच राखी सिंह को शिविर प्रवेश कराया। उसका नया नाम गौरी रखा गया है। गौरी का पिंडदान 19 जनवरी को किया जाएगा। सभी धार्मिक संस्‍कारों के बाद गौरी गुरु परिवार का हिस्‍सा हो जाएगी। पिता संदीप सिंह ने बताया कि वह संत कौशल गिरि से चार सालों से जुड़े हुए हैं। उन्‍होंने उनके मोहल्‍ले में भागवत कथा कराई थी। उसी समय से उनके मन में भक्ति की इच्‍छा जगी।जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि ने बताया कि संदीप सिंह और उनकी पत्‍नी कई सालों से उनसे जुड़े हैं। उन्‍होंने बगैर किसी दबाव अपनी बड़ी बेटी को साध्‍वी बनाने की इच्‍छा जताई है। बेटी अगर आगे और पढ़ना चाहेगी तो उसे अध्‍यात्‍म की शिक्षा दिलवाई जाएगी।..............नाबालिक लड़की को साध्वी बनने के मामले में जूना अखाड़े द्वारा बड़ी कार्रवाई की गई है। जूना अखाड़े ने कड़ा कदम उठाते हुए 13 वर्षीय साध्वी गौरी गिरि और उसके गुरु कौशल गिरि को अखाड़े से निष्कासित कर दिया है।
महाकुंभ के लिए पहुंचे 'ऐम्बैसडर बाबा' अपनी ऐम्बैसडर कार में ही रहते व सोते हैं। वहीं, कई बाबा डिफेंडर, एवेंजर बाइक, इनोवा, फॉर्च्यूनर लेजेंडर, मर्सिडीज़ जीएलएस, मॉडिफाइड जिप्सी आदि वाहनों से पहुंचे हैं।.........बाबा लग्ज़री गाड़ियों से भी पहुंच रहे हैं जिसकी तस्वीरें सामने आई हैं।
हर 12 साल में चार बार क्रमिक रूप से गंगा पर हरिद्वार में, शिप्रा पर उज्जैन में, गोदावरी पर नासिक और प्रयागराज, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, होता है। अर्ध कुंभ मेला हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है, जबकि महाकुंभ मेला, एक दुर्लभ और भव्य आयोजन है, जो हर 144 साल में होता है।

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प्रयागराज में महाकुंभ-2025 के दौरान दुनिया और देशभर के 20 से अधिक प्रमुख शिक्षण संस्थान महाकुंभ से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करने के लिए कैंप करेंगे। रिसर्च में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, क्योटो यूनिवर्सिटी, एम्स, आईआईएम अहमदाबाद, आईआईएम बेंगलुरु, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास और जेएनयू जैसे प्रमुख संस्थान के प्रोफेसर और शोध छात्र शामिल होंगे।

प्रयागराज महाकुंभ में बाबाओं के माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग: एक चुनौतीपूर्ण कार्य

माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग एक जटिल विज्ञान है जो किसी व्यक्ति के चेहरे पर बहुत ही छोटे, अक्सर अनैच्छिक भावों को पहचानने और उनका विश्लेषण करने पर केंद्रित है। ये भाव अक्सर कुछ ही अंशों के लिए दिखाई देते हैं और व्यक्तिगत या सांस्कृतिक मतभेदों के कारण व्याख्या करना मुश्किल हो सकता है।

प्रयागराज महाकुंभ में हजारों साधु-संतों का जमावड़ा होता


है। उनके माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग को लेकर कई चुनौतियाँ हैं:


* विविधता: साधु-संतों का आना विभिन्न संप्रदायों और पृष्ठभूमि से होता है। उनके चेहरे के भावों की व्याख्या करते समय सांस्कृतिक और धार्मिक कारकों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।

 * धार्मिक भाव: साधु-संतों के चेहरे पर अक्सर गहन भावनाएं, जैसे कि आध्यात्मिक आनंद, शांति या तपस्या, दिखाई देती हैं। इन भावों को सामान्य भावों से अलग करना मुश्किल हो सकता है।

 * वस्त्र: कई साधु-संतों के चेहरे आंशिक रूप से ढके होते हैं, जिससे उनके माइक्रोएक्सप्रेशन को पहचानना मुश्किल हो जाता है।

 * अनुभव की कमी: माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग एक विशेषज्ञता है और इसमें प्रशिक्षित लोगों द्वारा ही किया जा सकता है। साधु-संतों के विशिष्ट संदर्भ में इस तरह के अनुभव की कमी है।

 * नैतिक मुद्दे: बिना अनुमति के किसी व्यक्ति के चेहरे के भावों का विश्लेषण करना एक नैतिक मुद्दा हो सकता है। खासकर धार्मिक समारोहों के दौरान।

संभावित अध्ययन:

यद्यपि उपरोक्त चुनौतियों के बावजूद, प्रयागराज महाकुंभ में साधु-संतों के माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग पर एक अध्ययन किया जा सकता है। इस अध्ययन में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

 * सांस्कृतिक और धार्मिक विशेषज्ञों की सहायता: अध्ययन में सांस्कृतिक और धार्मिक विशेषज्ञों को शामिल किया जा सकता है ताकि साधु-संतों के चेहरे के भावों की व्याख्या में सहायता मिल सके।


 * तकनीकी उपकरण: चेहरे के भावों को अधिक सटीकता से कैप्चर करने के लिए विशेष कैमरों और सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा सकता है।

 * सीमित दायरा: शुरुआत में अध्ययन को कुछ विशिष्ट संप्रदायों या साधु-संतों के समूह तक सीमित किया जा सकता है।

अध्ययन के संभावित लाभ:

 * आध्यात्मिक अनुभवों की समझ: इस अध्ययन से आध्यात्मिक अनुभवों के दौरान उत्पन्न होने वाले भावों की बेहतर समझ मिल सकती है।

 * मानव व्यवहार की समझ: यह मानव व्यवहार के बारे में नए insights प्रदान कर सकता है।

 


* मनोविज्ञान और धर्म के बीच संबंध: यह मनोविज्ञान और धर्म के बीच संबंधों पर नए प्रकाश डाल सकता है।

निष्कर्ष:

प्रयागराज महाकुंभ में बाबाओं के माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग एक रोचक और चुनौतीपूर्ण विषय है। यह अध्ययन मानव व्यवहार और आध्यात्मिकता के बारे में हमारी समझ को गहरा कर सकता है। हालांकि, इस तरह के अध्ययन को करने से पहले नैतिक मुद्दों और सांस्कृतिक संवेदनशीलता पर गंभीर विचार किया जाना चाहिए।

Disclaimer: यह जानकारी केवल सूचना के उद्देश्य से है और इसे किसी भी प्रकार के चिकित्सा या मनोवैज्ञानिक सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।

👉कुछ विशेष पहलू 

यहाँ कुछ संभावित विषय हैं जिन पर हम चर्चा कर सकते हैं:

 * माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग:

   * यह तकनीक कैसे काम करती है?

   * इसे किन क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है?

   * इसकी सीमाएँ क्या हैं?

 * धार्मिक भावनाओं का अध्ययन:

   * विभिन्न धर्मों में भावनाओं का अभिव्यक्त होना कैसे अलग-अलग होता है?

   * धार्मिक अनुभवों का मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है?

 * प्रयागराज महाकुंभ:


   * महाकुंभ का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व क्या है?

   * इसमें विभिन्न संप्रदायों की भूमिका क्या होती है?

   * महाकुंभ के दौरान होने वाले अनुष्ठान और रीति-रिवाज क्या हैं?

 * अध्ययन की चुनौतियाँ और समाधान:

   * इस तरह के अध्ययन को करने में आने वाली मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?

   * इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है?

 * नैतिक मुद्दे:

   * इस तरह के अध्ययन में नैतिकता का क्या महत्व है?

   * अनुमति के बिना किसी व्यक्ति का अध्ययन करना क्यों गलत है?

यहाँ कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी हैं जो आप पूछ सकते हैं:

 * क्या इस तरह के अध्ययन से धर्म के बारे में हमारी समझ में कोई बदलाव आएगा?

 * क्या माइक्रोएक्सप्रेशन रीडिंग का उपयोग किसी व्यक्ति की भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है?

 * क्या प्रयागराज महाकुंभ में होने वाले अनुष्ठानों का वैज्ञानिक आधार है?


➡️ जिज्ञासा ⬅️ 

अंत एक सूफीनामा से....

हम ने दर-पर्दा तुझे माह-जबीं देख लिया
अब न कर पर्दा कि ऐ पर्दा-नशीं देख लिया

तेरे दीदार की हम को थी तमन्ना सो तुझे
लोग देखेंगे वहाँ हम ने यहीं देख लिया

हम नज़र-बाज़ों से तू छुप न सका जान-ए-जहाँ
तू जहाँ जा के छुपा हम ने वहीं देख लिया

हम ने देखा तुझे आँखों की सियाह पुतली में
सात पर्दों में तुझे पर्दा-नशीं देख लिया

पूछे उस से कोई तौहीद के मज़मूँ 'साक़ी'
जिस ने अहमद को अहद के ही क़रीं देख लि

frontiersin.org
https://www.wellbeingintlstudiesrepository.org/eth/
September 17, 2024
Book TV
Michael Mandelbaum, "The Titans of the 20th Century"
Lenin, Hitler, Churchill, and Mao, and other pivotal figures of the 20th century are the topics of Johns Hopkins University professor emeritus Michael Mandelbaum's book

https://youtu.be/oTwgf56GbsA?si=gxYCPwIKlOdtUX5w        Mukul Kanitkar


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