Thursday, September 21, 2023

लेटरल एंट्री, जिसे गैर-अफसरशाह निजी क्षेत्र से लोगों का प्रशासन में आना

 

'लेटरल एंट्री' एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जो किसी संगठन में एक उच्च पद पर नियुक्त होता है, भले ही उसके पास उस पद के लिए आवश्यक औपचारिक योग्यता या अनुभव न हो। भारत में, 'लेटरल एंट्री' का इस्तेमाल अक्सर निजी क्षेत्र से लोगों के लिए किया जाता है जो प्रशासन में शामिल होना चाहते हैं।

लेटरल एंट्री के समर्थकों का तर्क है कि यह सरकार को अधिक कुशल और नवीन बनाने में मदद कर सकता है। वे कहते हैं कि निजी क्षेत्र से लोग नए विचार और दृष्टिकोण ला सकते हैं जो सरकारी सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।

लेटरल एंट्री के विरोधियों का तर्क है कि यह सरकार की जवाबदेही को कम कर सकता है। वे कहते हैं कि जब निजी क्षेत्र के लोग सरकारी पदों पर नियुक्त होते हैं, तो वे अक्सर सरकारी नीतियों को निजी क्षेत्र के हितों के अनुरूप बनाने के लिए दबाव डालते हैं।

भारत में, लेटरल एंट्री के लिए कई कार्यक्रम हैं। इनमें से कुछ कार्यक्रमों में, निजी क्षेत्र के लोगों को सरकारी सेवाओं के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है। अन्य कार्यक्रमों में, निजी क्षेत्र के लोगों को सीधे सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता है।

लेटरल एंट्री एक विवादास्पद मुद्दा है। इसके समर्थकों और विरोधियों दोनों के पास मजबूत तर्क हैं। भारत में, लेटरल एंट्री का भविष्य अभी भी अनिश्चित है।

भारत में लेटरल एंट्री के कुछ फायदे और नुकसान इस प्रकार हैं:

फायदे:

नवीन विचारों और दृष्टिकोणों को ला सकता है


सरकार को अधिक कुशल बना सकता है


सरकारी सेवाओं को बेहतर बना सकता है


नुकसान:

सरकार की जवाबदेही को कम कर सकता है


निजी क्षेत्र के हितों को बढ़ावा दे सकता है


निष्कर्ष:

लेटरल एंट्री एक ऐसा मुद्दा है जिसके बारे में सोचने के लिए बहुत कुछ है। इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं। भारत में, लेटरल एंट्री का भविष्य अभी भी अनिश्चित है।

निजीकरण के नकारात्मक प्रभाव हैं: समझने में एक महत्वपूर्ण असुविधा निजीकरण के साथ होने वाली रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की संभावना है। अमीर और गरीब लोगों के बीच पुल का विस्तार करना। बिजनेस मॉडल निजी संगठनों द्वारा थोपे जाते हैं...

सरकारें यह सुनिश्चित करने के लिए व्यवसायों को विनियमित करती हैं कि उनकी गतिविधियाँ कानूनों और विनियमों का अनुपालन करती हैं और उपभोक्ताओं को अनुचित प्रथाओं से बचाती हैं। वे निवेश को प्रोत्साहित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कंपनियों को वित्तीय सहायता, कर प्रोत्साहन और सब्सिडी भी प्रदान करते हैं।
निजी क्षेत्र नौकरियाँ पैदा करके, वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करके और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सरकारों के लिए कर राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
सरकार किसी इकाई या व्यवसाय की स्वामी नहीं रह जाती। वह प्रक्रिया जिसमें सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी पर कुछ लोगों का कब्ज़ा हो जाता है, उसे निजीकरण भी कहा जाता है। कंपनी के स्टॉक का अब शेयर बाजार में कारोबार नहीं होता है और आम जनता को ऐसी कंपनी में हिस्सेदारी रखने से रोक दिया जाता है।
निजी नौकरियाँ सरकारी नौकरियों की तुलना में कई लाभ प्रदान करती हैं, जैसे उच्च वेतन, प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन और बेहतर भत्ते। प्राइवेट नौकरी में तेज करियर ग्रोथ की संभावना के साथ-साथ गतिशील माहौल में काम करने का मौका भी मिलता है।
सरकार ने उद्योग, व्यापार और सेवा क्षेत्र में निजी क्षेत्र के लिए एक विशिष्ट भूमिका तय की है। भारत का सबसे प्रमुख क्षेत्र, यानी कृषि और अन्य संबद्ध गतिविधियाँ जैसे डेयरी, पशुपालन, मुर्गीपालन आदि पूरी तरह से निजी क्षेत्र के नियंत्रण में है।
निजीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। कोविड के दौरान, सरकार का राजस्व काफी कम हो गया और अर्थव्यवस्था की रिकवरी के लिए निजीकरण केंद्रीय रणनीति बन गई। लेकिन दूसरी ओर, बहुत अधिक निजीकरण से बाज़ार में कुछ बड़े खिलाड़ियों का एकाधिकार बन सकता है।
निजीकरण के नुकसान

नैसर्गिक एकाधिकार। कुछ क्षेत्रों में जहां प्रतिस्पर्धा कम है, निजीकरण से किसी एक निजी कंपनी का एकाधिकार हो सकता है। ...

जनहित में गिरावट. ...

विनियमों का अभाव. ...

कम भविष्य का निवेश. ...

कंपनियों का विखंडन.

सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को नौकरी जाने का खतरा नहीं रहेगा और उनकी नौकरी सेवानिवृत्ति तक सुरक्षित रहेगी। कुछ परिदृश्यों में, यदि सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना की पेशकश की जाती है, तो एक स्पष्ट रूप से परिभाषित प्रक्रिया का पालन किया जाता है और वीआरएस का विकल्प चुनने वाले कर्मचारियों को भारी विच्छेद पैकेज का भुगतान किया जाता है।
भारत निजीकरण की दिशा में धीरे-धीरे सुधार कर रहा है लेकिन सुधारों से अपेक्षाओं की पिछली अपूर्णता ने आलोचकों के दावे को मजबूत किया है। भारत ने 1991 में उदारीकरण अभियान शुरू किया, लेकिन राजनीतिक माहौल निजीकरण के लिए बहुत अनुकूल नहीं था।
निजीकरण के पीछे मुख्य कारण सरकार की रुकावट के बिना निजी क्षेत्र की दक्षता को बढ़ाना है। दूसरे शब्दों में, निजीकरण बताता है कि निजी क्षेत्र के स्वामित्व वाले उद्यमों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है और बेहतर तरीके से बनाए रखा जाता है।
निजीकरण का उस क्षेत्र की वित्तीय वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिस पर पहले घाटे और ऋणों को कम करने के मामले में राज्य का प्रभुत्व था। निजीकरण के माध्यम से राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को शुद्ध हस्तांतरण कम हो गया है। यह सामान्य रूप से उद्योग के प्रदर्शन मानकों को बढ़ाने में मदद करता है।
निजीकरण सरकारी बोझ को कम करने और लाभ को अधिकतम करने में मदद करता है। निजीकरण से अमीर वर्ग को लाभ मिलता है जबकि समाज के गरीबों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।  निजीकरण के परिणामस्वरूप नवीन उत्पादों की शुरूआत हुई। इससे अस्वस्थ राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने में भी मदद मिली।
निजीकरण का सकारात्मक प्रभाव

राज्य या केंद्र-आधारित सार्वजनिक क्षेत्र उस सरकार के तहत बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं हैं, जिसे संभालने के लिए उसके अधीन कई विभाग हैं। ...

निजी क्षेत्र हमेशा पहले ग्राहक के बारे में सोचता है। ...

चूंकि निजी क्षेत्र कंपनियों के लिए लाभ का लक्ष्य रखता है।

निश्चित रूप से चिली विकासशील दुनिया में सबसे व्यापक निजीकरण अनुभवों का दावा करता है, क्योंकि इसमें लगभग हर क्षेत्र शामिल है, जिसमें (पहले निजी स्वामित्व वाले) राष्ट्रीयकृत उद्यमों से लेकर छोटे और बहुत बड़े राज्य के स्वामित्व वाले निगम और बैंक शामिल हैं।
सरकारी क्षेत्र का निजीकरण अच्छा है या बुरा?
जनता के विश्वास की कमी का भ्रम फैलाकर नौकरशाह एक अच्छी पॉलिसी को रोकना चाहते हैं।लेटरल एंट्री, जिसे गैर-अफसरशाह निजी क्षेत्र से लोगों का प्रशासन में आना भी कहा जाता है, एक विकल्प है जिसका उपयोग सरकारें अपने प्रशासन में नवीनता और दक्षता लाने के लिए कर सकती हैं। लेटरल एंट्री कार्यक्रमों के माध्यम से, निजी क्षेत्र के पेशेवर सरकार में काम करने के लिए चुने जाते हैं, अक्सर वरिष्ठ पदों पर। वे अपने कौशल और अनुभव को सरकार में लाते हैं, जो सरकारी सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

लेटरल एंट्री के कई लाभ हैं। सबसे पहले, यह सरकार को नवीन विचारों और दृष्टिकोणों को लाने में मदद कर सकता है। निजी क्षेत्र के पेशेवर अक्सर सरकार की तुलना में अधिक लचीले और नवीन होते हैं। वे नए तरीकों से सोचने और समस्याओं को हल करने में सक्षम होते हैं।

दूसरा, लेटरल एंट्री सरकार को अधिक कुशल बना सकती है। निजी क्षेत्र के पेशेवर अक्सर सरकार के कामकाज में अधिक दक्ष होते हैं। वे प्रभावी प्रबंधन प्रथाओं और अनुकूलनशीलता में अधिक कुशल होते हैं।

तीसरा, लेटरल एंट्री सरकार को अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकती है। निजी क्षेत्र के पेशेवर अक्सर सरकार के प्रतिस्पर्धियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक कौशल और अनुभव रखते हैं। वे सरकार को अपने प्रतिस्पर्धियों को पछाड़ने और अधिक प्रभावी ढंग से सेवाएं प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।

हालांकि, लेटरल एंट्री के कुछ संभावित जोखिम भी हैं। सबसे पहले, यह सरकार में अस्थिरता पैदा कर सकता है। निजी क्षेत्र के पेशेवर अक्सर सरकार में कम समय के लिए रहते हैं। इससे सरकार में निरंतरता में कमी आ सकती है।

दूसरा, लेटरल एंट्री सरकार में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकती है। निजी क्षेत्र के पेशेवर अक्सर सरकार के कामकाज के बारे में कम जानते हैं। इससे उन्हें भ्रष्टाचार के लिए अधिक संवेदनशील बना सकता है।

तीसरा, लेटरल एंट्री सरकार में असमानता को बढ़ावा दे सकती है। निजी क्षेत्र के पेशेवर अक्सर सरकार के कर्मचारियों की तुलना में अधिक वेतन और लाभ प्राप्त करते हैं। इससे सरकार में असमानता बढ़ सकती है।

कुल मिलाकर, लेटरल एंट्री एक संभावित लाभकारी उपकरण है जिसका उपयोग सरकारें अपने प्रशासन में नवीनता और दक्षता लाने के लिए कर सकती हैं। हालांकि, लेटरल एंट्री के संभावित जोखिमों से अवगत होना महत्वपूर्ण है। सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए कि लेटरल एंट्री कार्यक्रम प्रभावी ढंग से लागू किए गए हों और सरकार में अस्थिरता, भ्रष्टाचार और असमानता को बढ़ावा न दें।

भारत में, लेटरल एंट्री की अवधारणा अपेक्षाकृत नई है। हाल के वर्षों में, सरकार ने लेटरल एंट्री कार्यक्रमों को लागू करना शुरू कर दिया है, जैसे कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में लेटरल एंट्री। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य सरकार को अधिक कुशल और नवीन बनाने में मदद करना है।

भारत में लेटरल एंट्री के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:

भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में लेटरल एंट्री: यह कार्यक्रम निजी क्षेत्र के पेशेवर को IAS में शामिल होने की अनुमति देता है।


राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHP) में लेटरल एंट्री: यह कार्यक्रम निजी क्षेत्र के डॉक्टरों को NHP में शामिल होने की अनुमति देता है।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में लेटरल एंट्री: यह कार्यक्रम निजी क्षेत्र के शिक्षाविदों को NEP में शामिल होने की अनुमति देता है।


भारत सरकार ने लेटरल एंट्री कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें शामिल हैं:

लेटरल एंट्री कार्यक्रमों के लिए अधिक धन आवंटन।


लेटरल एंट्री कार्यक्रमों के लिए अधिक प्रचार।


लेटरल एंट्री कार्यक्रमों के लिए अधिक लचीलेपन।


भारत सरकार की उम्मीद है कि लेटरल एंट्री कार्यक्रम सरकार को अधिक कुशल और नवीन बनाने में मदद करेंगे।

टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) के चेयरपर्सन के पद पर 30 साल के अनुभव वाले कॉर्पोरेट सीईओ या निजी क्षेत्र में मैनेजमेंट में वरिष्ठ पदों पर काम करने वाले लोगों को नियुक्त किया जाएगा और इसके लिए ट्राई अधिनियम, 1997 के सेक्शन 4 में संशोधन का बिल भी लाया जाएगा। इसके पहले इसी वर्ष सेबी के अध्यक्ष के रूप में एक निजी क्षेत्र की एग्जीक्यूटिव को लाया गया था। डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 में भी संशोधन करके निजी क्षेत्र से लोगों को लाने की योजना है। कल तक जो सीईओ निजी कंपनियां संभालते थे, उन्हें ट्राई, डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेटर या सेबी का अध्यक्ष बनाने से गवनेंस में जनता के विश्वास को क्षति पहुंचेगी। किसी निजी क्षेत्र के एग्जीक्यूटिव के जरिए राजकाज का संचालन खतरनाक हो सकता है। इसके पहले भी प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र जैसे एयरपोर्ट, सीपोर्ट, हाइवेज और रेलवे में उद्योगपतियों के आने से सरकार की नीति पर प्रश्नचिह्न खड़े हो चुके हैं। 'लेटरल एंट्री' (गैर- अफसरशाह निजी क्षेत्र से लोगों का प्रशासन में आना) के नतीजे पूर्व में भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहे। अफसर कम से कम इस बात से डरते हैं कि गलत किया तो पेंशन रुक सकती है, लेकिन वर्षों तक करोड़ों की तनख्वाह पाए सीईओ के लिए कोई बाध्यता नहीं होगी।
लेटरल एंट्री वह प्रक्रिया है जिसमें गैर-अफसरशाह निजी क्षेत्र से लोग प्रशासन में आते हैं। यह एक ऐसा तरीका है जिससे सरकार को नए विचारों और अनुभवों को शामिल करने में मदद मिल सकती है।

लेटरल एंट्री के कई संभावित लाभ हैं। सबसे पहले, यह सरकार को नवाचार और परिवर्तन को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। निजी क्षेत्र से लोग अक्सर नए विचारों और दृष्टिकोणों के साथ आते हैं जो पारंपरिक सरकारी एजेंसियों में नहीं पाए जा सकते हैं। दूसरे, लेटरल एंट्री सरकार को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने में मदद कर सकती है। निजी क्षेत्र से लोग अक्सर विविध पृष्ठभूमि और अनुभवों से आते हैं, जो सरकार को अधिक समावेशी बनाने में मदद कर सकता है। तीसरे, लेटरल एंट्री सरकार को अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकती है। निजी क्षेत्र से लोग अक्सर सरकारी एजेंसियों में पाए जाने वाले जटिलताओं और बोझ को कम करने के तरीकों को जानते हैं।

हालांकि, लेटरल एंट्री के कुछ संभावित जोखिम भी हैं। सबसे पहले, यह सरकार के लिए नए लोगों को प्रशिक्षित करने और उन्हें सक्षम बनाने के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। दूसरे, लेटरल एंट्री से पारंपरिक सरकारी एजेंसियों में अस्थिरता पैदा हो सकती है। तीसरे, लेटरल एंट्री से पक्षपात या भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।

भारत में, लेटरल एंट्री एक अपेक्षाकृत नई अवधारणा है। हाल के वर्षों में, सरकार ने इस अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए, सरकार ने लेटरल एंट्री के लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल शुरू किया है और लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।

भारत में लेटरल एंट्री के कुछ संभावित लाभ निम्नलिखित हैं:

सरकार को नवाचार और परिवर्तन को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।


सरकार को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने में मदद कर सकता है।


सरकार को अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकता है।


भारत में लेटरल एंट्री के कुछ संभावित जोखिम निम्नलिखित हैं:

सरकार के लिए नए लोगों को प्रशिक्षित करने और उन्हें सक्षम बनाने के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।


लेटरल एंट्री से पारंपरिक सरकारी एजेंसियों में अस्थिरता पैदा हो सकती है।


लेटरल एंट्री से पक्षपात या भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।


कुल मिलाकर, लेटरल एंट्री एक ऐसी अवधारणा है जो भारत में सरकार को अधिक प्रभावी बनाने की क्षमता रखती है। हालांकि, सरकार को इस अवधारणा को लागू करने से पहले संभावित लाभों और जोखिमों का सावधानीपूर्वक आकलन करना चाहिए।

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