जीनेटिक परीक्षण एक ऐसा परीक्षण है जो किसी व्यक्ति के DNA या जीन का अध्ययन करता है। जीनेटिक परीक्षण का उद्देश्य विभिन्न आनुवंशिक रोगों, विकारों या विशेषताओं का पता लगाना है। जीनेटिक परीक्षण के लिए, रक्त, लार, बाल, त्वचा या अन्य ऊतकों का नमूना लिया जाता है। इस नमूने को फिर लैबोरेटरी में भेजा जाता है, जहां विशेषज्ञ इसे विश्लेषण करते हैं।
जीनेटिक परीक्षण के विभिन्न प्रकार हैं, जैसे कि:
- नवजात जीनेटिक परीक्षण: इस परीक्षण में, नवजात शिशु के रक्त का नमूना लिया जाता है और उसमें कुछ आम आनुवंशिक रोगों की जांच की जाती है।
- परिवारी इतिहास पर आधारित जीनेटिक परीक्षण: इस परीक्षण में, व्यक्ति के परिवार के इतिहास में किसी आनुवंशिक रोग की उपस्थिति के आधार पर, उसके लिए जीनेटिक परीक्षण की सलाह दी जाती है।
- जीनेटिक परीक्षण के लिए लक्षण: इस परीक्षण में, व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर, उसके लिए जीनेटिक परीक्षण की सलाह दी जाती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी को अत्यधिक रक्तस्राव होता है, तो उसके लिए हीमोफीलिया का जीनेटिक परीक्षण करवाया जा सकता है।
- जीनेटिक परीक्षण के लिए जोखिम: इस परीक्षण में, व्यक्ति के लिए किसी आनुवंशिक रोग का जोखिम आकलन किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी के परिवार में कैंसर का इतिहास हो, तो उसके लिए कैंसर का जीनेटिक परीक्षण करवाया जा सकता है।
- जीनेटिक परीक्षण के लिए चयन: इस परीक्षण में, व्यक्ति के लिए किसी विशेष विशेषता का चयन किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी को अपने बच्चे का लिंग जानना हो, तो उसके लिए लिंग निर्धारण का जीनेटिक परीक्षण करवाया जा सकता है।
जीनेटिक परीक्षण के परिणाम व्यक्ति को उसके आनुवंशिक रोगों, विकारों या विशेषताओं के बारे में जानकारी देते हैं। इससे व्यक्ति को उचित उपचार, देखभाल या निर्णय लेने में मदद मिलती है। जीनेटिक परीक्षण के परिणाम को विशेषज्ञों द्वारा व्याख्या किया जाता है और व्यक्ति को उनके अर्थ और प्रभाव के बारे में सलाह दी जाती है।
मुझे आशा है कि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी होगी। अगर आपको कोई और सवाल हो तो मुझसे पूछ सकते हैं। 😊
ड्रोसोफिला तकनीक
अनुसंधान और शिक्षण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त उच्च गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने साइटोजेनेटिक्स प्रयोगशाला में "डीबीटी की स्टार कॉलेज योजना के तहत जीवविज्ञान प्रयोगशालाओं के लिए ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर का उपयोग करने में शिक्षकों के प्रशिक्षण केंद्र" की स्थापना की है।
केंद्र करेगा
1) व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यशालाओं के माध्यम से कक्षा में सीखने के लिए ड्रोसोफिला का उपयोग करने के लिए शिक्षकों को, विशेषकर डीबीटी 'स्टार' कॉलेजों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करें और उन्हें दीर्घकालिक सहायता प्रदान करें।
2) भविष्य के शोधकर्ताओं और शिक्षकों के रूप में अपनी क्षमता में सुधार करने के लिए युवा शोधकर्ताओं को उन्नत फ्लाई तकनीकों में प्रशिक्षित करें,
3) यूजी-, पीजी और शोध छात्रों के लिए फ्लाई तकनीकों पर वीडियो के साथ समर्थित अच्छी तरह से सचित्र और स्व-व्याख्यात्मक प्रयोगशाला मैनुअल तैयार करें , और
4) शोधकर्ताओं और स्नातक शिक्षकों के लिए एक आम बैठक का मैदान प्रदान करें।
जूलॉजी विभाग के साइटोजेनेटिक्स प्रयोगशाला के अन्य सदस्य और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अन्य ड्रोसोफिला शोधकर्ता भी केंद्र के प्रशिक्षण और अन्य गतिविधियों में शामिल होंगे। अगले पांच वर्षों के दौरान, यह केंद्र 15 प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना बना रहा है, जिनमें से प्रत्येक में 15 भाग लेने वाले शिक्षक होंगे, और ड्रोसोफिला मॉडल का उपयोग करके कई युवा शोधकर्ताओं को उन्नत तकनीकों में प्रशिक्षित करेंगे। प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण से देश भर में जीवन विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों के प्रयोगशाला अनुभव में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।
The Drosophila eye model has been extensively used to study molecular genetic mechanisms involved in patterning and growth. Since the genetic machinery involved in the Drosophila eye is similar to humans, it has been used to model human diseases and homology to eyes in other taxa 12.
Prof. Amit Singh, Schuellein Endowed Chair (2018-2021), Drosophila Development and Disease Lab, Department of Biology, University of Dayton, Dayton, OH, USA delivered an invited talk on “Drosophila eye model to study patterning and disease” organized by the Department of Biological Sciences on 2nd May 2022 at 5:45 PM 3.
अधिक जानें:
1. books.google.com2. link.springer.com3. bits-pilani.ac.in4. searchworks.stanford.edu
Dr Amit Singh a tenured Professor at the University of Dayton, is a Drosophila geneticist who works in the area of early eye patterning and Drosophila melanogaster (a.k.a. fruit fly) eye model to study Alzheimer’s disease and related dementias. Dr. Singh received his Ph.D. in the field of patterning and growth using Drosophila model at D. A. University, Indore, India. After a short stint in the field of Trangenics of silkworm, Bombyx mori, in the Indian Institute of Sciences (IISc.), Bangalore, India, Dr. Singh moved to Academic Sinica, Taipei, Taiwan to pursue his postdoctoral research in the field of eye development using Drosophila melanogaster model system. In 2002, Dr. Singh moved to Baylor College of Medicine, Houston, Texas to further pursue his work on Drosophila eye development and was promoted to an instructor (non-tenure track faculty) position in 2004. Dr. Singh was hired at University of Dayton as tenure track assistant professor in 2007 and promoted to Professor (tenured) in 2018. To date, he has served as an editor on Volume I of this book, 5 Book chapters and 61 papers including reviews and research papers.
Dr. Madhuri Kango-Singh, is a tenured Associate Professor in the Department of Biology at University of Dayton (OH). Dr. Kango-Singh works in the area of growth regulation and cancer using genetic approaches in Drosophila. Dr. Kango-Singh completed her Ph.D. in growth regulation in Drosophila from D.A. University Indore (India). Between 1997-2002 Dr. Kango-Singh pursued postdoctoral research at Indian Institute of Science, Bangalore (India) and Academia Sinica, Taiwan in the areas of silkworm and Drosophila development. In 2002, Dr. Kango-Singh joined The University of Texas M D Anderson Cancer Center as a postdoctoral fellow and later as an Instructor to work on growth regulatory pathways in Drosophila where she played a key role in the identification of key components of the Hippo pathway. In 2007 Dr. Kango-Singh joined the Basic Sciences Division at Mercer University School of Medicine as a Tenure-Track Assistant Professor. In 2009, Dr. Kango-Singh moved as an Assistant Professor (Tenure-track) to the University of Dayton where she was promoted to Associate Professor with Tenure in 2015.
🔴 ड्रोसोफिला तकनीक एक ऐसा विधि है जिसमें ड्रोसोफिला नामक एक छोटा सा फली मक्खी का प्रयोग जैविक अनुसंधान में किया जाता है। ड्रोसोफिला का जीनोम पूरी तरह से अनुक्रमित है और इसके जैव रसायन, शरीर क्रिया विज्ञान और व्यवहार के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध है। ड्रोसोफिला का प्रयोग विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं जैसे कि विकास, वंशानुक्रम, रोग प्रतिरोध, व्यवहार आदि का अध्ययन करने में किया जाता है।
ड्रोसोफिला तकनीक के बारे में और अधिक जानने के लिए, आप निम्नलिखित वेबसाइटों पर जा सकते हैं:
- बीएचयू प्रयोगशाला को भारत सरकार से मिलेगी 2 करोड़ रुपये की अनुदान राशि: इस लेख में बताया गया है कि कैसे बीएचयू की साइटोजेनेटिक्स प्रयोगशाला में ड्रोसोफिला तकनीक के इस्तेमाल के लिए शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है।1
- बीएचयू की प्रयोगशाला के लिए सरकार देगी दो करोड़ का अनुदान: इस लेख में बताया गया है कि कैसे ड्रोसोफिला तकनीक का प्रयोग करने लिए शिक्षकों और युवा अनुसंधानकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाएगा।2
- डेली अपडेट्स - दृष्टि आईएएस: इस लेख में बताया गया है कि कैसे ड्रोसोफिला एक उत्कृष्ट जैव प्रतिरूप जीव है जिसका प्रयोग विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने में किया जाता है।1
No comments:
Post a Comment